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मैनपुरी: 1965 में बसा गांव, सरकारी दस्तावेजों में अब तक नहीं हुआ दर्ज - अव्यवस्थाओं की है भरमार

यूपी के मैनपुरी में एक गांव ऐसा भी है जहां अव्यवस्थाओं की भरमार है. यहां जाने के लिए कोई रास्ता नहीं है बल्कि खेतों की पगडंडियों से होकर जाना पड़ता है. इतना ही नहीं यह गांव अभी भी सरकारी दस्तावेजों नहीं दर्ज है. वहीं जिम्मेदारों का कहना है कि यह मामला हमारे संज्ञान में नहीं था.

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सरकारी दस्तावेजों में अब तक नहीं हुआ यह गांव
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Published : Jan 15, 2020, 6:49 AM IST

मैनपुरी: जनपद की भोगांव तहसील के ग्राम पंचायत करपिया में 1965 में गांव तो बसाया गया, लेकिन सरकारी दस्तावेजों में अब तक उसे अंकित नहीं किया गया है. इस गांव तक जाने के लिए पगडंडियों से होते हुए जाना पड़ता है. आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी अब तक इस गांव को जिला प्रशासन रास्ता तक नहीं दे पाया है. गांव में सुविधाओं का टोटा है. यहां के बच्चे इन्हीं असुविधाओं के कारण अशिक्षित रह जा रहे हैं. चिकित्सीय सुविधाएं न होने के कारण कई लोगों की जान भी जा चुकी है. गांव के लोगों ने कई बार जिला प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन इसके बावजूद गांव और यहां के निवासियों के दिन नहीं बहुरे.

सरकारी दस्तावेजों में अब तक नहीं हुआ यह गांव.

संपेरों का है यह गांव
यहां के निवासी घुमंतू जाति के लोग हैं जो कि 1965 के दौरान डेरे में रहकर ही अपना जीवन व्यतीत करते थे. सांप पालना इनका मुख्य काम था. इससे ही इनकी जीविका चलती थी. जिसे आम भाषा में सपेरा कहते हैं. यह पूरा गांव ही संपेरों का है. समय बदलने के साथ ही सरकार ने सांपों को पकड़ने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंधित लगा दिया. इसके बाद जीविका चलाने के लिए बड़ा संकट खड़ा हो गया. अब गांव के लोगों ने भैंस पालन, मजदूरी और जमीन पर खेती करना आरंभ कर दिया.


अव्यवस्थाओं की है भरमार
ईटीवी की टीम ने यहां के स्थानीय निवासी सुभाष नाथ से बात की तो उन्होंने बताया कि हमारे पूर्वज यहां आये थे. उस समय प्रधान ने गांव तो बसाया, लेकिन रास्ता न दिया. रास्ता न होने के कारण कई लोग इलाज के अभाव में मौत हो चुकी है. हमारा गांव सरकारी दस्तावेजों में दर्ज नहीं है. इस कारण किसी भी सरकारी योजना का हमें लाभ नहीं मिलता है. रास्ता न होने से बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं, खेतों से होकर जाते हैं तो खेत वाला लड़ने के लिए तैयार हो जाता है.


नहीं दर्ज है सरकारी दस्तावेजों में गांव
यहां के निवासी राहुल नाथ ने बताया कि कई बार अधिकारियों से हमने रास्ता की मांग की. हम लोगों ने तो यहां तक कहा कि योजनाओं से हमें वंचित कर दो लेकिन रास्ता दे दो. इस पर वह दो टूक कह देते हैं कि आपका गांव सरकारी दस्तावेजों में दर्ज नहीं है.


क्या बोले जिम्मेदार
ग्रामीणों की समस्या को लेकर ईटीवी भारत ने जब भोगांव एसडीएम पीसी आर्य से बात किया तो उन्होंने कहा कि आपके द्वारा हमें यह मामला संज्ञान में आया है. अगर इस तरीके से कोई समस्या है तो जांच कराकर कानूनी दृष्टि से जो भी संभव होगी. मदद की जाएगी.

