लखनऊ : प्रदेश के बहुचर्चित कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व मंत्री और बाहुबली नेता रहे अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी जल्द ही जेल से रिहा हो जाएंगे. उनकी रिहाई का फैसला दोनों की खराब सेहत और जेल में अच्छे व्यवहार की वजह से किया जा रहा है. नौ मई 2003 को लखनऊ की पेपर मिल कॉलोनी में उभरती कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या बदमाशों ने गोली मारकर कर दी थी. घटना के वक्त मधुमिता शुक्ला गर्भवती थीं. उस समय यह हत्याकांड प्रदेश में महीनों तक चर्चा का विषय रहा था. जांच में पता चला था कि हत्या का कारण अमरमणि और मधुमिता का प्रेम प्रसंग था. अब जबकि लोकसभा चुनावों के कुछ माह ही शेष हैं, तो यह सवाल उठने लगे हैं कि कहीं इस रिहाई के पीछे राजनीतिक लाभ की मंशा तो नहीं है. यह बात और है कि यह कदम पूरी तरह नियम और कानूनों को ध्यान में रखकर उठाया गया है.
गौरतलब है कि 2003 में हुए इस बहुचर्चित हत्याकांड में देहरादून की फास्ट ट्रैक अदालत ने 24 जून 2007 को अमरमणि त्रिपाठी, उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी, मधुमणि के भतीजे रोहित चतुर्वेदी और शूटर संतोष राय को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उस वक्त प्रदेश में मायावती की सरकार थी. मधुमिता की हत्या के बाद जब पुलिस ने उनके नौकर देशराज और बहन निधि शुक्ला से पूछताछ की तो अमरमणि के साथ उनके प्रेम प्रसंग की जानकारी मिली और हत्याकांड का खुलासा हुआ था. पोस्टमार्टम में मधुमिता के गर्भ में पल रहे भ्रूण का डीएनए टेस्ट कराया गया था, जिसमें इस बात की पुष्टि हुई थी कि बच्चा अमरमणि त्रिपाठी का ही था. बाद में केस की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी. मधुमिता शुक्ला की बहन निधि शुक्ला ने इस केस को लेकर लंबी लड़ाई लड़ी है. उन्होंने उत्तर प्रदेश में अमरमणि के प्रभाव को देखते हुए केस अन्य राज्य में स्थानांतरित किए जाने की मांग की थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामला उत्तराखंड ट्रांसफर कर दिया था.
बीस साल की सजा के बाद हो रही अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी की रिहाई पर भी कुछ लोग दबी जुबान चर्चा कर रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक अजय कुमार सिंह कहते हैं 'पिछले दिनों दबंग छवि वाले ब्राह्मण चेहरा माने जाने वाले हरिशंकर तिवारी के निधन के बाद पूर्वांचल में एक दबंग और प्रभावशाली नेता की जरूरत थी. अमरमणि त्रिपाठी का मठ से गहरा नाता रहा है और दबंग छवि भी है. ऐसे में वह सक्रिय राजनीति में भले ही शामिल न हों, लेकिन भाजपा को फायदा तो दिला ही सकते हैं. उनका क्षेत्र में अच्छा-खासा प्रभाव है. आज उनकी रिहाई की खबर आने के बाद अमरमणि त्रिपाठी के आवास पर समर्थकों का तांता लगा हुआ है, जो बताता है कि अभी उनकी प्रासंगिकता बरकरार है.' वहीं राजनीतिक विश्लेषक आलोक राय कहते हैं 'मेरा मानना है कि इस मामले को राजनीति के चश्मे से नहीं देखना चाहिए. आखिर बीस साल की सजा काटने के बाद ही तो अमरमणि और उनकी पत्नी की रिहाई हो रही है. यह अलग बात है कि रसूख वाले लोगों को सुविधाएं आसानी से मिल जाती हैं और वह कानूनी लड़ाई भी जीत लेते हैं, लेकिन यह तो व्यवस्था का प्रश्न है. ऐसे में हमें नहीं लगता कि इसमें सरकार या भाजपा की कोई मंशा शामिल है.'
वहीं इस हत्याकांड को लेकर लंबी लड़ाई लड़ने वाली मधुमिता शुक्ला की बहन निधि शुक्ला ने कई गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा है कि 'अमरमणि त्रिपाठी उनकी हत्या भी करा सकते हैं, जिससे कि उनकी पैरवी करने वाला कोई शेष न रहे. निधि शुक्ला कहती हैं कि 2012 से लेकर 2023 तक अमरमणि त्रिपाठी जेल ही नहीं गए हैं. वह कहती हैं कि जब वह इतने वर्ष तक जेल ही नहीं गए हैं, तो फिर सजा का क्या मतलब? वह कहती हैं कि सरकार कभी भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करा पाई. उत्तराखंड के हरिद्वार का कैदी मुख्यमंत्री के गृह जनपद स्थिति बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 15-16 नंबर बेड पर फाइव स्टार होटल जैसी सुविधाओं में रह रहा है. क्या यह अच्छा चाल-चलन है.'