मैनपुरी: जनपद की भोगांव तहसील के ग्राम पंचायत करपिया में 1965 में गांव तो बसाया गया, लेकिन सरकारी दस्तावेजों में अब तक उसे अंकित नहीं किया गया है. इस गांव तक जाने के लिए पगडंडियों से होते हुए जाना पड़ता है. आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी अब तक इस गांव को जिला प्रशासन रास्ता तक नहीं दे पाया है. गांव में सुविधाओं का टोटा है. यहां के बच्चे इन्हीं असुविधाओं के कारण अशिक्षित रह जा रहे हैं. चिकित्सीय सुविधाएं न होने के कारण कई लोगों की जान भी जा चुकी है. गांव के लोगों ने कई बार जिला प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन इसके बावजूद गांव और यहां के निवासियों के दिन नहीं बहुरे.
संपेरों का है यह गांव
यहां के निवासी घुमंतू जाति के लोग हैं जो कि 1965 के दौरान डेरे में रहकर ही अपना जीवन व्यतीत करते थे. सांप पालना इनका मुख्य काम था. इससे ही इनकी जीविका चलती थी. जिसे आम भाषा में सपेरा कहते हैं. यह पूरा गांव ही संपेरों का है. समय बदलने के साथ ही सरकार ने सांपों को पकड़ने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंधित लगा दिया. इसके बाद जीविका चलाने के लिए बड़ा संकट खड़ा हो गया. अब गांव के लोगों ने भैंस पालन, मजदूरी और जमीन पर खेती करना आरंभ कर दिया.
अव्यवस्थाओं की है भरमार
ईटीवी की टीम ने यहां के स्थानीय निवासी सुभाष नाथ से बात की तो उन्होंने बताया कि हमारे पूर्वज यहां आये थे. उस समय प्रधान ने गांव तो बसाया, लेकिन रास्ता न दिया. रास्ता न होने के कारण कई लोग इलाज के अभाव में मौत हो चुकी है. हमारा गांव सरकारी दस्तावेजों में दर्ज नहीं है. इस कारण किसी भी सरकारी योजना का हमें लाभ नहीं मिलता है. रास्ता न होने से बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं, खेतों से होकर जाते हैं तो खेत वाला लड़ने के लिए तैयार हो जाता है.
नहीं दर्ज है सरकारी दस्तावेजों में गांव
यहां के निवासी राहुल नाथ ने बताया कि कई बार अधिकारियों से हमने रास्ता की मांग की. हम लोगों ने तो यहां तक कहा कि योजनाओं से हमें वंचित कर दो लेकिन रास्ता दे दो. इस पर वह दो टूक कह देते हैं कि आपका गांव सरकारी दस्तावेजों में दर्ज नहीं है.
क्या बोले जिम्मेदार
ग्रामीणों की समस्या को लेकर ईटीवी भारत ने जब भोगांव एसडीएम पीसी आर्य से बात किया तो उन्होंने कहा कि आपके द्वारा हमें यह मामला संज्ञान में आया है. अगर इस तरीके से कोई समस्या है तो जांच कराकर कानूनी दृष्टि से जो भी संभव होगी. मदद की जाएगी.