लखनऊ : समाजवादी पार्टी ने विधान परिषद चुनाव के लिए अपने दो उम्मीदवार घोषित करने के साथ उनका नामांकन भी करा दिया है. जानकारों का कहना है कि जब दो एमएलसी जिताने भर के लिए विधायक ही नहीं हैं तो फिर प्रत्याशी क्यों उतारे गए. भाजपा के पास पूर्ण बहुमत है तो भाजपा ही दोनों सीटों पर चुनाव जीतेगी. ऐसी स्थिति में समाजवादी पार्टी ने प्रत्याशी क्यों उतारे, सपा मुखिया अखिलेश यादव की रणनीति क्या है. ऐसे कई सवालों के जवाब पार्टी के नेताओं के पास भी नहीं हैं.
सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारते तो दोनों सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों का निर्विरोध निर्वाचन तय हो जाता, लेकिन नामांकन के अंतिम दिन अखिलेश यादव ने पार्टी के दो नेताओं को उम्मीदवार बनाकर उनका पर्चा दाखिल करवा दिया. ऐसे में अब मतदान की प्रक्रिया विधानसभा सचिवालय द्वारा संपन्न कराई जाएगी. विधायकों की संख्या बल के हिसाब से जीत की कोई गुंजाइश न नजर आने के बावजूद समाजवादी पार्टी की दावेदारी से यह उपचुनाव कई मायने में महत्वपूर्ण भी हो गया है. सवाल यह है कि जब पूर्व सीएम अखिलेश यादव और उनकी पार्टी के नेताओं को पता है कि विधायकों की संख्या कम है, ऐसे में एक भी प्रत्याशी चुनाव जीतने की स्थिति में नहीं है तो फिर 2 उम्मीदवारों का नामांकन क्यों करा दिया गया.
भाजपा के पास 274 सदस्य : पार्टी के नेताओं का कहना है कि जातीय समीकरण को लेकर संदेश देने के उद्देश्य समाजवादी पार्टी ने दो नेताओं का नामांकन कराया गया है, हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि अखिलेश यादव ने सिर्फ मतदान की प्रक्रिया पूरी कराने के लिए ही नामांकन कराए हैं, लेकिन राजनीतिक रूप से देखा जाए तो यह समाजवादी पार्टी की बड़ी रणनीतिक चूक है. दरअसल, विधान परिषद के सदस्यों का चुनाव विधानसभा के सदस्य करते हैं. विधानसभा के सभी सदस्य दोनों ही सीटों के लिए अलग-अलग वोट करेंगे. विधानसभा के 403 सदस्यीय सदन में प्रत्येक सीट के लिए पड़ने वाले मतों में आधे से अधिक वोट जीतने के लिए चाहिए. सभी वोट पड़ने पर जीत के लिए 202 वोट जरूरी होंगे. सत्ताधारी भाजपा व गठबंधन वाले सहयोगी दलों को मिलाकर भाजपा के पास 274 सदस्य हैं. यह संख्या जीत के लिए जरूरी मतों से बहुत ज्यादा है. बावजूद इसके समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रत्याशी उतार दिए. इसे लेकर उनकी पार्टी के अंदर ही सवाल खड़े हो रहे हैं. हालांकि कोई कुछ बोलने की स्थिति में नहीं है.
पार्टी के नेता भी संतुष्ट नहीं : समाजवादी पार्टी के एक नेता ने नाम न लिखने की शर्त पर कहा कि जब हमें यह मालूम है कि हम एक भी सीट वर्तमान समय में जीतने की स्थिति में नहीं हैं तो फिर आखिर क्यों उम्मीदवार उतारे गए. हमें मालूम है कि हार होनी है तो फिर छीछालेदर कराने और अनावश्यक रूप से चर्चा के लिए प्रत्याशी उतारने की क्या आवश्यकता थी. सपा ने रणनीति के तहत पूर्वांचल के मऊ से अति पिछड़ा वर्ग से रामजतन राजभर व कौशांबी से अनुसूचित जाति के रामकरन निर्मल को प्रत्याशी बनाया है. रामजतन विधान परिषद सदस्य रह चुके हैं और रामकरन निर्मल लोहिया वाहिनी के निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष हैं.
पार्टी के नेताओं का यह तर्क है कि जातीय समीकरण के हिसाब से उम्मीदवार उतारे गए हैं, उस जाति को संदेश देने के लिए कि समाजवादी पार्टी उन्हें आगे बढ़ा रही है, लेकिन सपा नेताओं के पास इस तर्क का जवाब नहीं है कि जब चुनाव जीतने की स्थिति नहीं है तो फिर उस समाज के नेताओं को उतारकर आखिर छीछालेदर क्यों कराई जा रही है. जब विधान परिषद में भेजने की स्थिति रहती है तो उस समाज की चिंता क्यों नहीं की जाती है. समाजवादी पार्टी के विधायक रविदास मेहरोत्रा ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि हम सभी दलों के विधायकों से सपा प्रत्याशियों को वोट देने की बात कह रहे हैं. सपा विधायक ने इसका जवाब नहीं दिया कि जब उनकी पार्टी के ही विधायकों की संख्या कम है तो फिर प्रत्याशी क्यों उतारे गए. उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि यह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का फैसला है. इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते हैं.
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