मथुरा : सरकार की तरफ से आम लोगों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने की तमाम कवायद विभागीय उदासीनता के चलते फ्लाप साबित हो रही है. निजी अस्पताल के चिकित्सक तो दूर सरकारी अस्पतालों के चिकित्सक भी कमीशन के चक्कर में मरीजों को एक अलग से पर्ची पर ब्रांडेड दवाएं ही लिखकर थमा दे रहे हैं.
सीएमएस का कहना है कि केंद्र सरकार की नीति के तहत अस्पतालों में दवाओं का ऑर्डर गोवा, केरला और आंध्र प्रदेश की कंपनियों को देने का सख्त निर्देश है. इसके चलते दवा की कीमत से अधिक खर्चा दवा के ट्रांसपोर्टेशन पर आता है. यही कारण है कि सरकारी अस्पतालों में रोगियों को दवाईयां नहीं मिल पा रही है.
परिसर में प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना के तहत 24 घंटे खुलने वाला मेडिकल स्टोर खोला गया है लेकिन यहां भी गिनती की दवाएं हैं. जिला अस्पताल के होम्योपैथिक पटल पर इस बार 16 लाख का बजट दवाओं के लिए सरकार द्वारा आवंटित किया गया था. जिसका कोई भी लाभ मरीजों को नहीं मिल रहा है.
चिकित्सकों के ब्रांडेड दवाओं से मोहभंग नहीं होने से मरीजों को सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है. ब्रांडेड दवा के थोक और अधिकतम खुदरा मूल्य में भारी अंतर होता है. ऐसे में मरीज लुट रहे हैं. कमीशन के चक्कर में चिकित्सक ब्रांडेड दवाओं को लिखने का मोह नहीं छोड़ पा रहे.