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गेमिंग डिसऑर्डर की चपेट में आ रहे छोटे छात्र, 40 फीसदी बच्चे इससे पीड़ित

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Published : Sep 24, 2022, 10:55 PM IST

इस समय अस्पताल की ओपीडी में गेमिंग डिसऑर्डर के 40 फीसदी मरीज आ रहे हैं. ज्यादातर 18 साल की कम उम्र के बच्चे गेमिंग डिसऑर्डर के शिकार हैं.

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गेमिंग डिसऑर्डर

लखनऊ : आज के समय में बच्चे भी काफी स्मार्ट हो रहे हैं. इस समय अस्पताल की ओपीडी में गेमिंग डिसऑर्डर के 40 फीसदी मरीज आ रहे हैं. ज्यादातर 18 साल की कम उम्र के बच्चे गेमिंग डिसऑर्डर के शिकार हैं. पढ़ाई से लेकर गेम सभी चीज बच्चे मोबाइल में करते हैं, जिससे धीरे-धीरे बच्चों की लत मोबाइल की लग जाती है. सिविल अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर दीप्ति सिंह ने बताया कि इस समय ज्यादातर बच्चे गेमिंग डिसऑर्डर के चपेट में आ रहे हैं. इसी कम उम्र में ही अभिभावक बच्चों को मोबाइल से खेलने की लत लगा देते हैं, जिसके कारण बच्चे गेमिंग डिसऑर्डर के चक्कर में फस जाते हैं. उन्होंने कहा कि एक लंबे समय तक जब बच्चा मोबाइल फोन का आदि हो जाता है, तो मोबाइल फोन के जो साइड इफेक्ट है. वह बच्चे पर पड़ते हैं. जिसके कारण बच्चा शारीरिक मानसिक तौर से पूरी तरह से कमजोर हो जाता है.

गेमिंग डिसऑर्डर की चपेट में छात्र

उन्होंने बताया कि अस्पताल की ओपीडी में जहां पहले बच्चों की संख्या बिल्कुल भी नहीं थी. वहां अब 40 फीसदी गेमिंग डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चे आ रहे हैं. पहले अभिभावक जा ही नहीं करते थे कि उनका बच्चा गेमिंग डिसऑर्डर से पीड़ित है. वहां अब अभिभावक स्वयं बच्चों को इलाज के लिए ला रहे हैं. अस्पताल में उनकी काउंसलिंग की जाती है. उनकी काउंसलिंग के बाद उनसे बातचीत करते हैं और उन्हें बातों-बातों में समझाने की कोशिश करते हैं कि किस तरह से अपनी पढ़ाई पर फोकस करें वर्चुअल लाइफ से बाहर आए.

कोविड ने लगाया लत
उन्होंने बताया कि कोरोना काल में पूरे दो साल तक लोग घरों में कैद रहे हैं. जिसके कारण हर घर के सभी सदस्य के पास खुद का फोन है और तभी अपने फोन में बिजी रहे पढ़ाई से लेकर गेमिंग सभी चीजें ऑनलाइन होने लगी. ज्यादातर अभिभावक भी मोबाइल फोन पर बिजी रहते हैं. छह महीने के बच्चे को मोबाइल में कार्टून लगा कर पकड़ा दिया जाता है ताकि वह देखता रहे और अभिभावक अपना काम कर सके. आलम यह है कि अब अभिभावक जब खाली भी होते हैं तो उस समय पर भी अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं. मोबाइल की लत ने बच्चों को पूरी तरह से बिगाड़ दिया है. इसके कारण बच्चे पिछड़ेपन के शिकार हो जाते हैं. एक लंबे समय तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करने के बाद जब बच्चे से मोबाइल छीना जाता है तो बच्चे गुस्सैल व चिड़चिड़े हो जाते हैं.