मैनपुरी: जनपद की भोगांव तहसील के ग्राम पंचायत करपिया में 1965 में गांव तो बसाया गया, लेकिन सरकारी दस्तावेजों में अब तक उसे अंकित नहीं किया गया है. इस गांव तक जाने के लिए पगडंडियों से होते हुए जाना पड़ता है. आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी अब तक इस गांव को जिला प्रशासन रास्ता तक नहीं दे पाया है. गांव में सुविधाओं का टोटा है. यहां के बच्चे इन्हीं असुविधाओं के कारण अशिक्षित रह जा रहे हैं. चिकित्सीय सुविधाएं न होने के कारण कई लोगों की जान भी जा चुकी है. गांव के लोगों ने कई बार जिला प्रशासन से गुहार लगाई, लेकिन इसके बावजूद गांव और यहां के निवासियों के दिन नहीं बहुरे.

सरकारी दस्तावेजों में अब तक नहीं हुआ यह गांव.

संपेरों का है यह गांव
यहां के निवासी घुमंतू जाति के लोग हैं जो कि 1965 के दौरान डेरे में रहकर ही अपना जीवन व्यतीत करते थे. सांप पालना इनका मुख्य काम था. इससे ही इनकी जीविका चलती थी. जिसे आम भाषा में सपेरा कहते हैं. यह पूरा गांव ही संपेरों का है. समय बदलने के साथ ही सरकार ने सांपों को पकड़ने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंधित लगा दिया. इसके बाद जीविका चलाने के लिए बड़ा संकट खड़ा हो गया. अब गांव के लोगों ने भैंस पालन, मजदूरी और जमीन पर खेती करना आरंभ कर दिया.


अव्यवस्थाओं की है भरमार
ईटीवी की टीम ने यहां के स्थानीय निवासी सुभाष नाथ से बात की तो उन्होंने बताया कि हमारे पूर्वज यहां आये थे. उस समय प्रधान ने गांव तो बसाया, लेकिन रास्ता न दिया. रास्ता न होने के कारण कई लोग इलाज के अभाव में मौत हो चुकी है. हमारा गांव सरकारी दस्तावेजों में दर्ज नहीं है. इस कारण किसी भी सरकारी योजना का हमें लाभ नहीं मिलता है. रास्ता न होने से बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं, खेतों से होकर जाते हैं तो खेत वाला लड़ने के लिए तैयार हो जाता है.


नहीं दर्ज है सरकारी दस्तावेजों में गांव
यहां के निवासी राहुल नाथ ने बताया कि कई बार अधिकारियों से हमने रास्ता की मांग की. हम लोगों ने तो यहां तक कहा कि योजनाओं से हमें वंचित कर दो लेकिन रास्ता दे दो. इस पर वह दो टूक कह देते हैं कि आपका गांव सरकारी दस्तावेजों में दर्ज नहीं है.


क्या बोले जिम्मेदार
ग्रामीणों की समस्या को लेकर ईटीवी भारत ने जब भोगांव एसडीएम पीसी आर्य से बात किया तो उन्होंने कहा कि आपके द्वारा हमें यह मामला संज्ञान में आया है. अगर इस तरीके से कोई समस्या है तो जांच कराकर कानूनी दृष्टि से जो भी संभव होगी. मदद की जाएगी.

Intro:मैनपुरी 1965 में गांव तो बसाया गया लेकिन सरकारी दस्तावेजों में अब तक नहीं हुआ अंकित
जिला प्रशासन इस गांव तक लोगों को नहीं दे पाया रास्ता पगडंडियों से होते हुए जाना पड़ता है गांव तक सुविधा ना होने के अभाव में कई लोगों की हो चुकी है मौतें रास्ता ना होने के कारण बच्चे हैं अशिक्षित


Body:उत्तर प्रदेश का मैनपुरी जनपद जहां पर आज हम ऐसे गांव की बात कर रहे हैं जो कि 1965 में गांव तो बसाया गया लेकिन सरकारी दस्तावेजों में आज तक यह दर्ज नहीं हो सका साथ ही इस गांव को जाने के लिए पग डंडियों से होकर गांव तक पहुंचना पड़ता है

