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UP Politics : क्या शिवपाल के साथ गए प्रसपा कार्यकर्ताओं को सपा में मिल पाएगा सम्मान

शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी यानी प्रसपा का विलय समाजवादी पार्टी में हो चुका है. अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव को राष्ट्रीय महासचिव भी बनाया है, वहीं प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में रहे कार्यकर्ताओं का भविष्य क्या होगा यह एक अहम प्रश्न बन गया है. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण...

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Published : Jan 31, 2023, 11:25 PM IST

Updated : Feb 1, 2023, 6:47 AM IST

लखनऊ : मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनके चाचा प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव में मेल हो गया. शिवपाल यादव जिस तरह से चाहते थे, अखिलेश ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाकर वैसा ही सम्मान भी दे दिया. शिवपाल ने पार्टी में सक्रिय भूमिका निभानी भी शुरू कर दी है. वह जिलों के दौरे कर रहे हैं. नाराज और निष्क्रिय पुराने समाजवादियों को अपने साथ लाने के लिए हर संभव कोशिश भी कर रहे हैं. बावजूद इसके एक सवाल है, जो शिवपाल के तमाम साथियों को रह-रहकर साल रहा है. ऐसे तमाम कार्यकर्ता, जो समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव का साथ छोड़कर शिवपाल सिंह यादव के साथ उनकी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में आ गए थे, अब उनका क्या होगा? हाल ही में घोषित पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शिवपाल के एक भी साथी को जगह नहीं मिली है, यहां तक की शिवपाल यादव के पुत्र आदित्य यादव को भी इस कार्यकारिणी में शामिल नहीं किया गया है.

स्व. मुलायम सिंह यादव व शिवपाल यादव
स्व. मुलायम सिंह यादव व शिवपाल यादव





शिवपाल यादव और अखिलेश यादव में विवाद 15 अगस्त 2016 में तब शुरू हुआ, जब शिवपाल यादव मुलायम की सहमति से कौमी एकता दल का विलय समाजवादी पार्टी में कराना चाहते थे, तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसे रोक दिया. शिवपाल ने से अपना अपमान माना और पार्टी से इस्तीफा देने की बात कही, हालांकि मुलायम सिंह यादव ने उन्हें रोक लिया. इस मनमुटाव ने आग में घी वाला काम तब हुआ जब 13 सितंबर को अखिलेश यादव ने शिवपाल के करीबी माने जाने वाले दो माह पहले ही नियुक्त मुख्य सचिव दीपक सिंघल को पद से हटा दिया. शिवपाल ने इसकी शिकायत तत्कालीन पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव से की, जिसके बाद मुलायम ने अखिलेश को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया और शिवपाल सिंह यादव को नया प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. इससे नाराज मुख्यमंत्री अखिलेश ने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे शिवपाल के करीबी दो मंत्रियों को पद से हटा दिया.

अखिलेश यादव व शिवपाल यादव
अखिलेश यादव व शिवपाल यादव

जवाब में 15 सितंबर 2016 को शिवपाल ने कैबिनेट मंत्री पद और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा दे दिया. इसके बाद विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी चयन में अखिलेश की अनदेखी कर शिवपाल और मुलायम ने प्रत्याशियों की एक सूची जारी कर दी, जवाब में अखिलेश यादव ने भी अपनी एक अलग सूची जारी कर दी. विवाद इतना बढ़ा कि एक जनवरी 2017 को सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव को हटाकर अखिलेश यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया. इस परिवारिक विवाद के बाद 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को करारी पराजय का सामना करना पड़ा. इसके बाद 29 अगस्त 2018 को शिवपाल सिंह यादव ने सपा से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की नींव रखी. शिवपाल यादव का सपा में बढ़ा कद था और उन्हें मिनी मुख्यमंत्री कहा जाता था. इस कारण उनके साथ कार्यकर्ताओं का एक बड़ा समूह भी था. ‌शिवपाल के साथ इस समूह ने भी सपा छोड़ी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का हिस्सा बना.

