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अमावस जिंदगी के अंधेरे से निकली उषा हुई सुर्ख लाल, डरती हैं बदनीयत आंखें

पूरे देश में 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. इस दिन महिला के उत्थान के लिए किए गए कामों को लेकर सम्मानित किया जाता है. इसी क्रम में लखनऊ की उषा विश्वकर्मा ने भी स्त्रियों की उत्थान में काफी बड़ा योगदान दिया है. उनकी निशस्त्र कला के द्वारा कई लड़कियों को सशक्त बना रही है.

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निशस्त्र कला से उषा विश्वकर्मा लड़कियों को बना रही सशक्त
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Published : Mar 8, 2020, 1:34 AM IST

लखनऊ: वर्षों से चली आ रही रीति रिवाजों की जंजीरों से जकड़ीं महिलाएं आज के दौर में उसे तोड़ती नजर आ रही हैं. यह जंजीरें जो नारी के कदमों को रोकती हैं. कोमलता और नाजुकपन स्त्री की स्वाभाविक पहचान है. स्त्री की नाजुक कलाई, हाथों में बेलन और घर की जिम्मेदारियां होने के बावजूद वे आज आसमान को छूती नजर आ रही हैं. स्त्री के अंदर न जाने कितनी देवियों के रूप नजर आते हैं. चाहे दुर्गा हो या, सरस्वती. जब अत्याचार बढ़ता है तो दुनिया का संहार करने के लिए काली का रूप भी धारण करती हैं. वेदों पुराणों में देवियों की प्राचीनतम और अद्भूत कहानियां हैं.

निशस्त्र कला से उषा विश्वकर्मा लड़कियों को बना रही सशक्त

21 वीं सदी में महिलाएं आज पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. हालांकि ऐसी तमाम घटनाएं सामने आती है जो पुरूषवादी दिखाई देती हैं. ऐसी ही एक कहानी लखनऊ की उषा विश्वकर्मा की है. जिसके दोस्त की बदनीयती ने कभी उनकी जिंदगी को अमावस के अंधेरे में तब्दील कर दिया था, लेकिन अदम्य जिजीविषा और साहस के दम पर न केवल उन्होंने जीवन के घुप अंधेरे को जीता बल्कि देश की 1 लाख 57 हजार लड़कियों को अपनी "निशस्त्र कला" के दम पर रक्त-चंडिका बना दिया है. जिससे बदनीयत आंखें भी खौफ खाती हैं.

निशस्त्र कला की आविष्कारक उषा

अमावस के घने अंधेरे साम्राज्य का विनाश प्रातः काल की उषा से प्रारंभ होता है. वैसे ही उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दुष्कर्मियों के लिए काल का प्रतीक रेड ब्रिगेड लखनऊ बन चुकी है. लाल कुर्ता और काली चुन्नी पहनने वाली लड़कियों को देखकर हर कोई समझ जाता है कि यह उषा विश्वकर्मा की रेड ब्रिगेड की वह लड़कियां हैं जो निशस्त्र कला में माहिर हो चुकी हैं. बदनीयत पुरुषों को काबू करने वाली इस तकनीक का आविष्कार खुद उषा विश्वकर्मा ने किया है.

2006 की घटना ने उषा की बदली तस्वीर

वह बताती हैं कि इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान ही वह मलिन बस्तियों के बच्चों को पढ़ाया करती थी. इसी दौरान एक युवक ने बच्चों को पढ़ाने में सहयोग की पेशकश की और साथ पढ़ाने लगा. 2006 में उस युवक ने उषा के साथ दुष्कर्म की नाकाम कोशिश की लेकिन इस हमले में उषा को लगभग डेढ़ साल के लिए गुमनामी और मानसिक यंत्रणा के गहन अंधकार में धकेल दिया. उनका व्यवहार अपने पिता के लिए भी हिंसक होने लगा आखिरकार मानसिक चिकित्सकों का सहारा लेना पड़ा. गहरे मानसिक आघात से गुजरने के बाद उन्होंने खुद को संभाला और स्त्री सुरक्षा के लिए ठोस कार्य करने का फैसला किया.

