लखनऊ: विधानमंडल के बजट सत्र के दूसरे दिन आज विधान परिषद में विपक्षी सदस्य खासकर सपा के विधान परिषद सदस्यों ने जमकर हंगामा किया. विधान परिषद में समाजवादी पार्टी के सदस्यों ने प्रोटेम स्पीकर कुंवर मानवेंद्र सिंह को हटाए जाने को लेकर नियम 143 के तहत अविश्वास प्रस्ताव भी दिया. जिसे बाद में संवैधानिक व्यवस्था में नियमों का हवाला देते हुए खारिज कर दिया गया. जिसको लेकर समाजवादी पार्टी के सदस्य वेल में आ गए और काफी देर तक नारेबाजी और हंगामा करते रहे. सभापति ने सदन की कार्यवाही 15-15 मिनट के लिए कई बार स्थगित भी की.
सदन में हुआ जोरदार हंगामा
विधान परिषद में समाजवादी पार्टी के नेता विरोधी दल अहमद हसन व समाजवादी पार्टी के एमएलसी उदयवीर सिंह सहित नियम 143 के तहत प्रोटेम स्पीकर को हटाए जाने को लेकर अविश्वास प्रस्ताव दिया. प्रश्न पहर में इन पर चर्चा कराए जाने की बात कहते हुए सभापति ने शुरुआत में इन पर चर्चा नहीं की, लेकिन समाजवादी पार्टी के सदस्यों ने इसका विरोध किया और हंगामा किया बाद में सदन की कार्यवाही 15 मिनट के लिए स्थगित की गई. इसके बाद जब सदन की कार्यवाही दोबारा शुरू हुई तो समाजवादी पार्टी के सदस्यों द्वारा नियम 143 के अंतर्गत सभापति को हटाए जाने के लिए दिए अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया. जिसके बाद समाजवादी पार्टी के सदस्यों ने एक बार फिर जोरदार हंगामा किया.
सभापति का चुनाव कराया जाए
समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्य उदयवीर सिंह ने कहा कि विधान परिषद के नियमों के अंतर्गत यह व्यवस्था है कि सभापति का चुनाव कराया जाए. जबकि सरकार ने प्रोटेम स्पीकर की व्यवस्था राज्यपाल के माध्यम से कराई है, जो लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है.
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वहीं समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्य आनंद भदौरिया ने कहा कि समाजवादी पार्टी ने सभापति के चुनाव कराने की मांग उठाई है. इस मांग को दरकिनार करते हुए खारिज किया गया है. जिस पर हम लोगों ने हंगामा किया. हमारी मांग है कि विधान परिषद के सभापति के पद पर चुनाव हो प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति कराना संवैधानिक व्यवस्थाओं के खिलाफ है.
किसानों के समर्थन में प्रदर्शन करने पर हुआ दुर्व्यवहार
समाजवादी पार्टी के एमएलसी आनंद भदौरिया ने कहा कि हमने किसानों के समर्थन में प्रदर्शन किया और अपने ही ट्रैक्टर से विधान भवन के बाहर आ रहे थे. ऐसे में जो सुरक्षा के लिए गठित यूपीएसएसएफ के द्वारा हमारे साथ दुर्व्यवहार किया गया. यह बिल्कुल भी उचित नहीं है. सरकारें आती-जाती रहती है, लेकिन जनप्रतिनिधियों का सम्मान तो हर व्यवस्था को करना ही चाहिए. विधायक के सम्मान की बात मैं कर रहा हूं.