अखिलेश यादव व शिवपाल यादव
अखिलेश यादव व शिवपाल यादव




अब जबकि शिवपाल यादव फिर परिवार और मूल पार्टी में लौट गए हैं, ऐसे में उनके साथ आए कार्यकर्ताओं का भविष्य क्या होगा, यह एक अहम प्रश्न बन गया है. ऐसे कार्यकर्ताओं का मानना है कि शिवपाल और अखिलेश तो रक्त संबंधी हैं, लेकिन क्या अखिलेश यादव कभी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में गए कार्यकर्ताओं को निष्ठावान मान पाएंगे? क्या कभी उनकी हैसियत भी अन्य पार्टी कार्यकर्ताओं की तरह सपा में बढ़ पाएगी? इन कार्यकर्ताओं की यह आशंका भी वाजिब ही दिखाई देती है, क्योंकि हाल ही में घोषित सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के किसी भी नेता को जगह नहीं मिल पाई. यहां तक कि शिवपाल अपने बेटे आदित्य यादव को भी कार्यकारिणी में शामिल नहीं करा सके, जबकि यादव कुनबे के कई अन्य लेता इस कार्यकारिणी में शामिल हैं. कहा यह भी जाता है कि शिवपाल यादव ने अलग पार्टी बना कर एक लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव लड़कर देख लिया. उन्हें कोई सफलता नहीं मिली. वह अपने पुत्र आदित्य यादव के भविष्य को लेकर चिंतित थे और इसीलिए उन्होंने सपा में वापसी की है. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में शिवपाल के साथी रहे कुछ कार्यकर्ता अभी आशान्वित हैं कि शायद उन्हें पार्टी की राज्य कार्यकारिणी में जगह मिल जाए. गौरतलब है कि पार्टी की राज्य कार्यकारिणी का ऐलान बहुत जल्दी होने वाला है, ऐसे में कार्यकर्ताओं की आशंकाओं के सभी जवाब उन्हें जल्द ही मिल सकते हैं.

अखिलेश यादव, शिवपाल यादव व अन्य
अखिलेश यादव, शिवपाल यादव व अन्य





इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ प्रदीप यादव कहते हैं कि 'इसमें कोई संदेह नहीं कि शिवपाल और कार्यकर्ताओं की बात बराबर नहीं है. शिवपाल को जो सम्मान सपा में मिलेगा, उसी तरह प्रसपा के कार्यकर्ताओं को देखा जाए यह कठिन लगता है. दूसरी बात अपने राजनीतिक जीवन में अब तक अखिलेश यादव ने इतना बड़ा दिल कम ही दिखाया है, जब वह गलतियों पर किसी को माफ कर सकते हों, हालांकि आदित्य यादव को अखिलेश कहीं न कहीं समायोजित जरूर कर लेंगे क्योंकि शिवपाल यादव की उम्र हो रही है और उनसे अखिलेश को कोई खतरा नहीं है. यदि शिवपाल वफादारी से अखिलेश के साथ खड़े रहे, तो उनके बेटे का भविष्य अच्छा ही रहेगा. यदि अखिलेश बड़े मन से काम करें, तो उन्हें प्रसपा कार्यकर्ताओं को पूरा सम्मान देना चाहिए. आखिर यह कार्यकर्ता उन्हीं की पार्टी को आगे ले जाने का काम करेंगे.

यह भी पढ़ें : UP Politics : अखिलेश यादव ने कहा, प्रदेश में अराजकता फैलाकर सामाजिक सौहार्द बिगाड़ना चाहती है भाजपा

लखनऊ : मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और उनके चाचा प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव में मेल हो गया. शिवपाल यादव जिस तरह से चाहते थे, अखिलेश ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाकर वैसा ही सम्मान भी दे दिया. शिवपाल ने पार्टी में सक्रिय भूमिका निभानी भी शुरू कर दी है. वह जिलों के दौरे कर रहे हैं. नाराज और निष्क्रिय पुराने समाजवादियों को अपने साथ लाने के लिए हर संभव कोशिश भी कर रहे हैं. बावजूद इसके एक सवाल है, जो शिवपाल के तमाम साथियों को रह-रहकर साल रहा है. ऐसे तमाम कार्यकर्ता, जो समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव का साथ छोड़कर शिवपाल सिंह यादव के साथ उनकी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में आ गए थे, अब उनका क्या होगा? हाल ही में घोषित पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शिवपाल के एक भी साथी को जगह नहीं मिली है, यहां तक की शिवपाल यादव के पुत्र आदित्य यादव को भी इस कार्यकारिणी में शामिल नहीं किया गया है.

स्व. मुलायम सिंह यादव व शिवपाल यादव
स्व. मुलायम सिंह यादव व शिवपाल यादव





शिवपाल यादव और अखिलेश यादव में विवाद 15 अगस्त 2016 में तब शुरू हुआ, जब शिवपाल यादव मुलायम की सहमति से कौमी एकता दल का विलय समाजवादी पार्टी में कराना चाहते थे, तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसे रोक दिया. शिवपाल ने से अपना अपमान माना और पार्टी से इस्तीफा देने की बात कही, हालांकि मुलायम सिंह यादव ने उन्हें रोक लिया. इस मनमुटाव ने आग में घी वाला काम तब हुआ जब 13 सितंबर को अखिलेश यादव ने शिवपाल के करीबी माने जाने वाले दो माह पहले ही नियुक्त मुख्य सचिव दीपक सिंघल को पद से हटा दिया. शिवपाल ने इसकी शिकायत तत्कालीन पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव से की, जिसके बाद मुलायम ने अखिलेश को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया और शिवपाल सिंह यादव को नया प्रदेश अध्यक्ष बना दिया. इससे नाराज मुख्यमंत्री अखिलेश ने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे शिवपाल के करीबी दो मंत्रियों को पद से हटा दिया.

अखिलेश यादव व शिवपाल यादव
अखिलेश यादव व शिवपाल यादव

जवाब में 15 सितंबर 2016 को शिवपाल ने कैबिनेट मंत्री पद और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा दे दिया. इसके बाद विधानसभा चुनाव के लिए प्रत्याशी चयन में अखिलेश की अनदेखी कर शिवपाल और मुलायम ने प्रत्याशियों की एक सूची जारी कर दी, जवाब में अखिलेश यादव ने भी अपनी एक अलग सूची जारी कर दी. विवाद इतना बढ़ा कि एक जनवरी 2017 को सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव को हटाकर अखिलेश यादव को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया. इस परिवारिक विवाद के बाद 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को करारी पराजय का सामना करना पड़ा. इसके बाद 29 अगस्त 2018 को शिवपाल सिंह यादव ने सपा से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की नींव रखी. शिवपाल यादव का सपा में बढ़ा कद था और उन्हें मिनी मुख्यमंत्री कहा जाता था. इस कारण उनके साथ कार्यकर्ताओं का एक बड़ा समूह भी था. ‌शिवपाल के साथ इस समूह ने भी सपा छोड़ी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का हिस्सा बना.

अखिलेश यादव व शिवपाल यादव
अखिलेश यादव व शिवपाल यादव




अब जबकि शिवपाल यादव फिर परिवार और मूल पार्टी में लौट गए हैं, ऐसे में उनके साथ आए कार्यकर्ताओं का भविष्य क्या होगा, यह एक अहम प्रश्न बन गया है. ऐसे कार्यकर्ताओं का मानना है कि शिवपाल और अखिलेश तो रक्त संबंधी हैं, लेकिन क्या अखिलेश यादव कभी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में गए कार्यकर्ताओं को निष्ठावान मान पाएंगे? क्या कभी उनकी हैसियत भी अन्य पार्टी कार्यकर्ताओं की तरह सपा में बढ़ पाएगी? इन कार्यकर्ताओं की यह आशंका भी वाजिब ही दिखाई देती है, क्योंकि हाल ही में घोषित सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के किसी भी नेता को जगह नहीं मिल पाई. यहां तक कि शिवपाल अपने बेटे आदित्य यादव को भी कार्यकारिणी में शामिल नहीं करा सके, जबकि यादव कुनबे के कई अन्य लेता इस कार्यकारिणी में शामिल हैं. कहा यह भी जाता है कि शिवपाल यादव ने अलग पार्टी बना कर एक लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव लड़कर देख लिया. उन्हें कोई सफलता नहीं मिली. वह अपने पुत्र आदित्य यादव के भविष्य को लेकर चिंतित थे और इसीलिए उन्होंने सपा में वापसी की है. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में शिवपाल के साथी रहे कुछ कार्यकर्ता अभी आशान्वित हैं कि शायद उन्हें पार्टी की राज्य कार्यकारिणी में जगह मिल जाए. गौरतलब है कि पार्टी की राज्य कार्यकारिणी का ऐलान बहुत जल्दी होने वाला है, ऐसे में कार्यकर्ताओं की आशंकाओं के सभी जवाब उन्हें जल्द ही मिल सकते हैं.

अखिलेश यादव, शिवपाल यादव व अन्य
अखिलेश यादव, शिवपाल यादव व अन्य





इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ प्रदीप यादव कहते हैं कि 'इसमें कोई संदेह नहीं कि शिवपाल और कार्यकर्ताओं की बात बराबर नहीं है. शिवपाल को जो सम्मान सपा में मिलेगा, उसी तरह प्रसपा के कार्यकर्ताओं को देखा जाए यह कठिन लगता है. दूसरी बात अपने राजनीतिक जीवन में अब तक अखिलेश यादव ने इतना बड़ा दिल कम ही दिखाया है, जब वह गलतियों पर किसी को माफ कर सकते हों, हालांकि आदित्य यादव को अखिलेश कहीं न कहीं समायोजित जरूर कर लेंगे क्योंकि शिवपाल यादव की उम्र हो रही है और उनसे अखिलेश को कोई खतरा नहीं है. यदि शिवपाल वफादारी से अखिलेश के साथ खड़े रहे, तो उनके बेटे का भविष्य अच्छा ही रहेगा. यदि अखिलेश बड़े मन से काम करें, तो उन्हें प्रसपा कार्यकर्ताओं को पूरा सम्मान देना चाहिए. आखिर यह कार्यकर्ता उन्हीं की पार्टी को आगे ले जाने का काम करेंगे.

यह भी पढ़ें : UP Politics : अखिलेश यादव ने कहा, प्रदेश में अराजकता फैलाकर सामाजिक सौहार्द बिगाड़ना चाहती है भाजपा

Last Updated : Feb 1, 2023, 6:47 AM IST
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