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मायावती को 28 साल बाद क्यों याद आ रहा गेस्ट हाउस कांड, कहीं सदन से दूरी कम करना तो वजह नहीं - Akhilesh Yadav

क्या मायावती का गेस्ट हाउस कांड का राग अलापना बसपा को फायदा दिला पाएगा? क्या इसके जरिए मायावती समाजवादी पार्टी को नुकसान पहुंचाने में सफल हो पाएंगीं? पढ़ें रिपोर्ट

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Published : Apr 3, 2023, 9:14 PM IST

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की लोअर और अपर हाउस से लगातार दूरी बढ़ती ही जा रही है. उनके लिए ये चिंता का सबब बन रही है. यही वजह है कि बसपा सुप्रीमो ने हाउस से बढ़ती हुई दूरी को कम करने के लिए 1995 के गेस्ट हाउस कांड का राग अलापा है. मायावती को गेस्ट हाउस कांड याद दिलाने से आगामी निकाय चुनाव 2023 और लोकसभा चुनाव 2024 में फायदा नजर आ रहा है. वैसे माना ये जा रहा है कि इस राग के जरिए बसपा सुप्रीमो समाजवादी पार्टी को नुकसान पहुंचा सकती हैं.

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ये स्टंट ही मायावती ने सपा को नुकसान पहुंचाने के लिए खेला है. हालांकि मायावती को इस स्टंट का लाभ मिलेगा या नहीं, ये कहना अभी मुश्किल है, लेकिन सपा को नुकसान जरूर हो सकता है. दरअसल, बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने रविवार को जब निकाय चुनाव की तैयारियों को लेकर पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ ही प्रदेश के सभी 75 जिलों के जिलाध्यक्षों को संबोधित किया तो उन्होंने यह भी याद दिलाया कि गेस्ट हाउस कांड अगर न हुआ होता तो देश भर में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी राज कर रही होती. लेकिन, समाजवादी पार्टी सभी दलितों और अति पिछड़ों की हितैषी नहीं रही है, इसीलिए इस घटना को अंजाम दिया गया था.

मायावती ने यह भी कहा था कि अब दलित वोट बैंक को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए समाजवादी पार्टी कांशीराम की प्रतिमा लगाकर नाटक कर रही है. समाजवादी पार्टी ने डॉ. भीमराव अंबेडकर का सम्मान नहीं किया तो यह कांशीराम की प्रतिमा लगाकर दलितों का भला क्या करेंगे? मायावती के 28 साल बाद गेस्ट हाउस कांड चर्चा में लाने को लेकर अब सियासी गलियारों में भी चर्चाएं तेज हो गई हैं.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि गेस्ट हाउस कांड की याद मायावती को इसीलिए आई है क्योंकि अब उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में मायावती की स्थिति बेहतर होने के बजाय बदतर होती जा रही है. 2022 का विधानसभा चुनाव हुआ उसमें 403 सीटों में से सिर्फ एक सीट ही बहुजन समाज पार्टी जीतने में सफल हो पाई. मायावती को अंदाजा लग गया है कि अब उबर पाना मुश्किल है. समाजवादी पार्टी बहुजन समाज पार्टी को कमजोर कर रही है. लिहाजा, दलितों को लुभाने के लिए मायावती ने याद दिलाया है कि गेस्ट हाउस कांड सपा के नेताओं की ही देन थी, ऐसे में सपा से दूरी बनाए रखें.

24 साल बाद एक मंच पर आए थे माया मुलायमः मायावती के साथ गेस्ट हाउस कांड साल 1995 में हुआ था. तकरीबन 23 साल तक इन दोनों पार्टियों में दरार पड़ी रही, लेकिन माया और मुलायम के बीच कड़वाहट 24 साल बाद साल 2019 में उस समय कम हुई जब मुजफ्फरनगर में पहली बार एक मंच पर नजर आए. लोकसभा चुनाव 2019 में बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था और इसका फायदा बहुजन समाज पार्टी को खूब मिला.

