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लखनऊ: भारत के 4 राज्यों के लिए यूपी के इस संस्थान में होता है येलो फीवर के लिए टीकाकरण

भारत से साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीका के देशों में जाने से पहले हर भारतीय को येलो फीवर वैक्सीनेशन करवाना बेहद जरुरी है. वैक्सीनेशन ही येलो फीवर के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने में सहायक होता है. डॉ. मसूद ने बताया कि एक बार येलो फीवर वैक्सीनेशन होने के बाद ताउम्र येलो फीवर होने की संभावना नहीं होती.

नेपाल समेत भारत के 4 राज्यों के लिए इस संस्थान में होता है.
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Published : May 4, 2019, 11:22 PM IST

लखनऊ: भारत से विदेशों में काम करने और घूमने के लिहाज से काफी लोग साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीकन देशों में हर साल जाते हैं साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीका के देश में जाने से पहले हर भारतीय को येलो फीवर वैक्सीनेशन करवाना बेहद अहम प्रक्रिया मानी जाती है. वैक्सीनेशन ही उन्हें येलो फीवर के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने में सहायक होता है.

नेपाल समेत भारत के 4 राज्यों के लिए इस संस्थान में होता है.


केजीएमयू के प्रोफेसर डॉ. जमाल मसूद ने बताया कि

  • उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, बिहार और नेपाल जैसी जगहों के लिए केजीएमयू एक मात्र स्थान है जहां से लोग साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीकन देशों में जाने से पहले आते हैं.
  • दस दिन के अंतराल में येलो फीवर वैक्सीनेशन की प्रतिरोधक क्षमता लोगों के शरीर में उत्पन्न होती है और उसके बाद ही उन्हें जाने के अनुमति मिलती है.
  • मसूद ने बताया कि एक बार येलो फीवर वैक्सीनेशन होने के बाद ताउम्र येलो फीवर होने के चांसेस नहीं होते.
  • कीनिया, युगांडा, अर्जेंटीना, कोलंबिया, गुयाना, पेरु, उरूग्वे, वेनेजुएला, समेत साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीका के लगभग 43 देशों में जाने से पहले येलो फीवर वैक्सीनेशन कराया जाता है.
  • वैक्सीनेशन एक वर्ष की उम्र के बाद से लेकर सात वर्ष से कम आयु तक के लोगों का किया जाता है.
  • साउथ अफ्रीका के देशों में जाने वाले ज्यादातर लोग काम के सिलसिले में जाते हैं या फिर घूमने के सिलसिले में जाते हैं, और इसलिए उन्हें येलो फीवर वैक्सीनेशन दिया जाता है.
  • 2017 के आंकड़ों के मुताबिक किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में नेपाल और भारत के उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और बिहार से 2018 में 2554 यात्रियों ने येलो फीवर वैक्सीनेशन करवाया था.

लखनऊ: भारत से विदेशों में काम करने और घूमने के लिहाज से काफी लोग साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीकन देशों में हर साल जाते हैं साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीका के देश में जाने से पहले हर भारतीय को येलो फीवर वैक्सीनेशन करवाना बेहद अहम प्रक्रिया मानी जाती है. वैक्सीनेशन ही उन्हें येलो फीवर के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने में सहायक होता है.

नेपाल समेत भारत के 4 राज्यों के लिए इस संस्थान में होता है.


