लखनऊ: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओमप्रकाश सिंह के तीन महीने के सेवा विस्तार पर सहमति जताई है. लिहाजा अब आगामी तीन महीने तक यूपी पुलिस के मुखिया डीजीपी ओपी सिंह ही होंगे. जैसा कि 31 जनवरी 2020 में डीजीपी ओपी सिंह का कार्यकाल समाप्त हो रहा था. वहीं कार्यकाल समाप्त होने के 19 दिन पहले सीएम योगी ने तीन महीने के सेवा विस्तार पर सहमति जताई है. सीएम की सहमति के बाद 30 अप्रैल तक ओपी सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस के मुखिया (डीजीपी) के तौर पर काम करेंगे.
1983 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं ओपी सिंह
डीजीपी ओपी सिंह का जन्म दो जनवरी 1960 को हुआ था. ओपी सिंह 1983 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह के कार्यकाल पूरा करने के बाद ओपी सिंह को यूपी पुलिस में बतौर डीजीपी जिम्मेदारी दी गई थी. डीजीपी पद संभालने से पहले ओपी सिंह केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसफ) के डीजी के पद पर तैनात थे. साथ ही वह राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल (एनडीआरएफ) के महानिदेशक के तौर पर भी कार्य कर चुके हैं.
यह रही बड़ी उपलब्धियां
अपने कार्यकाल के दौरान डीजीपी ओपी सिंह ने कई कड़े कदम उठाए. उत्तर प्रदेश में डीजीपी का पद संभालने के बाद ओपी सिंह ने कानून व्यवस्था को बेहतर करने के लिए कई सख्त कदम उठाए. उनके निर्देशों के तहत ही प्रदेश में ऑपरेशन एंटी रोमियो स्क्वायड, जीरो टॉलरेंस नीति, ऑपरेशन क्लीन चलाए गए. सिंह के कार्यकाल के दौरान 3,000 से अधिक एनकाउंटर हुए, जिनमें 70 से अधिक कुख्यात अपराधी मारे गए.
CAA के विरोध में हुई आगजनी और हिंसा
डीजीपी ओपी सिंह के कार्यकाल के दौरान नागरिकता संशोधन कानून 2019 के विरोध में प्रदेश के कई जिलों में आगजनी और हिंसा देखने को मिली. साथ ही ओपी सिंह ने अपने कार्यकाल के दौरान अयोध्या विवादित फैसला, कुंभ के दौरान शांति व्यवस्था बनाए रखने में कामयाबी हासिल की. चुनौतियों की बात करें तो डीजीपी ओपी सिंह के सामने राजधानी लखनऊ में हुए कमलेश तिवारी हत्याकांड, सोनभद्र नरसंहार, मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं चुनौतीपूर्ण बनी रहीं.
अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश रहा आगे
डीजीपी ओपी सिंह ने कार्यभार संभालने के बाद भले ही कानून व्यवस्था को बेहतर करने के लिए तमाम फैसले लिए हों, लेकिन इन फैसलों के बावजूद भी प्रदेश में अपराधों की संख्या में कमी नहीं आई. अगर आंकड़ों की बात करें तो एनसीआरबी की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के तहत उत्तर प्रदेश में वर्ष 2018 में 5945 वर्ष 2017 में 56011 सिर्फ महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध रिकॉर्ड किए गए. वहीं वर्ष 2017 के आंकड़ों की बात करें तो प्रदेश में 3,10,084 आईपीसी के मामले दर्ज किए गए.