मथुरा: आजू बिरज में होरी रे रसिया... होरी रे रसिया... जैसे गीतों के साथ ब्रज में होली का रंग उत्सव बसंत पंचमी के दिन से प्रारंभ हो जाता है. ब्रज में 40 दिनों तक होली बड़ी ही धूमधाम के साथ खेली जाती है. देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु होली देखने और खेलने के लिए राधा रानी की जन्मस्थली बरसाना और कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा पहुंचते हैं.
ब्रज में दिखते है होली के अलग-अलग रंग
ब्रज में होली के अलग-अलग रंग देखने को मिलते हैं, जैसे फूलों की होली हो, लड्डुओं की होली, लठमार होली, गुलाल या रंगो की होली. ब्रज में बड़े ही धूमधाम के साथ होली का त्योहार खेला जाता है. बता दें कि, राधा-रानी की जन्मस्थली बरसाना में 3 मार्च को लड्डू मार होली खेली गयी. 4 मार्च को नंद गांव के हुरियारे और बरसाना की हुरियारिन बरसाना के रंगीली गली चौक पर लठमार होली खेलेंगे.
साढ़े 5 हजार वर्ष से चली आ रही परंपरा
होली के मौके पर ब्रज में अलग ही आनंद देखने को मिलता है. यहां ये परंपरा साढ़े पांच हजार सालों से चली आ रही है. कहा जाता है कि, ब्रज में होली खेलने के लिए स्वर्ग लोक से 84 करोड़ देवी-देवता किस ना किसी रूप में धरती लोक पर पधारते हैं और ब्रज में होली का अद्भुत आनंद लेते हैं. 3 मार्च को बरसाना में राधा रानी मंदिर में लड्डू मार होली खेली गयी. वहीं 4 मार्च को बरसाना में राधा रानी मंदिर और पूरे बरसाना कस्बे में लठमार होली खेली जाएगी. 5 मार्च को नंद बाबा के नंद भवन में बरसाना के हरियारे नंद गांव की हुरियारिन लठमार होली खेलेंगे. 6 मार्च को श्री कृष्ण भगवान की जन्म स्थली जन्म भूमि पर सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ होली खेली जाएगी. 6 मार्च को विश्व प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर में रंगभरी एकादशी के दिन होली खेली जाएगी.
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