लखनऊ: पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया(PFI) ने बीते 16 सालों में देश के कई राज्यों में दंगे भड़काये हैं. राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में हिस्सा लिया. इसके बावजूद आज तक इसे बैन नहीं किया जा सका. वजह सरकार के पास उसके खिलाफ सबूतों की कमी होना थी, लेकिन यूपी में हाथरस, CAA और NRC व नुपुर शर्मा के बयान के विरोध में हुई हिंसा में पीएफआई का नाम आने के बाद से ही उसकी उल्टी गिनती शूरू हो गई थी.
यूपी की जांच एजेंसियों ने यूपी में फैले पीएफआई के नेक्सस का खुलासा करते हुए उसके खिलाफ राष्ट्र विरोधी एजेंडा चलाये जाने से संबंधित एक-एक सबूत इकट्ठा कर लिया है, जिसका इस्तेमाल कर केंद्र सरकार आसानी से पीएफआई पर बैन लगा सकेगी.
यूपी में शूरू हुई PFI पर कागजी कार्रवाई
केरल, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गोवा और झारखंड जैसे राज्यों में हुए दंगों में पीएफआई का नाम आने के बाद उस पर प्रतिबंध न लग पाने के पीछे सरकार के पास पर्याप्त सबूतों की कमी होना बताया जा रहा था. लेकिन साल 2019 में दिल्ली व लखनऊ में CAA और NRC के विरोध में हुई हिंसा में पीएफआई का नाम आने के बाद यूपी की जांच एजेंसियों ने पीएफआई के खिलाफ पर्याप्त सबूत इकट्ठे किये थे.
यही नहीं हाथरस में जातीय हिंसा फैलाने व नुपुर शर्मा के बयान के खिलाफ हुई हिंसा के सहारे भारत में अस्थिरता लाने की साजिश में भी पीएफआई ही थी, इसके भी सबूत यूपी की जांच एजेंसियों ने इकट्ठे किए हैं. यूपी में 50 अधिक पीएफआई के सदस्यों के खिलाफ यूएपीए के तहत कार्रवाई की गई है. लिहाजा, केंद्र सरकार अब इन्हीं सबूतों के आधार पर पीएफआई पर बैन लगाने की कार्रवाई कर सकती है.
योगी सरकार PFI को बैन करने को लेकर भेज चुकी है प्रस्ताव
दिसंबर 2019 में लखनऊ समेत यूपी के कई जिलों में CAA और NRC के विरोध में हुई हिंसा में पीएफआई का नाम आया था. इसके बाद तत्कालीन अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी और डीजीपी ओपी सिंह ने पीएफआई को बैन करने को लेकर एक प्रस्ताव तैयार किया था, जिसे केंद्रीय गृह मंत्रालय भेजा भी गया था. इसी के बाद माना गया था कि केंद्र सरकार पीएफआई को बैन करने को लेकर कोई बड़ी कार्रवाई कर सकती है.
इस बार नहीं बच सकेगा PFI
पीएफआई हर बार बैन लगने से यह कह कर बचता रहा है कि वह एक राजनीतिक संगठन है, जो गरीबों व मजबूरों की मदद करता है. ऐसे में न ही राज्य सरकारें और न ही केंद्र सरकार इस पर प्रतिबंध नहीं लगा सकी है. सरकारों के पास अब तक पीएफआई के खिलाफ ऐसे सबूत नहीं थे, जिससे यह साबित किया जा सके कि पीएफआई राष्ट्रविरोधी है व आतंकियों की मदद करती है.
ऐसे में देश भर में हुई छापेमारी व योगी सरकार से मिले सबूतों के आधार पर केंद्र सरकार पीएफआई पर बैन लगाने की कार्रवाई करेगी. केंद्र सरकार नहीं चाहती है कि दूसरा पक्ष कोर्ट जाए और वहां सबूतों की कमी से उसे राहत मिल जाए, क्योंकि साल 2008 में सिमी पर लगे प्रतिबंध को केंद्र सरकार को हटाना पड़ा था. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट के जरिए उसे फिर से बैन कर दिया गया.