रास्ता ना होने के अभाव में बच्चे शिक्षित नहीं हो पाए हैं इस गांव के कई लोगों की मौत इलाज ना होने के आभाव में हो चुकी है जिला प्रशासन से कई बार गुहार लगाने के बाद भी इस गांव को मूलभूत सुविधाएं तक जिला प्रशासन नहीं दे पाया

पूरा मामला भोगांव तहसील के ग्राम पंचायत करपिया पर जब ईटीवी की टीम पहुंची
ग्राम पंचायत करपिया से लगभग 2 किलोमीटर दूर खेतों की बनी मेड़ो से होते हुए जब हम गांव में पहुंचे तो भौचक्के रह गए मीडिया को देखकर ग्रामीणों को कुछ आस जगी और दर्द छलक पड़ा और कहा अधिकारियों के पास जाते हैं तो धुत्कार कर भगा देते हैं और कहते हैं कि हम तुम्हारी मदद कहां से करें जब आपका गांव सरकारी दस्तावेजों में नहीं है तो कहां से रास्ता दे अब तो आपकी मदद मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री ही कर सकते हैं या फिर पैसा देकर जमीनों को खरीद लो और रास्ता बना लो

यह घुमंतू जाति के लोग हैं जोकि 1965 के दौरान डेरा में ही अपना जीवन व्यतीत करते थे सांप पालना उनसे ही जीविका चलती थी जिसे आम भाषा में हम सपेरा कहते हैं यह पूरा गांव जोगियों का है तदोपरांत समय बदला और सांपों पर पूर्ण रूप से सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया

जीविका चलाने के लिए एक बड़ा संकट खड़ा हो गया इन्होंने भैंस पालन मजदूरी और जमीन करना आरंभ कर दिया साथ ही गांव बसाने के समय 1965 में प्रधान ने यह नहीं सोचा था कि सरकारी दस्तावेजों में गांव को दर्ज करवा दें साथ ही रास्ता भी इनका आवंटन कर दें जिससे अपने जीवन मेहनत मजदूरी करके जी तो सकते हैं लेकिन यही गलती इनके लिए तिल तिल मौत का कारण बन गई

जब ईटीवी की टीम ने सुभाष नाथ से बात किया तो उन्होंने बताया कि पूर्वज हमारे यहां आये थे। प्रधान ने बसाया लेकिन रास्ता न होने के कारण कई लोग इलाज के अभाव में मौत हो चुकी है साथ ही हमारा गांव सरकारी दस्तावेजों में दर्ज नहीं है इस कारण सरकारी कोई भी योजनाओं का हमें लाभ नहीं मिलता है रास्ता ना होने से बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं खेतों से होकर जाते हैं तो खेत वाला लड़ने के लिए तैयार हो जाता है

कई बार अधिकारियों से हमने रास्ता की मांग की और कहा भी योजनाओं से हमें वंचित कर दो रास्ता दे दो लेकिन वह दो टूक कह देते हैं कि आपका गांव सरकारी दस्तावेजों में दर्ज नहीं है


बाइट-1- राहुल नाथ ग्रामीण
बाइट-2-सुभाष नाथ ग्रामीण

ग्रामीणों की समस्या को लेकर ईटीवी ने जब भोगांव एसडीएम पीसी आर्य से बात किया तो उन्होंने कहा कि आपके द्वारा हमें यह मामला संज्ञान में आया है अगर इस तरीके से कोई समस्या है तो जांच कराकर कानूनी दृष्टि से जो भी संभव होगी मदद की जाएगी
बाइट-पीसी आर्य उप जिलाधिकारी भोगांव



Conclusion:हालांकि आपको बताते चलें कि 1952 के बाद कोई भी राजस्व विभाग ने नए गांव नहीं बनाए हैं ना ही बन सकते हैं लेकिन यदि कहीं आबादी बसी है तो रास्ते का उनको अधिकार है जो कि प्रशासन उनको मुहैया कराएगा
प्रवीण सक्सेना मैनपुरी 94 5741 2304
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