लखनऊ: लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर सुब्रत चंद्रा के मुताबिक व्हाइट फंगस को चिकित्सकीय भाषा में कैंडिडा कहते हैं. ये फंगस फेफड़ों के साथ रक्त में पहुंच जाता है. रक्त में पहुंचने पर इसे कैंडिडिमिया कहते हैं. वहीं अगर फेफड़ों तक पहुंच जाता है तो सीटी स्कैन जांच में फेफड़ों के भीतर गोल-गोल दिखाई देता है. इसी कारण इसे लंग बॉल कहते हैं.
नाखून तक पर असर, ब्लैक फंगस से घातक
डॉक्टर सुब्रत चंद्रा के मुताबिक व्हाइट फंगस ब्लैक फंगस से घातक है. ये शरीर के ज्यादातर अंग को प्रभावित कर सकता है. ये फंगस त्वचा, नाखून, मुंह के भीतरी हिस्से के साथ अमाशय, किडनी, आंत और गुप्तागों के साथ मस्तिष्क को भी अपनी चपेट में ले सकता है. मरीज की मौत मल्टी ऑर्गन फेल होने से हो सकती है. वायरस कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों में नाक से घुसने के बाद पूरे शरीर में अपनी संख्या बढ़ाता है. एचआरसीटी जांच में जैसा ब्लैक फंगस दिखता है उसी तरह का व्हाइट फंगस भी दिखता है. कमजोर इम्युनिटी वाले मधुमेह रोगी या लंबे समय से स्टेरॉयड लेने वालों को खतरा है. महामारी में लंबे समय तक अस्पताल में रहने वाले या स्टेरॉयड खाने वालों को सावधानी बरतनी होगी.
व्हाइट फंगस के लक्षण थोड़ा अलग
- त्वचा पर छोटा और दर्द रहित गोल फोड़ा जो संक्रमण की चपेट में आने के एक से दो सप्ताह में हो सकता है.
- व्हाइट फंगस फेफड़ों में पहुंच गया तो खांसी, सांस में दिक्कत, सीने में दर्द और बुखार भी हो सकता है.
- संक्रमण जोड़ों तक पहुंच गया तो आर्थराइटिस जैसी तकलीफ महसूस होगी, अचानक चलने फिरने में दिक्कत संभव.
- मस्तिष्क तक पहुंचा तो सोचने, विचारने की क्षमता प्रभावित होगी, सिर में दर्द या अचानक दौरा आने लगेगा.
- एसपरजिलोसिस का भी खतरा
डॉक्टर सुब्रत के मुताबिक पोस्ट कोविड मरीजों में एस्परजिलोसिस का भी खतरा रहता है. ये फंगस श्वसन तंत्र के माध्यम से शरीर में पहुंचता है. जिन मरीजों में इम्यूनिटी कम होती है. उन पर ज्यादा हमलावर हो जाता है. ये फेफड़े को क्षतिग्रस्त कर देता है. उसमें छेद सरीखे बन जाते हैं. ये समस्या पोस्ट कोविड देखने को मिल रही है. केजीएमयू में इसके 4 मरीज भर्ती किए गए हैं.