मथुरा : दक्षिणात्य शैली के श्रीरंगनाथ मंदिर में बुधवार को नंदोत्सव की धूम मची रही. ब्रजमंडल के प्रसिद्ध लट्ठे के मेला का ब्रजवासियों ने जमकर लुत्फ उठाया. संपूर्ण परिसर रंगनाथ भगवान के जय उद्घोष से गुंजित हो उठा.
धार्मिक नगरी में श्रीवैष्णव संप्रदाय के प्रमुख श्रीरंगनाथ मंदिर में वैदिक परंपरानुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व रोहिणी नक्षत्र व अष्टमी तिथि के सुयोग पर मंगलवार को धूमधाम से मनाया गया. इसी क्रम में बुधवार को मंदिर में नंदोत्सव के अंतर्गत लट्ठे का मेला भव्य तरीके से आयोजित किया गया.
पिछले वर्ष कोरोना महामारी के चलते आयोजित न होने वाले लट्ठे के मेले को लेकर इस वर्ष भक्तों में खासा उत्साह देखा गया. सायंकाल ठाकुर श्रीगोदा रंगमन्नार भगवान कल्पवृक्ष पर सवार होकर मुख्य गर्भगृह से बाहर निकले.
चहुंओर ठाकुरजी की जयजयकार सुनाई देने लगी. मंदिर के सिंहद्वार पर सवारी के पहुंचते ही पहले से तैयार खड़े अंतर्यामी अखाड़ा दुसायत के पहलवान ठाकुरजी का आशीर्वाद लेने पहुंच गए. इसके बाद करीब 40 फुट ऊंचे लकड़ी के चिकने खंभे पर चढ़ने को जोर आजमाइश शुरू हो गई.
इधर, पहलवान क्रमबद्ध होकर ऊपर चढ़ने की कवायद शुरू करते उधर ऊपर मंच पर बैठे मंदिर के कर्मचारी तेल मिश्रित पानी की तेज धार पहलवानों पर गिराना शुरू कर देते. इससे ऊपर चढ़ने का प्रयास कर रहे पहलवान नीचे गिर जाते. हास परिहास के साथ ऊपर चढ़कर नीचे गिरने का दौर करीब चालीस मिनट तक चलता रहा.
एक बार फिर पहलवानों ने ठाकुरजी का आशीर्वाद लेकर ऊपर चढ़ने का क्रम शुरू किया और पहले ही प्रयास में शिखर तक पहुंच गए. जैसे ही सबसे पहले पहुंचे पहलवान ने विजय पताका पकड़ी, संपूर्ण परिसर रंगनाथ भगवान की जयजयकार से गुंजायमान हो उठा. इसके बाद विजयी पहलवानों को मन्दिर प्रबंधन की तरफ से ठाकुरजी की कृपा प्रसादी भेंट की गयी.
जानकारी देते हुए कार्यवाहक प्रबंधक रंगनाथ मंदिर लखन लाल पाठक ने बताया कि यह लट्ठा का मेला ब्रज में नंदोत्सव के रूप में उत्सव मनाया जाता है.
उसी क्रम में रंग मंदिर में भी ब्रज का प्रसिद्ध लट्ठा का मेला नंदोत्सव के रूप में आयोजित होता है. इस लट्ठे पर जो पहलवान लोग चढ़ते हैं, उनके ऊपर पानी गिराया जाता है. इसको 15 से 20 दिन पहले तैयार किया जाता है.
इस पर मुल्तानी मिट्टी, साबुन, उर्द की दाल, मेथी का आटा इस सब का लेपन किया जाता है और इसे अत्यंत चिकना करके जमीन में गाड़ दिया जाता है.
उसके बाद 10-12 पहलवानों की टीम इस पर चढ़ती है और भगवान की सवारी निकलती है. कदंब वृक्ष पर मुरली गायन करते हुए जब पश्चिम द्वार के दरवाजे पर सवारी पहुंचती है.
भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करके पहलवान लोग भगवान से प्रार्थना करते हैं कि प्रभु हमें सफलता दिलवाना हम आपके उत्सव में शामिल हुए हैं. हमें आशीर्वाद देना. इस तरह से वह चढ़ना प्रारंभ करते हैं और मचान पर हमारे कर्मचारी के ऊपर चढ़े हुए होते हैं वह ऊपर से रंगीन पानी, अरंडी का तेल, दही, फल आदि इनके ऊपर डालते हैं.
उसके फलस्वरूप कई बार यह फिसल कर गिर जाते हैं पर आखिरकार जब यह चढ़ जाते हैं तो उनको विजय के रूप भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस तरह से यह मेला संपन्न होता है.