कौन बनेगा करोड़पति की गेस्ट भी बनीं

देश की कई बड़ी कंपनियां भी अपनी महिला कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए उन्हें आमंत्रित कर चुकी हैं. मशहूर सिने स्टार अमिताभ बच्चन ने "कौन बनेगा करोड़पति" के मंच पर उन्हें बुलाकर सम्मानित किया. 2016 में उन्हें भारत सरकार की 100 विमेन अचीवर्स में चुना गया और राष्ट्रपति ने सम्मानित किया. इसी साल उत्तर प्रदेश सरकार ने भी रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार देकर स्त्री सुरक्षा के लिए उनके योगदान की सराहना की.

लखनऊ: वर्षों से चली आ रही रीति रिवाजों की जंजीरों से जकड़ीं महिलाएं आज के दौर में उसे तोड़ती नजर आ रही हैं. यह जंजीरें जो नारी के कदमों को रोकती हैं. कोमलता और नाजुकपन स्त्री की स्वाभाविक पहचान है. स्त्री की नाजुक कलाई, हाथों में बेलन और घर की जिम्मेदारियां होने के बावजूद वे आज आसमान को छूती नजर आ रही हैं. स्त्री के अंदर न जाने कितनी देवियों के रूप नजर आते हैं. चाहे दुर्गा हो या, सरस्वती. जब अत्याचार बढ़ता है तो दुनिया का संहार करने के लिए काली का रूप भी धारण करती हैं. वेदों पुराणों में देवियों की प्राचीनतम और अद्भूत कहानियां हैं.

निशस्त्र कला से उषा विश्वकर्मा लड़कियों को बना रही सशक्त

21 वीं सदी में महिलाएं आज पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. हालांकि ऐसी तमाम घटनाएं सामने आती है जो पुरूषवादी दिखाई देती हैं. ऐसी ही एक कहानी लखनऊ की उषा विश्वकर्मा की है. जिसके दोस्त की बदनीयती ने कभी उनकी जिंदगी को अमावस के अंधेरे में तब्दील कर दिया था, लेकिन अदम्य जिजीविषा और साहस के दम पर न केवल उन्होंने जीवन के घुप अंधेरे को जीता बल्कि देश की 1 लाख 57 हजार लड़कियों को अपनी "निशस्त्र कला" के दम पर रक्त-चंडिका बना दिया है. जिससे बदनीयत आंखें भी खौफ खाती हैं.

निशस्त्र कला की आविष्कारक उषा

अमावस के घने अंधेरे साम्राज्य का विनाश प्रातः काल की उषा से प्रारंभ होता है. वैसे ही उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दुष्कर्मियों के लिए काल का प्रतीक रेड ब्रिगेड लखनऊ बन चुकी है. लाल कुर्ता और काली चुन्नी पहनने वाली लड़कियों को देखकर हर कोई समझ जाता है कि यह उषा विश्वकर्मा की रेड ब्रिगेड की वह लड़कियां हैं जो निशस्त्र कला में माहिर हो चुकी हैं. बदनीयत पुरुषों को काबू करने वाली इस तकनीक का आविष्कार खुद उषा विश्वकर्मा ने किया है.

2006 की घटना ने उषा की बदली तस्वीर

वह बताती हैं कि इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान ही वह मलिन बस्तियों के बच्चों को पढ़ाया करती थी. इसी दौरान एक युवक ने बच्चों को पढ़ाने में सहयोग की पेशकश की और साथ पढ़ाने लगा. 2006 में उस युवक ने उषा के साथ दुष्कर्म की नाकाम कोशिश की लेकिन इस हमले में उषा को लगभग डेढ़ साल के लिए गुमनामी और मानसिक यंत्रणा के गहन अंधकार में धकेल दिया. उनका व्यवहार अपने पिता के लिए भी हिंसक होने लगा आखिरकार मानसिक चिकित्सकों का सहारा लेना पड़ा. गहरे मानसिक आघात से गुजरने के बाद उन्होंने खुद को संभाला और स्त्री सुरक्षा के लिए ठोस कार्य करने का फैसला किया.

कौन बनेगा करोड़पति की गेस्ट भी बनीं

देश की कई बड़ी कंपनियां भी अपनी महिला कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए उन्हें आमंत्रित कर चुकी हैं. मशहूर सिने स्टार अमिताभ बच्चन ने "कौन बनेगा करोड़पति" के मंच पर उन्हें बुलाकर सम्मानित किया. 2016 में उन्हें भारत सरकार की 100 विमेन अचीवर्स में चुना गया और राष्ट्रपति ने सम्मानित किया. इसी साल उत्तर प्रदेश सरकार ने भी रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार देकर स्त्री सुरक्षा के लिए उनके योगदान की सराहना की.

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