लखनऊ: समेकित क्षेत्रीय कौशल विकास, पुनर्वास एवं दिव्यांगजन सशक्तिकरण केन्द्र (सीआरसी) लखनऊ द्वारा 'आध्यात्म और मानसिक स्वास्थ्य-एक सामंजस्य' विषय पर वर्चुअल कार्यक्रम (वेबिनार) का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम की शुरूआत डॉ रमेश कुमार पांडेय, निदेशक सीआरसी लखनऊ के संबोधन से हुई. वहीं, कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त अभिप्रेरणात्मक एवं आध्यात्मिक वक्ता जया किशोरी जी ने वर्चुअली उपस्थिति में महामारी के दौर में बच्चों के प्रति अभिभावकों को संदेश दिया है.
'अभिभावक के लिए बच्चों से जुड़ने का सही समय'
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जया किशोरी जी ने कहा कि यह बेहतरीन समय है कि अभिभावक अपने बच्चों से पूरी तरह जुड़ सकते हैं और उनके मनोभाव को बेहतर तरह से जान सकते हैं. जया किशोरी जी ने मानसिक स्वास्थ्य एवं अध्यात्म के परस्पर सामंजस्य स्थापित करने के बारे में अपने अनुभवों को समाहित करते हुए सभी के समक्ष रखा. उन्होंने कहा कि आध्यात्म ही एक ऐसा मार्ग है जो मानसिक एवं शारीरिक रूप से आनंद, उत्साह, ऊर्जा तथा परमात्म भाव को हमारे अंतःकरण में स्थापित करता है. अतः दिन प्रतिदिन के कार्यों में रत होते हुए भी हमें निरंतर आध्यात्मिक चिन्तनों एवं परमार्थी भावों के साथ समाज के बहुमूल्य अंग दिव्यांगजनों हेतु आदरित होना चाहिए.
'बच्चों का चिड़चिड़ापन करें दूर, दबाव न पड़ने दें'
जया किशोरी जी ने आगे कहा कि बच्चों के प्रति अभिभावक पूरी तरह समर्पित हों. महामारी के दौर में उनके अंदर एक चिड़चिड़ापन आ रहा है. आप बच्चों को इस महामारी के बारे में बताएं. उनके भविष्य को लेकर बताएं कि इस बीमारी से उन्हें क्या शिक्षा मिल रही है. शिक्षा यही मिली है कि हमें अपने शरीर की इम्युनिटी मजबूत रखनी है. बच्चों के प्रति अपने व्यवहार को कंट्रोल में रखना होगा. दिव्यांग बच्चों के लिए खास तौर पर ध्यान देना होगा. उन्हें इंडिपेंडेंट बनने के लिए प्रेरित करने की ओर कदम उठाएं. उन्होंने कहा कि बच्चों को मौसमी बीमारी से बचाव को लेकर खास केयर करने की जरूरत है. बाहर से आने वाले लोगों से एहतियात बरतने की जरूरत है. घर की साफ-सफाई पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है. बच्चों को जरा सी भी मौसमी बीमारी उन्हें और चिड़चिड़ा बना सकती है.
बच्चों को भगवान से जोड़ें
जया किशोरी जी ने कहा, 'मैं अध्यात्म से जुड़ी हूं और कथा वाचक हूं. मुझे लगता है कि ये सबसे बेहतरीन समय है कि बच्चों को भगवान के बारे में बताएं. जरूरी नहीं कि भगवान की पूजा पाठ की जाए, भगवान एक उम्मीद लेकर आते हैं. डिप्रेशन दूर करने के लिए सत्संग को बेहतर माना गया है, इसलिए एक उम्मीद लाने के लिए आप कहानियों में भगवान को जोड़कर बच्चों के मन में पॉजिटिव सोच लाएं. भगवान को नया फूल हमेशा समर्पित किया जाता है. ऐसे ही ताजा, भोले और मन के साफ बच्चों को भी भगवान के प्रति समर्पित करना उनके भविष्य को मजबूत बनाता है.
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कार्यक्रम की अध्यक्षता पंडित दीनदयाल उपाध्याय शारीरिक दिव्यांगजन संस्थान की निदेशक स्मिता जयवंत ने की. पीडीयूएनआईपीपीडी (डी) निदेशक ने जया किशोरी जी का स्वागत करते हुए कार्यक्रम के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए कार्यक्रम को संबोधित किया.