लखनऊ : कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बयान के बाद यह साफ हो गया है कि अब कांग्रेस के दरवाजे उनके लिए बंद हो चुके हैं. इससे पहले राजनीतिक गलियारों में कयास लगाए जा रहे थे कि वरुण गांधी कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. पीलीभीत से भारतीय जनता पार्टी के सांसद वरुण गांधी को भाजपा ने अक्टूबर 2021 में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी से बाहर कर दिया था. इससे वह काफी नाराज थे. वह भाजपा के खिलाफ खुलकर बयानबाजी करते हैं. सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हैं. ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि आगामी लोक सभा चुनावों में वरुण गांधी भाजपा की जगह किसी अन्य दल से चुनाव मैदान में जाएंगे. सवाल उठता है कि भाजपा छोड़ने और कांग्रेस के दरवाजे बंद हो जाने के बाद वरुण के सामने क्या विकल्प शेष हैं.
गौरतलब है कि राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान मंगलवार को पंजाब के होशियारपुर में पत्रकारों से वरुण के कांग्रेस में शामिल होने संबंधी अटकलों पर विराम लगाते हुए कहा कि 'वह बीजेपी में हैं. शायद यदि वह यहां चलेंगे, तो उन्हें समस्या हो जाएगी. मेरी विचारधारा उनकी विचारधारा से नहीं मिलती है. मैं आरएसएस के ऑफिस कभी नहीं जा सकता हूं. आपको पहले मेरा गला काटना पड़ेगा. मैं नहीं जा सकता. मेरा जो परिवार है, उसकी एक विचारधारा है. उसका सोचने का एक तरीका है, और जो वरुण हैं, उन्होंने एक समय, शायद आज भी उस विचारधारा को अपनाया और उस विचारधारा को अपना बनाया. तो मैं उस बात को स्वीकार नहीं कर सकता. मैं जरूर प्यार से मिल सकता हूं, गले लग सकता हूं, उस विचारधारा को मैं स्वीकार नहीं कर सकता. असंभव है मेरे लिए.'
स्वाभाविक है कि राहुल गांधी ने एकदम साफगोई से अपनी बात कह दी है और अब इसके बाद कहीं कोई गुंजाइश नहीं रह जाती. ऐसे में वरुण गांधी को अपने लिए नया ठिकाना ढूंढ़ना होगा. उत्तर प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बाद मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ही वह जगह हो सकती है, जहां वरुण को सम्मान और जगह मिल पाए. हालांकि इसमें भी कम चुनौतियां नहीं हैं. पिछले कुछ वर्षों से उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक वोट बैंक के बड़े वर्ग पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है. अतीत में वरुण गांधी के कई बयान चर्चा में रहे हैं, जो इस समाज को न सिर्फ अखरते हैं, बल्कि वह इनसे आहत भी रहा है. ऐसे में अखिलेश यादव के सामने यह चिंता और चुनौती भी होगी कि वरुण को पार्टी में लाने से कहीं बड़े वोट बैंक पर बुरा असर न पड़े. बसपा अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. ऐसे में कहना कठिन होगा कि वरुण बसपा में जाना चाहेंगे. हालांकि मायावती भी अल्पसंख्यक वोट बैंक को नाराज नहीं करना चाहेंगी.