मथुरा: श्रीकृष्ण जन्मस्थान के मालिकाना हक को लेकर 25 सितंबर को मथुरा न्यायालय के सीनियर डिवीजन सिविल जज छाया शर्मा की कोर्ट में याचिका डाली गई. 58 पन्नों की याचिका में लिखा गया कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान को मस्जिद मुक्त किया जाए और भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि का मालिकाना हक दिलाया जाए. आज दोपहर 2:35 में सिविल जज छाया शर्मा की कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई. फैसला सुरक्षित रखा गया है. कुछ देर बाद जज छाया शर्मा का फैसला आएगा. सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु जैन और रंजना अग्निहोत्री ने कोर्ट में अपना पक्ष रखा.
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने कहा कि औरंगजेब ने मंदिर को तोड़कर तथाकथित मस्जिद का निर्माण किया था. इस मामले में सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर किया गया है. इसमें श्रीकृष्ण विराजमान को मुख्य पार्टी बनाया गया है. जन्मभूमि पर पूजा करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. वहां पूजा करने का हक हमें मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर हम मुकदमा जीतते हैं तो हिंदुओं को वहां पूजा करने का हक मिलेगा.
अधिवक्ता हरिशंकर जैन का कहना है कि हिंदुओं का जन्मसिद्ध अधिकार है कि वे कृष्ण जन्मभूमि में आकर पूजा करें. यहां मुस्लिमों को किसी भी प्रकार से रहने का या कब्जा करने का अधिकार नहीं है.
दरअसल, श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर 13.37 एकड़ में बना हुआ है, जिसमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि लीला मंच, भागवत भवन और डेढ़ एकड़ में शाही ईदगाह मस्जिद बनी हुई है. सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता द्वारा 25 सितंबर को श्रीकृष्ण जन्मस्थान के मालिकाना हक को लेकर कोर्ट में याचिका डाली गई थी, जिसमें श्रीकृष्ण सेवा संस्थान और शाही ईदगाह कमेटी को प्रतिवादी पक्ष बनाया गया था. अधिवक्ताओं द्वारा कोर्ट से मांग की गई है कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान को मस्जिद मुक्त बनाया जाए.
बता दें कि ब्रिटिश शासन काल में 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनी मल ने इस जगह को खरीदा था. 1940 में पंडित मदन मोहन मालवीय जब मथुरा आए तो श्रीकृष्ण जन्मस्थान की दुर्दशा को देखकर दुखी हुए और स्थानीय लोगों ने भी मदन मोहन मालवीय जी से कहा कि यहां भव्य मंदिर बनना चाहिए. मदन मोहन मालवीय जी ने मथुरा के उद्योगपति जुगल किशोर बिरला को जन्मभूमि पुनर्रुद्वार के लिए पत्र लिखा. 21 फरवरी 1951 में श्रीकृष्ण जन्म भूमिट्रस्ट की स्थापना की गई.
12 अक्टूबर 1968 को कटरा केशव देव मंदिर की जमीन का समझौता श्रीकृष्ण जन्मस्थान सोसायटी द्वारा किया गया. 20 जुलाई 1973 को यह जमीन डिक्री की गई थी. डिक्री रद्द करने की मांग को लेकर अधिवक्ता ने कोर्ट मे याचिका डाली है.