महोबाः जिले को आल्हा-ऊदल की नगरी के नाम से जाना जाता है. यह चंदेल शासकों से लेकर आजादी की लड़ाई का भी प्रमुख केन्द्र रहा है. महोबा 1995 में जिला बना. उस समय मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. इसके पहले महोबा हमीरपुर जिले की तहसील रही थी.
आजादी के बाद यह क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा, लेकिन बीते तीन दशकों से यहां पर बीएसपी , एसपी और बीजेपी का वर्चस्व कायम है. 2017 के चुनावों में जिले की दोनों विधानसभा सीटें भाजपा ने जीती. जानिए अब तक क्या रहा है महोबा जिले की विधानसभा सीट-230 का चुनावी गणित.
महोबा विधानसभा सीट- 230 क्षेत्र में कुल मतदाता, 298609 हैं. इनमें 163870 पुरुष और 134735 महिला मतदाता हैं. साथ ही अन्य 04 हैं और वार्डों की संख्या 25 है. 2017 के चुनावों में बीजेपी के राकेश गोस्वामी ने सपा के सिद्धगोपाल साहू को पराजित कर जीत हासिल की थी. जबकि बीएसपी के अरिमर्दन सिंह तीसरे स्थान पर रहे थे. इसके पहले के तीन चुनावों में से दो चुनावों में महोबा सीट पर बीएसपी और एक बार सपा को जीत हासिल हुई थी.
विधानसभा चुनाव-2012 में बीएसपी के राजनरायण ने समाजवादी पार्टी के सिद्ध गोपाल साहू को हराया था. इस चुनाव में कांग्रेस के अरिदमन सिंह तीसरे स्थान पर रहे थे. जबकि चौथे स्थान पर बीजेपी के बादशाह सिंह रहे. 15वीं विधानसभा चुनाव के नतीजे में बीएसपी के राकेश कुमार ने समाजवादी पार्टी के गिरिजा चरण को हराया था. एनएलएचपी के सिद्ध गोपाल साहू तीसरे स्थान पर रहे थे. जबकि कांग्रेस के मनोज चौथे स्थान पर रहे थे.
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जातीय समीकरण
जिले में ठाकुर समाज बाहुल्य है. इनके साथ ही ब्रह्मण, पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति वर्ग, मुस्लिम आदि जातियां शामिल हैं. जिले में एक मात्र उद्योग पत्थर नगरी कबरई का क्रशर उद्योग है. मेडिकल कॉलेज की स्थापना, चिकित्सा सेवा, बिजली, पानी, सिंचाई आज भी महोबा के बड़े मुद्दे हैं. हालांकि 'हर घर नल' योजना से पीने के पानी की समस्या को कुछ हद तक दूर किया जा सका है.