जहां 2014 लोकसभा चुनाव में मायावती की एक भी सीट नहीं आई थी, वहीं 2019 में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़कर 10 हो गई, जबकि समाजवादी पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ा था. सिर्फ पांच सीटें जीतने में ही समाजवादी पार्टी सफल हो पाई थी. जैसे ही लोकसभा चुनाव खत्म हुआ मायावती और अखिलेश का गठबंधन बिखर गया. अब दोनों ही नेता एक दूसरे पर जमकर प्रहार कर रहे हैं.

अखिलेश ने लिया मायावती से बदलाः लोकसभा चुनाव 2019 में जब बहुजन समाज पार्टी के साथ अखिलेश ने गठबंधन किया तो इसका नतीजा उनके पक्ष में नहीं रहा. मायावती ने फायदा उठाकर गठबंधन भी तोड़ दिया. इसके बाद नाराज सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी बहुजन समाज पार्टी के किले में सेंध लगाना शुरू कर दी. तमाम नेताओं को बहुजन समाज पार्टी से तोड़कर सपा में शामिल करा लिया. इसका नतीजा यह हुआ कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की हालत खस्ता हो गई.

अब बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती को लग रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी सपा मुखिया अखिलेश यादव बसपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं तो उन्होंने अपने कोर वोटरों को गेस्ट हाउस कांड की याद दिलाई है, जिससे उनका आकर्षण समाजवादी पार्टी के प्रति न हो सके, बल्कि बसपा के साथ मजबूती से खड़े हों और लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को वोट हासिल हो सके.

राजनीतिक विश्लेषक प्रभात रंजन दीन का कहना है कि गेस्ट हाउस कांड की याद मायावती को यूं ही नहीं आई. उनकी पार्टी की जो स्थिति उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में हुई है, उससे उनकी यह मजबूरी बन गई है कि अपने कोर वोटरों को बिखरने से कैसे रोक सकें. 2022 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से समाजवादी पार्टी ने उनकी उम्मीदों को झटका दिया था, उससे अभी तक वे उबर नहीं पा रही हैं. इतना ही नहीं अब सिर्फ पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री ही हैं. सदन से भी उनकी दूरी बढ़ गई है. यही वजह है कि गेस्ट हाउस कांड याद दिलाकर अपने मतदाताओं को रोकने की कोशिश कर रही हैं.

ये भी पढ़ेंः बसपा के वोट बैंक को साधने के लिए अखिलेश यादव ने रायबरेली में कांशीराम की प्रतिमा का किया अनावरण

लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की लोअर और अपर हाउस से लगातार दूरी बढ़ती ही जा रही है. उनके लिए ये चिंता का सबब बन रही है. यही वजह है कि बसपा सुप्रीमो ने हाउस से बढ़ती हुई दूरी को कम करने के लिए 1995 के गेस्ट हाउस कांड का राग अलापा है. मायावती को गेस्ट हाउस कांड याद दिलाने से आगामी निकाय चुनाव 2023 और लोकसभा चुनाव 2024 में फायदा नजर आ रहा है. वैसे माना ये जा रहा है कि इस राग के जरिए बसपा सुप्रीमो समाजवादी पार्टी को नुकसान पहुंचा सकती हैं.

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ये स्टंट ही मायावती ने सपा को नुकसान पहुंचाने के लिए खेला है. हालांकि मायावती को इस स्टंट का लाभ मिलेगा या नहीं, ये कहना अभी मुश्किल है, लेकिन सपा को नुकसान जरूर हो सकता है. दरअसल, बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने रविवार को जब निकाय चुनाव की तैयारियों को लेकर पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ ही प्रदेश के सभी 75 जिलों के जिलाध्यक्षों को संबोधित किया तो उन्होंने यह भी याद दिलाया कि गेस्ट हाउस कांड अगर न हुआ होता तो देश भर में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी राज कर रही होती. लेकिन, समाजवादी पार्टी सभी दलितों और अति पिछड़ों की हितैषी नहीं रही है, इसीलिए इस घटना को अंजाम दिया गया था.

मायावती ने यह भी कहा था कि अब दलित वोट बैंक को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए समाजवादी पार्टी कांशीराम की प्रतिमा लगाकर नाटक कर रही है. समाजवादी पार्टी ने डॉ. भीमराव अंबेडकर का सम्मान नहीं किया तो यह कांशीराम की प्रतिमा लगाकर दलितों का भला क्या करेंगे? मायावती के 28 साल बाद गेस्ट हाउस कांड चर्चा में लाने को लेकर अब सियासी गलियारों में भी चर्चाएं तेज हो गई हैं.