केजीएमयू के प्रोफेसर डॉ. जमाल मसूद ने बताया कि

  • उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, बिहार और नेपाल जैसी जगहों के लिए केजीएमयू एक मात्र स्थान है जहां से लोग साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीकन देशों में जाने से पहले आते हैं.
  • दस दिन के अंतराल में येलो फीवर वैक्सीनेशन की प्रतिरोधक क्षमता लोगों के शरीर में उत्पन्न होती है और उसके बाद ही उन्हें जाने के अनुमति मिलती है.
  • मसूद ने बताया कि एक बार येलो फीवर वैक्सीनेशन होने के बाद ताउम्र येलो फीवर होने के चांसेस नहीं होते.
  • कीनिया, युगांडा, अर्जेंटीना, कोलंबिया, गुयाना, पेरु, उरूग्वे, वेनेजुएला, समेत साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीका के लगभग 43 देशों में जाने से पहले येलो फीवर वैक्सीनेशन कराया जाता है.
  • वैक्सीनेशन एक वर्ष की उम्र के बाद से लेकर सात वर्ष से कम आयु तक के लोगों का किया जाता है.
  • साउथ अफ्रीका के देशों में जाने वाले ज्यादातर लोग काम के सिलसिले में जाते हैं या फिर घूमने के सिलसिले में जाते हैं, और इसलिए उन्हें येलो फीवर वैक्सीनेशन दिया जाता है.
  • 2017 के आंकड़ों के मुताबिक किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में नेपाल और भारत के उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और बिहार से 2018 में 2554 यात्रियों ने येलो फीवर वैक्सीनेशन करवाया था.
Intro:लखनऊ। भारत से से विदेशों में काम करने और घूमने के लिहाज से काफी लोग साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीकन देशों में हर साल जाते हैं साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीका के देश में जाने से पहले हर भारतीय को येलो फीवर वैक्सीनेशन करवाना बेहद अहम प्रक्रिया मानी जाती है। वैक्सीनेशन ही उन्हें येलो फीवर के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने में सहायक होता है।


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किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में येलो फीवर वैक्सीनेशन सेन्टर के इंचार्ज डॉक्टर जमाल मसूद ने बताया कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, बिहार और नेपाल जैसी जगहों के लिए केजीएमयू एक मात्र स्थान है जहां से लोग साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीकन कंट्रीज में जाने से पहले आते हैं। 10 दिन के अंतराल में येलो फीवर वैक्सीनेशन की प्रतिरोधक क्षमता लोगों के शरीर में उत्पन्न होती है और उसके बाद ही उन्हें जाने के अनुमति मिलती है मसूद ने बताया कि एक बार येलो फीवर वैक्सीनेशन होने के बाद ताउम्र पित्त ज्वर या येलो फीवर होने के चांसेस नहीं होते।

कीनिया युगांडा अर्जेंटीना चिल्ली कोलंबिया गुयाना पेरु उरूग्वे वेनेजुएला समेत साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीका के लगभग 43 देशों में जाने से पहले येलो फीवर वैक्सीनेशन कराया जाता है

वैक्सीनेशन 1 वर्ष की उम्र के बाद से लेकर 7 वर्ष से कम आयु तक के लोगों का किया जाता है। गर्भवती महिलाओं और 11 महीने के बच्चों तक में यह वैक्सीनेशन नहीं किया जा सकता।

साउथ अफ्रीका के देशों में जाने वाले ज्यादातर लोग मैं तो काम के सिलसिले में जाते हैं या फिर घूमने के सिलसिले में जाते हैं और इसलिए उन्हें जले फीवर वैक्सीनेशन दिया जाता है।

2017 के आंकड़ों के मुताबिक किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में नेपाल और भारत के उत्तर प्रदेश उत्तराखंड झारखंड और बिहार से 1445 और सन 2018 में 2554 यात्रियों ने येलो फीवर वैक्सीनेशन करवाया था।


Conclusion:प्रत्येक सोमवार और बृहस्पतिवार को लगने वाले येलो फीवर वैक्सीनेशन के लिए काफी तैयारियां करनी पड़ती है और इस वैक्सीनेशन के बाद लोगों को 2 घंटे तक वैक्सीनेशन सेंटर में ही रोक कर रखा जाता है ताकि उन्हें भी उन्हें किसी तरह की एलर्जी हो या कोई समस्या हो तो उसका तुरंत निस्तारण किया जा सके।


बाइट- डॉ जमाल मसूद, प्रोफेसर, कम्युनिटी मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट, केजीएमयू

रामांशी मिश्रा
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