यह भी पढ़ें- कोरोना में किया काम, अब भर्ती में मिलेगा वरीयता अंक का इनाम


बच्चों के सामने ना इस्तेमाल करें मोबाइल
उन्होंने कहा कि अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा मोबाइल फोन की लत से बाहर निकले तो इसके लिए सबसे पहले आपको स्वयं मोबाइल का त्याग करना होगा. कोशिश करें कि बच्चे के सामने बिल्कुल भी मोबाइल न चलाएं. क्योंकि जब बच्चे से मोबाइल छीन लिया जाता है तो ऐसे बच्चे गुस्से में क्यों खड़े हो जाते हैं. धीरे-धीरे करके बच्चे को मोबाइल फोन से दूर करें. अचानक से कोई भी काम न करें ताकि बच्चे को यह महसूस हो कि उसे मोबाइल फोन नहीं इस्तेमाल करने दिया जा है. बच्चे के सामने कभी भी एंड्रॉयड फोन का इस्तेमाल न करें अगर बच्चा इज्जत कर रहा है तो उसे कहीं बाहर घुमा लाए.

रोजाना ओपीडी में नए केस
उन्होंने बताया कि अस्पताल की ओपीडी में रोजाना इस समय गेमिंग सोडे से पीड़ित बच्चों के चार से पांच केस आते हैं. जो बच्चे काउंसलिंग के लिए यहां पर आते हैं वह अपने पेरेंट्स पर काफी नाराज रहते हैं यहां तक कि ठीक से बात भी नहीं करते हैं. अस्पताल में आए हुए बच्चों की काउंसलिंग कर बच्चों से लंबी बात करते हैं ताकि बच्चे को लगे कि वह किसी डॉक्टर के पास नहीं बल्कि किसी घर के सदस्य से मिल रहा है.

यह भी पढ़ें- अयोध्या में लव जिहाद के मामले में पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर भेजा जेल


ऐसे छुड़ाए मोबाइल की लत
कोशिश करें कि बच्चे को एंड्रॉयड फोन बिल्कुल भी न दे अगर बात पढ़ाई की है तो घर पर ही कंप्यूटर सिस्टम लगवाएं.
छोटे से बच्चे को मोबाइल फोन पर कार्टून या म्यूजिक सुनने के लिए बिल्कुल भी न पकड़ाएं है क्योंकि आप चार दिन पकड़ आएंगे तो पांचवें दिन से वह मोबाइल फोन का आदि हो जाएगा.

बच्चे को खेलने कूदने के लिए बाहर लेकर जाएं.
अगर आप ऑफिस जाते हैं तो ऑफिस से आने के बाद अपने बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं उससे बातें करें. उसकी पढ़ाई में मदद करें.
बच्चे की मोबाइल लत छुड़ाने के लिए सबसे पहले बच्चे के सामने बिल्कुल भी मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें




लखनऊ : आज के समय में बच्चे भी काफी स्मार्ट हो रहे हैं. इस समय अस्पताल की ओपीडी में गेमिंग डिसऑर्डर के 40 फीसदी मरीज आ रहे हैं. ज्यादातर 18 साल की कम उम्र के बच्चे गेमिंग डिसऑर्डर के शिकार हैं. पढ़ाई से लेकर गेम सभी चीज बच्चे मोबाइल में करते हैं, जिससे धीरे-धीरे बच्चों की लत मोबाइल की लग जाती है. सिविल अस्पताल की मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर दीप्ति सिंह ने बताया कि इस समय ज्यादातर बच्चे गेमिंग डिसऑर्डर के चपेट में आ रहे हैं. इसी कम उम्र में ही अभिभावक बच्चों को मोबाइल से खेलने की लत लगा देते हैं, जिसके कारण बच्चे गेमिंग डिसऑर्डर के चक्कर में फस जाते हैं. उन्होंने कहा कि एक लंबे समय तक जब बच्चा मोबाइल फोन का आदि हो जाता है, तो मोबाइल फोन के जो साइड इफेक्ट है. वह बच्चे पर पड़ते हैं. जिसके कारण बच्चा शारीरिक मानसिक तौर से पूरी तरह से कमजोर हो जाता है.

गेमिंग डिसऑर्डर की चपेट में छात्र

उन्होंने बताया कि अस्पताल की ओपीडी में जहां पहले बच्चों की संख्या बिल्कुल भी नहीं थी. वहां अब 40 फीसदी गेमिंग डिसऑर्डर से पीड़ित बच्चे आ रहे हैं. पहले अभिभावक जा ही नहीं करते थे कि उनका बच्चा गेमिंग डिसऑर्डर से पीड़ित है. वहां अब अभिभावक स्वयं बच्चों को इलाज के लिए ला रहे हैं. अस्पताल में उनकी काउंसलिंग की जाती है. उनकी काउंसलिंग के बाद उनसे बातचीत करते हैं और उन्हें बातों-बातों में समझाने की कोशिश करते हैं कि किस तरह से अपनी पढ़ाई पर फोकस करें वर्चुअल लाइफ से बाहर आए.