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि गेस्ट हाउस कांड की याद मायावती को इसीलिए आई है क्योंकि अब उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में मायावती की स्थिति बेहतर होने के बजाय बदतर होती जा रही है. 2022 का विधानसभा चुनाव हुआ उसमें 403 सीटों में से सिर्फ एक सीट ही बहुजन समाज पार्टी जीतने में सफल हो पाई. मायावती को अंदाजा लग गया है कि अब उबर पाना मुश्किल है. समाजवादी पार्टी बहुजन समाज पार्टी को कमजोर कर रही है. लिहाजा, दलितों को लुभाने के लिए मायावती ने याद दिलाया है कि गेस्ट हाउस कांड सपा के नेताओं की ही देन थी, ऐसे में सपा से दूरी बनाए रखें.

24 साल बाद एक मंच पर आए थे माया मुलायमः मायावती के साथ गेस्ट हाउस कांड साल 1995 में हुआ था. तकरीबन 23 साल तक इन दोनों पार्टियों में दरार पड़ी रही, लेकिन माया और मुलायम के बीच कड़वाहट 24 साल बाद साल 2019 में उस समय कम हुई जब मुजफ्फरनगर में पहली बार एक मंच पर नजर आए. लोकसभा चुनाव 2019 में बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था और इसका फायदा बहुजन समाज पार्टी को खूब मिला.

जहां 2014 लोकसभा चुनाव में मायावती की एक भी सीट नहीं आई थी, वहीं 2019 में लोकसभा सीटों की संख्या बढ़कर 10 हो गई, जबकि समाजवादी पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ा था. सिर्फ पांच सीटें जीतने में ही समाजवादी पार्टी सफल हो पाई थी. जैसे ही लोकसभा चुनाव खत्म हुआ मायावती और अखिलेश का गठबंधन बिखर गया. अब दोनों ही नेता एक दूसरे पर जमकर प्रहार कर रहे हैं.

अखिलेश ने लिया मायावती से बदलाः लोकसभा चुनाव 2019 में जब बहुजन समाज पार्टी के साथ अखिलेश ने गठबंधन किया तो इसका नतीजा उनके पक्ष में नहीं रहा. मायावती ने फायदा उठाकर गठबंधन भी तोड़ दिया. इसके बाद नाराज सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी बहुजन समाज पार्टी के किले में सेंध लगाना शुरू कर दी. तमाम नेताओं को बहुजन समाज पार्टी से तोड़कर सपा में शामिल करा लिया. इसका नतीजा यह हुआ कि 2022 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की हालत खस्ता हो गई.

अब बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती को लग रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी सपा मुखिया अखिलेश यादव बसपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं तो उन्होंने अपने कोर वोटरों को गेस्ट हाउस कांड की याद दिलाई है, जिससे उनका आकर्षण समाजवादी पार्टी के प्रति न हो सके, बल्कि बसपा के साथ मजबूती से खड़े हों और लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को वोट हासिल हो सके.

राजनीतिक विश्लेषक प्रभात रंजन दीन का कहना है कि गेस्ट हाउस कांड की याद मायावती को यूं ही नहीं आई. उनकी पार्टी की जो स्थिति उत्तर प्रदेश समेत पूरे देश में हुई है, उससे उनकी यह मजबूरी बन गई है कि अपने कोर वोटरों को बिखरने से कैसे रोक सकें. 2022 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह से समाजवादी पार्टी ने उनकी उम्मीदों को झटका दिया था, उससे अभी तक वे उबर नहीं पा रही हैं. इतना ही नहीं अब सिर्फ पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री ही हैं. सदन से भी उनकी दूरी बढ़ गई है. यही वजह है कि गेस्ट हाउस कांड याद दिलाकर अपने मतदाताओं को रोकने की कोशिश कर रही हैं.

ये भी पढ़ेंः बसपा के वोट बैंक को साधने के लिए अखिलेश यादव ने रायबरेली में कांशीराम की प्रतिमा का किया अनावरण

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