लखनऊ: उत्तर प्रदेश जनसंख्या के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य है. इस राज्य के नामकरण की बात करें तो ब्रिटिश काल के दौरान 1 अप्रैल 1937 को इसे यूनाइटेड प्रोविंस ऑफ आगरा एण्ड अवध के नाम से जाना जाता था. विभिन्न उत्तर भारतीय वंशों से छीने गए प्रदेशों को पहले बंगाल प्रेसीडेंसी के अन्तर्गत रखा गया. 1833 में इन्हें अलग करके पश्चिमोत्तर प्रान्त (आगरा प्रेसीडेंसी) गठित किया गया.
ब्रिटिश काल में उत्तर प्रदेश
1856 ई. में कम्पनी ने अवध पर अधिकार कर लिया और आगरा एवं अवध संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के समरूप) के नाम से इसे 1877 ई. में पश्चिमोत्तर प्रान्त में शामिल कर लिया गया. 1902 ई. में इसका नाम बदलकर यूनाइटेड प्रोविंस ऑफ आगरा एण्ड अवध कर दिया गया. साधारण बोलचाल की भाषा में इसे यूपी कहा गया. सन 1920 में प्रदेश की राजधानी को इलाहाबाद से लखनऊ कर दिया गया. प्रदेश का उच्च न्यायालय इलाहाबाद ही बना रहा और लखनऊ में उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ स्थापित की गई. 15 अगस्त 1947 को देश के आजाद होने के बाद 1950 में नया संविधान लागू हूआ. संविधान के लागू होने के साथ ही 24 जनवरी सन 1950 को इस संयुक्त प्रान्त का नाम उत्तर प्रदेश रखा गया. तकरीबन 20 करोड़ से अधिक आबादी वाले इस राज्य में कुल 75 जिले सम्मिलित हैं.
यूपी में छात्र संगठन और राजनीतिक पार्टियों का उदय
उत्तर प्रदेश की सरजमीं स्वतंत्रता संघर्ष का गवाह रही है. आजादी के बाद की बात करें तो नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) की स्थापना इंदिरा गांधी ने 9 अप्रैल 1971 को एक राष्ट्रीय छात्र संगठन बनाने के लिए केरल स्टूडेंट्स यूनियन और पश्चिम बंगाल राज्य छात्र परिषद के विलय के बाद की थी. वहीं जेपी आंदोलन से निकले मुलायम सिंह यादव यूपी की सियासत में एक मंझे खिलाड़ी साबित हुए. सन 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन किया. इसके पहले वह 5 दिसंबर 1989 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण कर चुके थे.
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भारत के संविधान के निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने दलितों के लिए सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों की वकालत की. बाबा साहेब की विचारधारा को आगे बढ़ाने और समाज में परिवर्तन लाने की एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, कांशीराम. उनका मानना था कि दलित और दूसरी पिछड़ी जातियों की संख्या भारत की जनसंख्या की 85 फीसदी है, लेकिन 15 फीसदी सवर्ण जातियां उन पर शासन कर रही हैं. उन्होंने 1985 में बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की. कांशीराम ने 1993 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन कर लिया था.
अयोध्या विवाद और अंतिम फैसला
6 दिसम्बर 1992 को विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के कार्यकर्ताओं और भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं और इससे जुड़े संगठनों ने कथित रूप से विवादित जगह पर एक रैली आयोजित की. इसमें डेढ़ लाख कारसेवक शामिल हुए थे. उसी दिन बाबरी मस्जिद को कारसेवकों ने ढहा दिया था. इस जमीन पर स्वामित्व विवाद से संबंधित याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर की गई थी. उस समय बीजेपी की सरकार थी और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे और 1991 में नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने थे.
लगभग 27 सालों तक कोर्ट में फंसे अयोध्या विवाद का फैसला बीजेपी सरकार में आया. 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने विवादित जमीन पर रामलला के हक में निर्णय सुनाया. फैसले के अनुसार 2.77 एकड़ जमीन केंद्र सरकार के अधीन ही रहेगी. साथ ही कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए अलग से पांच एकड़ जमीन देने के भी निर्देश दिए हैं. इसके अलावा कोर्ट ने निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया है. निर्मोही अखाड़े को ट्रस्ट में जगह देने की अनुमति को स्वीकार कर लिया गया है.
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सन 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान केंद्र में बीजेपी की सरकार ने हल्ला बोला. उस दौरान नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के पद पर सुशोभित किया गया, लेकिन तब भी उत्तर प्रदेश की सत्ता में बीजेपी हार गई और सपा से अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने. सन 2019 की चुनावी रणनीति में एक बार फिर बीजेपी ने हाथ मारा और नरेंद्र मोदी पूर्ण बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बने, लेकिन इसके पहले 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने भारी अंतर से राज्य में सरकार बनाई. तब योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.