लखनऊ: यूपी की राजधानी लखनऊ में धारा 144 लागू थी, लेकिन गुरुवार को नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में लखनऊ में जिस प्रकार से हिंसा और आगजनी की घटनाएं हुई. उससे राज्य सरकार की बेचैनी बढ़ गई. सवाल खड़े हुए कि महत्वपूर्ण पदों में जिम्मेदार अधिकारी तैनात रहे. वह हालात पर क्यों काबू नहीं पा सके?
राजधानी में जिन महत्वपूर्ण अधिकारियों को कमान दी गई थी. वह फेल हुए. साइड पोस्टिंग वाले बाहरी अफसरों ने यहां आकर लाज बचाई. ये शहर गंगा जमुनी तहजीब की नजीर है. मगर वैचारिक प्रतिरोध के स्वर हावी हुए, तो यह शहर अशांत हो गया. इसे अधिकारी भांपने में चूक गए.
पुलिस प्रशासन, सुरक्षा इंतजाम
सामान्यत: अल्पसंख्यकों के 2 वर्ग आपस में लड़ते रहे और यह संघर्ष पुलिस वर्सेस जनता होता रहा. ऐसी नजीरें भरी होने के बावजूद गुरुवार को लखनऊ का पुलिस प्रशासन सुरक्षा इंतजाम करने में नाकाम रहा, बल्कि जब भीड़ बढ़ी तब पुलिस भाग खड़ी हुई और जब संघर्ष आमने-सामने का हुआ तो पुलिस बर्बर हो गई और पूरा शहर जल उठा.
तजुर्बेकार अफसरों को करना पड़ा तैनात
पुलिस की इस नाकामी को संभालने के लिए सरकार को आखिर पुराने तजुर्बेकार अफसरों को तैनात करना पड़ा. यह वह अफसर हैं, जिन्हें ढाई साल से नकारा कहा जा रहा है. क्या अब सरकार उपद्रव के जिम्मेदार अफसरों को भी चिन्हित करके कार्रवाई करेगी.
इन अफसरों को दी गई थी जिम्मेदारी
मुख्य रूप से आईजी नवनीत सिकेरा, आईजी पीएसी राम कुमार सिंह, डीआइजी मुख्यालय केबी सिंह, डीआइजी अजय शंकर रॉय के साथ ही लखनऊ में एडीएम पद पर रहे सेवानिवृत्त अधिकारी ओमप्रकाश पाठक सहित कई अफसर हैं. ये सभी अफसर साइड लाइन में पोस्टिंग पर तैनात हैं. इन अफसरों को उपद्रव को रोकने के लिए तैनात किय गया और उन्होंने आसानी से उपद्रव पर काबू पा लिया.
वरिष्ठ अधिकारियों को किया गया तैनात
पूर्व पीसीएस अधिकारी ओपी पाठक का कहना है कि कई वरिष्ठ अधिकारियों को लगाया गया है. ऐसे लोगों को कई बार इसलिए संभालने के लिए लगाया जाता है. इनका पुराना अनुभव है. पुराने संपर्क हैं. इनका प्रदर्शन के दौरान शांति बनाए रखने में फायदा मिलता है.
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