सबूत इकट्ठा करने के लिए ही हुई है छापेमारी
यूपी के पूर्व डीजीपी एके जैन के मुताबिक पीएफआई जैसे संगठनों पर प्रतिबंध के लिए मजबूत साक्ष्य की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि जैसे ही उन पर बैन लगेगा तुरंत यह संगठन कोर्ट में चला जाता है. इनके पास वकील व धन राशि की कोई कमी नहीं है. इसलिए यह जो देश भर में छापे में पड़े हैं वह साक्ष्य जुटाने की दृष्टिकोण से ही पड़े हैं.
पूर्व डीजीपी एके जैन(Former DGP AK Jain) ने बताया कि बैन लगाना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि उनके ऊपर सख्त नजर निगरानी रखी जाए. साथ ही उनके ऊपर कड़ी कार्रवाई की जाए, क्योंकि आज सरकार एक संगठन को प्रतिबंधित करते हैं तो कल दूसरा संगठन उठ खड़ा हो जाता है. कार्रवाई इसी उद्देश्य से की गई है और हो सकता है कुछ और इनपुट केंद्र सरकार के पास रहे हो, जिस वजह से एनआईए व ईडी को लगाया गया है.
कैसे लगेगा PFI पर बैन?
Unlawful Activities (Prevention) Act यानी कि यूएपीए संगठनों पर बैन लगाने की शक्ती प्रदान करता है. 1967 में, अधिनियम का संबंध केवल गैरकानूनी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने से था. ऐसे संगठन अलगाववादियों का समर्थन करते थे या भारत की संप्रभुता पर सवाल उठाते थे. केंद्र सरकार किसी भी एसोसिएशन को दो साल के लिए गैरकानूनी घोषित कर सकती है, अगर उसकी राय में संगठन ने गैरकानूनी गतिविधि को प्रोत्साहित किया.
2004 में आतंकवाद रोकथाम अधिनियम यानी पोटा को निरस्त कर इसके प्रावधानों को यूएपीए में डाल दिया गया था. इस तरह संगठनों को प्रतिबंधित करने के लिए यूएपीए का सहारा लिया जाता है. स्थायी प्रतिबंध के लिए जरूरी एकमात्र शर्त यह है कि केंद्र सरकार को यह यकीन हो कि संगठन आतंकवाद में शामिल है. यही वजह है कि हाल ही में हुई पीएफआई के खिलाफ हुई कार्रवाई में यूपी में गिरफ्तार हुए संगठन के सदस्यों के खिलाफ यूएपीए के तहत ही कार्रवाई की गई है.
मोदी की हत्या करना चहता था PFI
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया(Popular Front of India)के 15 राज्यों के 93 ठिकानों पर 22 सितंबर को NIA and ED ने ऑपरेशन ऑक्टोपस(Operation Octopus) के तहत छापेमारी की थी. अब इस मामले में जांच एजेंसी ने बड़ा दावा किया था कि कोझिकोड से गिरफ्तार PFI वर्कर शफीक पायथे ने खुलासा किया है कि पटना में 12 जुलाई को प्रधानमंत्री की रैली में हमले की साजिश की गई थी, जिसके फंडिंग में शफीक पायथे भी शामिल था.
इसके लिये संगठन ने मोदी पर हमला करने के लिए बकायदा एक ट्रेनिंग कैंप भी लगाया था, जिससे 2013 जैसी घटना को अंजाम दिया जा सके. अक्टूबर 2013 में पटना गांधी मैदान में तत्कालीन भाजपा के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी की रैली में सिलसिलेवार बम ब्लास्ट हुए थे.
भारत को इस्लामिक स्टेट बनाना चहता है PFI
पीएफआई भारत को साल 2047 तक इस्लामिक स्टेट बनाने के लिये गजवा-ए-हिंद मिशन पर भी काम कर रहा था. यूपी एसटीएफ ने जिन मेरठ व वाराणसी से पीएफआई के 6 सदस्यों को गिरफ्तार किया है, उन्होंने पूछताछ में खुलासा किया है कि गजवा-ए-हिंद मिशन को पूरा करने के लिए यूपी में फंड इकट्ठा किया जा रहा था. यही नहीं ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम युवाओं को भारत के खिलाफ भड़का कर इस मिशन के साथ जोड़ने के लिए यूपी में ही योजना बनाई जा रही थी.