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महराजगंज: मेंथा की फसल किसानों को बना रही आत्मनिर्भर

महराजगंज में किसान मेंथा की खेती कर रहे हैं और इससे उन्हें फायदा भी हो रहा है. इससे किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हो रहा है और वे आत्मनिर्भर बन रहे हैं.

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मेंथा के पेड़.
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Published : Jun 17, 2020, 7:54 PM IST

महराजगंज: जिले के कुछ किसानों ने परंपरागत खेती छोड़ कर आधुनिक खेती करनी शुरू कर दी है. आधुनिक खेती से यहां के किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. परंपरागत खेती करने से किसानों की कई बार लागत भी नहीं निकल पाती थी. इसलिए जिले के कुछ किसान अब मेंथा की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. मेंथा की खेती करने वाले किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आ रहा है और वे आत्मनिर्भर बन रहे हैं.

मेंथा की खेती से हो रहा किसानों को फायदा.

किसान मेंथा की खेती मार्च से जून के बीच कड़ाके की धूप और तपन में करते हैं. किसानों का कहना है कि मेंथा की खेती बहुत कठिन है. इसे करने के लिए अनुभव के साथ-साथ इच्छाशक्ति की भी बहुत जरूरत होती है. दोपहर में जब लोग अपने घरों से निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं, उस समय मेंथा की खेती करने वाले किसान खुद को भट्ठी में झोंककर मेंथा आयल निकालते हैं.

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मेंथा की पेराई.

मेंथा की पत्तियों में तेल होता है, जिसे विशेष आसवन यूनिट यानी पेराई की टंकी में उबाल कर निकाला जाता है. इसका उपयोग टॉफी, पान, साबुन, ठंडा तेल, टूथ पेस्ट, आदि से लेकर विभिन्न औषधियां बनाने के लिए किया जाता है. किसानों का कहना है कि परंपरागत खेती अब लगातार घाटे का सौदा साबित हो रही है. ऐसे में मेंथा की खेती से किसानों को आर्थिक लाभ हो रहा है. बड़े पैमाने पर मेंथा की खेती करके अच्छा मुनाफा किसान कमा सकते हैं. इसकी खेती के लिए बलुई, दोमट और चिकनी मिट्टी सबसे उपयोगी है. इसकी खेती करने में प्रति एकड़ औसतन लागत 15 से 20 हजार रुपये आती है. किसानों के मुताबिक एक एकड़ में 50 से 60 किलोग्राम मेंथा आयल तैयार हो जाता है. फसल तैयार हो जाने पर व्यापारी खुद आकर अच्छे दाम देकर मेंथा आयल खरीद कर ले जाते हैं.

फरवरी महीने में शुरू होती है मेंथा की बुवाई
किसानों का कहना है कि शुरुआती दौर में एक दो किसानों ने मेंथा की खेती करना शुरू किया था. धीरे-धीरे जिले के अधिकांश किसान मेंथा की खेती करने लगे. किसानों का कहना है कि इसकी बुवाई प्रक्रिया फरवरी महीने में ही शुरू होती है. घोसी प्रजाति की मेंथा खेती सबसे ज्यादा मुनाफा देती है. यह प्रजाति लगभग 90 दिनों के अंदर तैयार हो जाती है और मेंथा का ऑयल निकाला जा सकता है. मेंथा की खेती को जंगली जानवरों से भी बचाने की चिंता नहीं होती. इसकी महक की वजह से जानवर इसे नहीं खाते हैं.

महराजगंज: जिले के कुछ किसानों ने परंपरागत खेती छोड़ कर आधुनिक खेती करनी शुरू कर दी है. आधुनिक खेती से यहां के किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. परंपरागत खेती करने से किसानों की कई बार लागत भी नहीं निकल पाती थी. इसलिए जिले के कुछ किसान अब मेंथा की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. मेंथा की खेती करने वाले किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार आ रहा है और वे आत्मनिर्भर बन रहे हैं.

मेंथा की खेती से हो रहा किसानों को फायदा.

किसान मेंथा की खेती मार्च से जून के बीच कड़ाके की धूप और तपन में करते हैं. किसानों का कहना है कि मेंथा की खेती बहुत कठिन है. इसे करने के लिए अनुभव के साथ-साथ इच्छाशक्ति की भी बहुत जरूरत होती है. दोपहर में जब लोग अपने घरों से निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं, उस समय मेंथा की खेती करने वाले किसान खुद को भट्ठी में झोंककर मेंथा आयल निकालते हैं.

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मेंथा की पेराई.

मेंथा की पत्तियों में तेल होता है, जिसे विशेष आसवन यूनिट यानी पेराई की टंकी में उबाल कर निकाला जाता है. इसका उपयोग टॉफी, पान, साबुन, ठंडा तेल, टूथ पेस्ट, आदि से लेकर विभिन्न औषधियां बनाने के लिए किया जाता है. किसानों का कहना है कि परंपरागत खेती अब लगातार घाटे का सौदा साबित हो रही है. ऐसे में मेंथा की खेती से किसानों को आर्थिक लाभ हो रहा है. बड़े पैमाने पर मेंथा की खेती करके अच्छा मुनाफा किसान कमा सकते हैं. इसकी खेती के लिए बलुई, दोमट और चिकनी मिट्टी सबसे उपयोगी है. इसकी खेती करने में प्रति एकड़ औसतन लागत 15 से 20 हजार रुपये आती है. किसानों के मुताबिक एक एकड़ में 50 से 60 किलोग्राम मेंथा आयल तैयार हो जाता है. फसल तैयार हो जाने पर व्यापारी खुद आकर अच्छे दाम देकर मेंथा आयल खरीद कर ले जाते हैं.

फरवरी महीने में शुरू होती है मेंथा की बुवाई
किसानों का कहना है कि शुरुआती दौर में एक दो किसानों ने मेंथा की खेती करना शुरू किया था. धीरे-धीरे जिले के अधिकांश किसान मेंथा की खेती करने लगे. किसानों का कहना है कि इसकी बुवाई प्रक्रिया फरवरी महीने में ही शुरू होती है. घोसी प्रजाति की मेंथा खेती सबसे ज्यादा मुनाफा देती है. यह प्रजाति लगभग 90 दिनों के अंदर तैयार हो जाती है और मेंथा का ऑयल निकाला जा सकता है. मेंथा की खेती को जंगली जानवरों से भी बचाने की चिंता नहीं होती. इसकी महक की वजह से जानवर इसे नहीं खाते हैं.

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