कोविड ने लगाया लत
उन्होंने बताया कि कोरोना काल में पूरे दो साल तक लोग घरों में कैद रहे हैं. जिसके कारण हर घर के सभी सदस्य के पास खुद का फोन है और तभी अपने फोन में बिजी रहे पढ़ाई से लेकर गेमिंग सभी चीजें ऑनलाइन होने लगी. ज्यादातर अभिभावक भी मोबाइल फोन पर बिजी रहते हैं. छह महीने के बच्चे को मोबाइल में कार्टून लगा कर पकड़ा दिया जाता है ताकि वह देखता रहे और अभिभावक अपना काम कर सके. आलम यह है कि अब अभिभावक जब खाली भी होते हैं तो उस समय पर भी अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं. मोबाइल की लत ने बच्चों को पूरी तरह से बिगाड़ दिया है. इसके कारण बच्चे पिछड़ेपन के शिकार हो जाते हैं. एक लंबे समय तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करने के बाद जब बच्चे से मोबाइल छीना जाता है तो बच्चे गुस्सैल व चिड़चिड़े हो जाते हैं.

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बच्चों के सामने ना इस्तेमाल करें मोबाइल
उन्होंने कहा कि अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा मोबाइल फोन की लत से बाहर निकले तो इसके लिए सबसे पहले आपको स्वयं मोबाइल का त्याग करना होगा. कोशिश करें कि बच्चे के सामने बिल्कुल भी मोबाइल न चलाएं. क्योंकि जब बच्चे से मोबाइल छीन लिया जाता है तो ऐसे बच्चे गुस्से में क्यों खड़े हो जाते हैं. धीरे-धीरे करके बच्चे को मोबाइल फोन से दूर करें. अचानक से कोई भी काम न करें ताकि बच्चे को यह महसूस हो कि उसे मोबाइल फोन नहीं इस्तेमाल करने दिया जा है. बच्चे के सामने कभी भी एंड्रॉयड फोन का इस्तेमाल न करें अगर बच्चा इज्जत कर रहा है तो उसे कहीं बाहर घुमा लाए.

रोजाना ओपीडी में नए केस
उन्होंने बताया कि अस्पताल की ओपीडी में रोजाना इस समय गेमिंग सोडे से पीड़ित बच्चों के चार से पांच केस आते हैं. जो बच्चे काउंसलिंग के लिए यहां पर आते हैं वह अपने पेरेंट्स पर काफी नाराज रहते हैं यहां तक कि ठीक से बात भी नहीं करते हैं. अस्पताल में आए हुए बच्चों की काउंसलिंग कर बच्चों से लंबी बात करते हैं ताकि बच्चे को लगे कि वह किसी डॉक्टर के पास नहीं बल्कि किसी घर के सदस्य से मिल रहा है.

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ऐसे छुड़ाए मोबाइल की लत
कोशिश करें कि बच्चे को एंड्रॉयड फोन बिल्कुल भी न दे अगर बात पढ़ाई की है तो घर पर ही कंप्यूटर सिस्टम लगवाएं.
छोटे से बच्चे को मोबाइल फोन पर कार्टून या म्यूजिक सुनने के लिए बिल्कुल भी न पकड़ाएं है क्योंकि आप चार दिन पकड़ आएंगे तो पांचवें दिन से वह मोबाइल फोन का आदि हो जाएगा.

बच्चे को खेलने कूदने के लिए बाहर लेकर जाएं.
अगर आप ऑफिस जाते हैं तो ऑफिस से आने के बाद अपने बच्चे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं उससे बातें करें. उसकी पढ़ाई में मदद करें.
बच्चे की मोबाइल लत छुड़ाने के लिए सबसे पहले बच्चे के सामने बिल्कुल भी मोबाइल फोन का इस्तेमाल न करें




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