लखनऊ : उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्ष के पदों पर चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. 75 जिलों में से 67 जिलों में भारतीय जनता पार्टी ने विजय हासिल की है. वहीं समाजवादी पार्टी ने सिर्फ पांच सीटों पर अपनी जीत दर्ज की है. यूपी में समाजवादी पार्टी या अन्य राजनीतिक दलों की तरफ से जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा और सरकार पर धनबल, बाहुबल और सत्ता के दुरुपयोग के गंभीर आरोप लगाए गए हैं.
जिला पंचायत अध्यक्ष के कार्य क्या हैं?
जिला पंचायत अध्यक्ष जिले भर की ग्राम पंचायतों का हेड होता है. अध्यक्ष के जिम्मे पंचायतों की सड़क, सफाई, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और अन्य बुनियादी सुविधाओं को जुटाने तथा उनके विकास की रूपरेखा तैयार करने की जिम्मेदारी होती है. गांव के स्तर पर जो कार्य ग्राम प्रधान का होता है. वही काम जिला स्तर पर जिला पंचायत अध्यक्ष का होता है. जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जिस पार्टी की सरकार होती है, उसके इशारे पर होता है. यह सारा खेल जिला पंचायत के विकास कार्यों को लेकर मिलने वाले करोड़ों रुपये के बजट की बंदरबांट को लेकर होता है.
सपा के सदस्य ज्यादा फिर भी नहीं हुई जीत
जिन जिलों में समाजवादी पार्टी के समर्थित जिला पंचायत सदस्य थे वहां पर भी समाजवादी पार्टी जीत दर्ज नहीं कर पाई. उदाहरण के तौर पर राजधानी लखनऊ की बात करें तो यहां पर जिला पंचायत सदस्य के 25 पद हैं और इनमें मुख्य रूप से 10 सदस्य समाजवादी पार्टी के समर्थन से जीते हैं. वहीं भारतीय जनता पार्टी के समर्थित सदस्यों की संख्या मात्र तीन रही. सपा का आरोप है कि धनबल, बाहुबल और सत्ता के दुरुपयोग के चलते भाजपा लखनऊ में बीजेपी विजयी हुई. भाजपा की आरती रावत लखनऊ में जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित हुईं.
इसे भी पढ़ें- जिला पंचायत अध्यक्ष चुनावः इन पांच जिलों में है बीजेपी का दबदबा, फिर भी हुई करारी हार
विकास कार्यों के बजट में बंदरबांट के आरोप
दरअसल, यह सारा खेल जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर काबिज होने का होता है. इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि जिला पंचायत के अंतर्गत होने वाले ग्रामीण क्षेत्रों के विकास को लेकर भारी भरकम बजट आता है. हर जिले के विकास कार्यों के लिए करोड़ों रुपये शासन से मिलता है. विकास कार्यों को लेकर मिलने वाले पैसे और टेंडर प्रक्रिया को मैनेज करते हुए कमीशन बाजी और ठेका, पट्टे का काम होता है. इसमें जिला पंचायत अध्यक्ष जिला पंचायत सदस्यों के साथ मिलकर धनराशि खर्च करता है.
पूर्व न्यायाधीश राजनीतिक विश्लेषक सीबी पांडे कहते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों के विकास कार्यों के टेंडर आवंटन की प्रक्रिया जिला पंचायत अध्यक्ष के इशारे पर ही होती है. इसमें करीब 40 फीसद कमीशन बाजी होती है और अपने हिसाब से टेंडर मैनेज किए जाते हैं. इस भारी-भरकम बजट में बंदरबांट किया जाता है. कोई भी सरकार जिला पंचायत के विकास कार्यों को लेकर जांच नहीं कराती, जबकि इसमें तमाम तरह की अनियमितता और भ्रष्टाचार होता रहता है. यही कारण है कि इस चुनाव में धनबल और बाहुबल का भरपूर उपयोग किया जाता है.
इतना मिलता है विकास कार्यों के लिए बजट
उत्तर प्रदेश के पंचायती राज विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह के मुताबिक छोटे जिले में प्रतिवर्ष विकास कार्यों को लेकर जिला पंचायत को धनराशि के रूप में 35 से 45 करोड़ रुपये का बजट अलग-अलग मद में आवंटित होता है. वहीं बड़े जिलों की बात करें तो प्रतिवर्ष 150 से 160 करोड़ रुपये बजट केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं को लेकर धनराशि आवंटित होती है.
इसे भी पढ़ें- जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव परिणाम: 67 सीटों पर भाजपा ने लहराया परचम, 5 सपा के खाते में
जिसकी सरकार उसका ही जिला पंचायत अध्यक्ष पदों पर बोलबाला
प्रदेश में जिस भी पार्टी की सरकार होती है उसके ही जिला पंचायत अध्यक्ष ज्यादातर जिलों में निर्वाचित होते हैं. कई बार इन में चुनाव के दौरान काफी संख्या में जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध निर्वाचित होते हैं. तो कई बार इसका चुनाव होता है. इसके बावजूद सत्तारूढ़ पार्टी की ही जीत होती है. यूपी में पिछले दिनों संपन्न हुए जिला पंचायत अध्यक्षों के निर्वाचन की बात करें तो नामांकन प्रक्रिया के दौरान ही 21 जिलों में भाजपा निर्विरोध निर्वाचित हुई थी, जबकि एक जिले में समाजवादी पार्टी ने निर्विरोध जीत दर्ज की.
आरोप है कि जब मतदान की बारी आई तो धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल किया गया और भाजपा की सरकार ने 67 जिलों में अपनी जीत दर्ज की. समाजवादी पार्टी की तरफ से आरोप लगाए गए की सपा के समर्थित जिला पंचायत सदस्यों को बंधक बनाया गया और भाजपा को ही वोट देने का दबाव डाला गया. इतना ही नहीं चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी की तरफ से निर्वाचन आयोग में शिकायत भी की गई और निष्पक्ष चुनाव की मांग की गई.
