महराजगंज: महाराजगंज जिले में घर लौटे अधिकांश प्रवासी मजदूरों को रोजगार नहीं मिला है जिससे उनके सारे सपने टूट गए और उम्मीदें बिखर गई हैं. घर लौटे प्रवासी मजदूरों को दो से तीन महीने हो गए, लेकिन उन्हें न तो आज तक कोई रोजगार मिला और न ही प्रशासन से उनको कोई राहत सामग्री ही दी.
घर लौटे लोग हैं बेहाल
देश में 25 मार्च को लॉकडाउन लागू होने के बाद से हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने गांव भूखे पेट नंगे पांव जैसे तैसे पहुंच गए. कोई पैदल आया तो कोई अन्य संसाधनों से अपने गांव पहुंचा. प्रवासी मजदूरों की स्क्रीनिंग करके किसी को होम क्वारंटाइन किया गया तो किसी को जिले में बने क्वारंटाइन सेंटर में रखा गया. ऐसे प्रवासी मजदूरों को सरकार द्वारा जीविकोपार्जन के लिए 1000 रुपये और कोरोना राहत सामग्री दिये जाने का दावा किया गया है.
नहीं मिली राहत सामग्री
वहीं जिले के अधिकारियों की उदासीनता से अपने गांव आए तमाम प्रवासी मजदूरों को आज तक कोरोना राहत सामग्री नहीं मिल पाई है. इतना ही नहीं घर लौटे प्रवासी मजदूरों को गांव में ही रोजगार उपलब्ध कराने का दावा किया जा रहा है, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही हैं.
दूसरे प्रदेशों में लौटने को मजबूर
प्रवासी मजदूरों को मनरेगा से जिला प्रशासन द्वारा रोजगार उपलब्ध कराने का दावा किया जा रहा है. इसके बावजूद तमाम प्रवासी मजदूरों को रोजगार नहीं मिल सका. गांव में रोजगार न मिलने के कारण घर लौटे प्रवासी मजदूर एक बार फिर हिम्मत जुटा कर अन्य प्रदेशों में रोजगार के लिए जाने की तैयारी कर रहे हैं.
मनरेगा के तहत भी नहीं मिला काम
जिले के पनियरा ब्लॉक के प्रवासी मजदूरों ने ईटीवी भारत संवाददाता से कहा कि कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए सरकार ने लाॅकडाउन किया गया तो कोई मुम्बई से तो, कोई गुजरात से, कोई पुणे से तो कोई हैदराबाद से, कोई उधार लेकर तो कोई घर से रुपये मंगा कर, धक्के खाते हुए अपने घर पहुंचा. यहां आने के बाद उम्मीद थी कि सरकार के द्वारा कोई न कोई रोजगार जरूर दिया जाएगा, लेकिन कई महीने गुजरने के बाद भी कोई रोजगार नहीं मिला. ऐसे में परिवार का भरण पोषण कैसे होगा, यह उनके लिए चिंता का विषय है.