लखनऊ: भारत से विदेशों में काम करने और घूमने के लिहाज से काफी लोग साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीकन देशों में हर साल जाते हैं साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीका के देश में जाने से पहले हर भारतीय को येलो फीवर वैक्सीनेशन करवाना बेहद अहम प्रक्रिया मानी जाती है. वैक्सीनेशन ही उन्हें येलो फीवर के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करने में सहायक होता है.
केजीएमयू के प्रोफेसर डॉ. जमाल मसूद ने बताया कि
- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, बिहार और नेपाल जैसी जगहों के लिए केजीएमयू एक मात्र स्थान है जहां से लोग साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीकन देशों में जाने से पहले आते हैं.
- दस दिन के अंतराल में येलो फीवर वैक्सीनेशन की प्रतिरोधक क्षमता लोगों के शरीर में उत्पन्न होती है और उसके बाद ही उन्हें जाने के अनुमति मिलती है.
- मसूद ने बताया कि एक बार येलो फीवर वैक्सीनेशन होने के बाद ताउम्र येलो फीवर होने के चांसेस नहीं होते.
- कीनिया, युगांडा, अर्जेंटीना, कोलंबिया, गुयाना, पेरु, उरूग्वे, वेनेजुएला, समेत साउथ अमेरिका और साउथ अफ्रीका के लगभग 43 देशों में जाने से पहले येलो फीवर वैक्सीनेशन कराया जाता है.
- वैक्सीनेशन एक वर्ष की उम्र के बाद से लेकर सात वर्ष से कम आयु तक के लोगों का किया जाता है.
- साउथ अफ्रीका के देशों में जाने वाले ज्यादातर लोग काम के सिलसिले में जाते हैं या फिर घूमने के सिलसिले में जाते हैं, और इसलिए उन्हें येलो फीवर वैक्सीनेशन दिया जाता है.
- 2017 के आंकड़ों के मुताबिक किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में नेपाल और भारत के उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड और बिहार से 2018 में 2554 यात्रियों ने येलो फीवर वैक्सीनेशन करवाया था.