सपा सरकार में 62 तो उससे पहले बसपा सरकार में जीते थे 72 अध्यक्ष पद
भले ही विपक्ष की तरफ से बीजेपी पर तमाम तरह के आरोप लगाए जा रहे हो, लेकिन यूपी में जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी और जिला पंचायत अध्यक्ष के निर्वाचन की प्रक्रिया पूरी हुई तब 62 जिलों में सपा के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे. वहीं बहुजन समाज पार्टी की सरकार में 72 जिलों में बसपा के जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि प्रदेश में जिस पार्टी की सरकार होती है, जिला पंचायत अध्यक्ष के पद सर्वाधिक संख्या में उसी दल को जाते हैं.
जिला पंचायत सदस्यों की लगती है बोली
जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीतने के लिए जिला पंचायत सदस्य अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं. जिला पंचायत अध्यक्ष का निर्वाचन जिला पंचायत सदस्य करते हैं. ऐसे में आरोप लगते रहें है कि जिला पंचायत सदस्यों की यूपी में बकायदा बोली लगती है. कहा जाता है कि जिला पंचायत अध्यक्ष के जो दावेदार होते हैं उनकी तरफ से बकायदा सदस्यों की खरीद-फरोख्त की जाती है. यह कोई नई बात नहीं है. सूत्र बताते हैं कि कई जिलों में जिला पंचायत सदस्य जिला पंचायत अध्यक्ष चुनने को लेकर 20 लाख से लेकर एक करोड़ रुपये तक के रेट लगे. लखनऊ से सटे एक जिले के जिला पंचायत अध्यक्ष के दावेदार रहे नेता ने कहा कि उन्होंने अपनी जीत के लिए करीब 15 से 17 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. उनके यहां 80 लाख से लेकर एक करोड़ तक जिला पंचायत सदस्यों का रेट निर्धारित था. कई जगहों पर पैसा और गिफ्ट के रूप में स्कॉर्पियो, सफारी और बोलेरो जैसी गाड़ियां भी साथ में दी गई.
इसे भी पढ़ें- '2022' का सेमीफाइनल है पंचायत चुनाव, परिणाम बताएंगे राजनीतिक दलों का 'सियासी भविष्य'
राजनीतिक विश्लेषक ने खोली पोल
पूर्व न्यायाधीश राजनीतिक विश्लेषक सीबी पांडे ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि जिला पंचायत अध्यक्षों का निर्वाचन धनबल बाहुबल और सत्ता के दुरुपयोग से ही लड़ा जाता है. उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि "जब जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित हुए तो सरकार की तरफ से सभी निर्वाचित जिला पंचायत सदस्यों के साथ पुलिसकर्मी सुरक्षा के रूप में लगा दिए गए. दरअसल यह सुरक्षा नहीं थी बल्कि जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीतने के लिए जिला पंचायत सदस्यों को बंधक बनाने का काम किया गया था. इसके आरोप भी राजनीतिक दलों की तरफ से लगाए जाते रहे हैं."
'धमकाकर लिया जाता है वोट'
राजनीतिक विश्लेषक सीबी पांडे कहते हैं कि जिस भी पार्टी की सरकार होती है, सर्वाधिक संख्या में जिला पंचायत अध्यक्ष के पद वही जीतती रही है. इसमें निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान दूसरी पार्टी के समर्थित उम्मीदवारों को नामांकन से रोका जाता है. नामांकन होता है तो उनके पर्चे खारिज कर दिए जाते हैं और जब चुनाव की प्रक्रिया होती है यानी मतदान शुरू होता है तो दबाव डालकर सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार को जिताने के लिए धमकी भी दी जाती है. जबरदस्ती सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार को जिताने का काम प्रशासन के स्तर पर कराया जाता है.
इसे भी पढ़ें- जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव: योगी सरकार के कामों की वजह से मिली सफलता- स्वतंत्र देव सिंह
कोई भी सरकार इसकी जांच नहीं कराती
राजनीतिक विश्लेषक सीबी पांडे कहते हैं कि विकास कार्यों को लेकर जिला पंचायतों को जो सैकड़ों करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित होती है उसमें बंदरबांट होती है. ठेकेदारों से 40 फीसद का कमीशन लिया जाता है और अपने मन मुताबिक टेंडर प्रक्रिया को मैनेज किया जाता है. कोई भी सरकार इसकी जांच नहीं कराती है, क्योंकि सब लोग एक-दूसरे से मिले हुए हैं. जब जिस की बारी आती है वह जनता के पैसे को लूटने का काम करती है.
विपक्ष के आरोपों का किया खंडन
भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि समाजवादी पार्टी पूरी तरह से बौखला गई है और जब उसके सदस्य चुनाव नहीं जीत पाए हैं तो वह तमाम तरह के अनर्गल आरोप लगा रही है. आगे उन्होंने कहा कि जब सपा की सरकार थी तब उनकी पार्टी के ज्यादातर उम्मीदवार जीते थे और आज वह इस तरह के आरोप लगा रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव 2022 में भी ऐतिहासिक जीत दर्ज करेगी. सरकार ने जो जनहित के ग्रामीण विकास के काम किए हैं उसके आधार पर जिला पंचायत अध्यक्ष के निर्वाचन में उसे ऐतिहासिक जीत मिली है और इसी कारण समाजवादी पार्टी परेशान है.
इसे भी पढ़ें- आजादी के बाद पहली बार इस सीट पर भाजपा ने जीता जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव