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कमीशन के चक्कर में चिकित्सक पर्चे पर लिख रहे ब्रांडेड दवाएं

सरकारी अस्पतालों में रोगियों को दवाएं कहां से मिलें और कैसे मिलें इसका जवाब चिकित्सा विभाग से जुड़े अधिकारियों के पास नहीं है. विभाग की तरफ से व्यापक प्रचार प्रसार न होने से जेनरिक दवाओं के बारे में लोगों को जानकारी तक नहीं हो पा रही है.

लुट रहे हैं मरीज फ्लाप हो रही है प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना
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Published : Feb 10, 2019, 11:19 PM IST

मथुरा : सरकार की तरफ से आम लोगों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने की तमाम कवायद विभागीय उदासीनता के चलते फ्लाप साबित हो रही है. निजी अस्पताल के चिकित्सक तो दूर सरकारी अस्पतालों के चिकित्सक भी कमीशन के चक्कर में मरीजों को एक अलग से पर्ची पर ब्रांडेड दवाएं ही लिखकर थमा दे रहे हैं.

लुट रहे हैं मरीज फ्लाप हो रही है प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना
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सीएमएस का कहना है कि केंद्र सरकार की नीति के तहत अस्पतालों में दवाओं का ऑर्डर गोवा, केरला और आंध्र प्रदेश की कंपनियों को देने का सख्त निर्देश है. इसके चलते दवा की कीमत से अधिक खर्चा दवा के ट्रांसपोर्टेशन पर आता है. यही कारण है कि सरकारी अस्पतालों में रोगियों को दवाईयां नहीं मिल पा रही है.


परिसर में प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना के तहत 24 घंटे खुलने वाला मेडिकल स्टोर खोला गया है लेकिन यहां भी गिनती की दवाएं हैं. जिला अस्पताल के होम्योपैथिक पटल पर इस बार 16 लाख का बजट दवाओं के लिए सरकार द्वारा आवंटित किया गया था. जिसका कोई भी लाभ मरीजों को नहीं मिल रहा है.


चिकित्सकों के ब्रांडेड दवाओं से मोहभंग नहीं होने से मरीजों को सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है. ब्रांडेड दवा के थोक और अधिकतम खुदरा मूल्य में भारी अंतर होता है. ऐसे में मरीज लुट रहे हैं. कमीशन के चक्कर में चिकित्सक ब्रांडेड दवाओं को लिखने का मोह नहीं छोड़ पा रहे.

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मथुरा : सरकार की तरफ से आम लोगों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने की तमाम कवायद विभागीय उदासीनता के चलते फ्लाप साबित हो रही है. निजी अस्पताल के चिकित्सक तो दूर सरकारी अस्पतालों के चिकित्सक भी कमीशन के चक्कर में मरीजों को एक अलग से पर्ची पर ब्रांडेड दवाएं ही लिखकर थमा दे रहे हैं.

लुट रहे हैं मरीज फ्लाप हो रही है प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना
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सीएमएस का कहना है कि केंद्र सरकार की नीति के तहत अस्पतालों में दवाओं का ऑर्डर गोवा, केरला और आंध्र प्रदेश की कंपनियों को देने का सख्त निर्देश है. इसके चलते दवा की कीमत से अधिक खर्चा दवा के ट्रांसपोर्टेशन पर आता है. यही कारण है कि सरकारी अस्पतालों में रोगियों को दवाईयां नहीं मिल पा रही है.


परिसर में प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना के तहत 24 घंटे खुलने वाला मेडिकल स्टोर खोला गया है लेकिन यहां भी गिनती की दवाएं हैं. जिला अस्पताल के होम्योपैथिक पटल पर इस बार 16 लाख का बजट दवाओं के लिए सरकार द्वारा आवंटित किया गया था. जिसका कोई भी लाभ मरीजों को नहीं मिल रहा है.


चिकित्सकों के ब्रांडेड दवाओं से मोहभंग नहीं होने से मरीजों को सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है. ब्रांडेड दवा के थोक और अधिकतम खुदरा मूल्य में भारी अंतर होता है. ऐसे में मरीज लुट रहे हैं. कमीशन के चक्कर में चिकित्सक ब्रांडेड दवाओं को लिखने का मोह नहीं छोड़ पा रहे.

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Intro:सरकारी अस्पतालों में रोगियों को दवाएं कहां से मिले और इस पर कैसे लगाम कसे इसका जवाब चिकित्सा विभाग से जुड़े अधिकारियों के पास नहीं है ,सूत्रों की मानें तो केंद्र सरकार की नीति के तहत अस्पतालों में दवाओं का ऑर्डर गोवा, केरला और आंध्र प्रदेश की कंपनियों को देने का सख्त निर्देश है, इसके चलते दवा की कीमत से अधिक खर्चा दवा के ट्रांसपोर्टेशन पर आता है यही कारण है कि सरकारी अस्पतालों में रोगियों को दवाई नहीं मिल पा रही ।


Body:सरकारी अस्पतालों में दवाओं के वितरण को लेकर लंबे समय से नीति चली आ रही है जिसमें काफी सस्ती कीमत की ऐसी दवाइयां रोगियों को वितरित की जाती हैं जिनका रोगियों के स्वास्थ्य पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता, फलत उसे निरोगी होने के लिए बाजार की दवाइयों का ही सहारा लेना पड़ता है भले ही जिला अस्पताल परिसर में प्रधान मंत्री जन औषधि परियोजना के तहत 24 घंटे खुलने वाला मेडिकल स्टोर खोला गया है, लेकिन यहां भी गिनती की दवाएं हैं और ना ही यह मेडिकल स्टोर 24 घंटे खुलता है, स्वास्थ्य विभाग के एक जानकार सूत्र ने बताया कि जिला अस्पताल के होम्योपैथिक पटल पर इस बार 16 लाख का बजट दवाओं के लिए सरकार द्वारा आवंटित किया गया था, इन सभी दवाओं का ऑर्डर गोवा की कंपनी को देना जरूरी था ऐसा केंद्र सरकार का निर्देश है।


Conclusion:बताया गया कि दिल्ली और लखनऊ में जो दवाएं 15 और ₹20 में उपलब्ध हो जाती हैं वह दवाएं उपलब्ध तो गोवा से भी इसी कीमत पर होती हैं लेकिन इनको मंगाने में भाड़ा आदि पर इतना अधिक वह हो जाता है कि इनकी कीमत 3 गुनी तक पहुंच जाती है ।ऐसे में रोगियों की संख्या के अनुपात में दवाएं उपलब्ध नहीं हो पाती बताते चलें कि जिला अस्पताल मथुरा में रोजाना सैकड़ों की संख्या में रोगी पहुंचते हैं ,बहरहाल जिला अस्पताल मथुरा में धरातल पर स्थिति यह है कि रोगियों को दबाएं नहीं मिल पा रही हैं, जिसके कारण रोगियों को बाहर से दवाइयां खरीदनी पड़ रही है औपचारिकता पूर्ण करने के लिए अस्पताल से रोगियों को 1,2 दवाई दे दी जाती हैं बाकी रोगी दवाई बाहर से खरीदते हैं।
बाइट- सीएमएस मथुरा
स्ट्रिंगर मथुरा
राहुल खरे
mb-9897000608
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