मथुरा: दिवाली के दूसरे दिन ब्रज में गोवर्धन पूजा की गई. पुष्टिमार्ग संप्रदाय के द्वारकाधीश में भगवान श्री कृष्णा बाल स्वरूप में विराजमान है. इस मंदिर में गोवर्धन पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. दूर दराज से लाखों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं ने गोवर्धन महाराज की विधि विधान से पूजा की. मंदिर प्रांगण में ठाकुर जी के जयकारे गूंज रहे थे.कार्तिक माह में सोमवती अमावस्या का पर्व और यमुना नदी में आस्था की डुबकी लगाने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचे हैं. सूर्य की पहली किरण के साथ श्रद्धालुओं ने यमुना नदी में स्नान किया और द्वारकाधीश मंदिर में गोवर्धन की पूजा की.
मंदिर प्रबंधक राकेश तिवारी ने बताया कि ब्रज में पुष्टिमार्ग संप्रदाय के मंदिरों में गोवर्धन पूजा का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. ब्रज में भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप में सेवा की जाती है. मंदिर प्रांगण में गौ माता के गोबर से गोवर्धन बनाए गए और गौ माता के दूध से अभिषेक किया गया. गोवर्धन पूजा पूरे विधि विधान से की गई. दूर दराज से लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने यहां गोवर्धन पूजा की.
कृष्ण ने तोड़ा इंद्र का घमंड: उल्लेखनीय है कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था. ब्रज में बृजवासी इंद्र की पूजा की जाती थी. एक दिन कृष्णा ने अपने नंद बाबा से पूछा, ब्रज में इंद्र की पूजा क्योंकि जाती है? किसी और देवी देवताओं की पूजा क्यों नहीं की जाती? इस बात को लेकर इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रज में घनघोर बारिश की. बाल स्वरूप में कृष्ण भगवान ने कन्नी उंगली से पर्वत को पूरे सात दिनों तक उठाये रखा और अपने बृजवासियों की इंद्र के क्रोध से जान बचाई. इसके बाद बृजवासियों ने संकल्प लिया कि आज से इंद्र की पूजा नहीं होगी. हम अपने कन्हैया की पूजा करेंगे. इंद्र के प्रकोप से भगवान श्री कृष्ण ने बृजवासियों की रक्षा की थी. बृजवासियों ने कृष्ण को अपना भगवान मानकर अनेक प्रकार के व्यंजन तैयार किए थे और भगवान कृष्ण को भोग लगाया था. दिवाली के दूसरे दिन देश भर में गोवर्धन पूजा का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.
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