मैनपुरी: आईसीसी महिला क्रिकेट विश्वकप में भारतीय टीम को फाइनल तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने वाली भारतीय क्रिकेटर पूनम यादव के पैतृक गांव मजरा में सड़कें बदहाल है. आलम यह है कि इस गांव के कुछ लोग पूनम का नाम तक भूल चुके हैं. शासन और प्रशासन की बेरुखी के चलते इस गांव की पहचान कहीं गुम हो चुकी है. पूनम यादव के गांव में क्रीडा स्थल भी नहीं है. लोग पानी और सड़क की समस्या से जूझ रहे हैं.
पूनम ने अपनी माता-पिता की प्रेरणा से क्रिकेट जगत में नाम रौशन किया है. खेल दिवस पर उन्हें राष्ट्रपति ने अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया था. पूनम अर्जुन अवार्ड पाने वाली देश की 54वीं क्रिकेटर हैं. पूनम ने जन्म के बाद प्राइमरी स्तर तक गांव में ही रहकर शिक्षा दीक्षा ली. इसके बाद वह पिता के साथ आगरा पहुंच गई. आगरा से ही उन्होंने क्रिकेट में अपना भविष्य तलाशा और भारतीय महिला क्रिकेट टीम में उनका चयन हुआ.
रघुवीर पूनम के भाइयों में सबसे छोटे हैं. उन्होंने बताया कि "अगस्त 2017 में पूनम यादव अपने पैतृक गांव पहुंची थी. उस दौरान गांव तक जाने का कच्चा रास्ता था. गांव में बिजली तक नहीं थी. शासन ने पक्का रास्ता और बिजली तो गांव तक पहुंचा दिया, लेकिन अभी भी कई समस्याएं हैं, जिससे दो-चार होना पड़ रहा है." अंतर्राष्ट्रीय महिला क्रिकेटर पूनम यादव के पैतृक गांव जाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है. पूनम के पिता सेना से सेवानिवृत्ति होने के बाद इंटर कॉलेज में शिक्षक पद पर तैनात हैं.
पूनम के ताऊ, भाई और भतीजी ने बताया कि "त्योहारों पर पूनम का आना-जाना लगा रहता है. पूनम ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन किया है, लेकिन सरकार ने उनके सम्मान को पर कोई भी ध्यान नहीं दिया. गांव की सड़कों के किनारे बड़ी-बड़ी झाड़ियां लगी हुई हैं. गांव से जब हम बच्चियों को पढ़ने के लिए भेजते हैं तो मन में भय लगा रहता है और बच्चियां भी असुरक्षित महसूस करती हैं. गांव से सड़क तक जाने के लिए कोई साधन नहीं है. गांव में सिंचाई के लिए पानी की बहुत समस्या है. कई बार जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से बात की गई, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ.