लखनऊ : प्रदेश की भाजपा सरकार ने अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण बनाने का फैसला किया है, लेकिन इसे धरातल पर उतारना आसान नहीं होगा. प्रदेश की अधिकांश नदियां अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं. गर्मियों में इन नदियों में जल संकट हो जाता है. सरकार को नदियों के पुनरोद्धार के लिए जितना काम करना चाहिए था, उतना आज तक हो नहीं पाया है. गंगा-यमुना जैसी बड़ी नदियां भी प्रदूषित होकर सुकड़ती जा रही हैं. ऐसे में सहायक नदियों की तो बात ही क्या कही जाए. ऐसे में सरकार की यह मंशा कैसे पूरी हो पाएगी, यह कहना कठिन है.
वर्ष 2014 में जब केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी थी, तब गंगा की सफाई के लिए नमामि गंगे नाम से अलग विभाग बनाया गया था और उमा भारती को इस विभाग का मंत्री बनाया गया था. इसके बाद देश के पांच राज्यों से गुजरने वाली गंगा की सफाई के लिए वृहद योजना बनाई गई. साथ ही गंगा की सफाई के लिए कई कदम भी उठाए गए. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने गंगा के तटों पर बसे बड़े शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए बड़े स्तर पर काम शुरू कराया. नदी में कचरा फेंकने पर रोक लगाई गई. नदी के तटों पर भवन निर्माण सामग्री से जुड़ा कचरा फेंकने पर रोक लगाई गई. नदियों में होने वाले डिस्चार्ज को पूरी तरह रोकने की रणनीति बनाई गई. अब केंद्र की भाजपा सरकार को नौ साल से ज्यादा का समय गुजर चुका है. बावजूद इसके स्थिति में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन दिखाई नहीं दिया है. गर्मियों में गंगा में पानी की कमी के कारण जगह-जगह टीले बन जाते हैं. ऐसे में जल परिवहन की कल्पना भला कैसे साकार होगी.
प्रदेश की दूसरी बड़ी यमुना नदी का हाल तो और भी बुरा है. दिल्ली में ही यमुना प्रदूषण से जूझती दिखाई देती है. उत्तर प्रदेश में आकर भी यमुना की स्थिति विकट ही दिखाई देती है. यदि नदियां स्वच्छ ही नहीं होंगी, तो उनमें जलविहार के लिए भला कौन जाएगा? अन्य नदियों में भी इसी प्रकार की समस्याएं हैं. नदियों का प्रवाह निरंतर घट रहा है. गर्मियों में इनकी स्थिति बहुत ही विकट हो जाती है. आदि गंगा कही जाने वाली गोमती नदी की स्थिति भी बहुत खराब है. चूंकि गोमती का उद्गम पीलीभीत के मैदानी क्षेत्र से हुआ है, जो अब खुद ही खत्म होता जा रहा है. राजधानी लखनऊ में गोमती से पेयजल की आपूर्ति के लिए शारदा नहर से पानी छोड़ना पड़ता है. यदि ऐसा न किया जाए, तो शायद गर्मियों में गोमती का स्वरूप नाले जैसा हो जाए. वैसे भी इस नदी की स्थिति प्रदूषण के कारण बहुत ही खराब है. इन परिस्थितियों में यदि सरकार जल परिवहन की योजना पर आगे बढ़ती है, तो उसे पहले नदियों की हालत सुधारनी पड़ेगी.
इस संबंध में पर्यावरण के लिए काम करने वाले वीपी श्रीवास्तव कहते हैं 'प्रदेश की लगभग सभी नदियों में प्रदूषण और निरंतर कम होते प्रवाह की समस्या है. यदि बारिश के दिनों को छोड़ दें तो गंगा-यमुना भी ज्यादातर समय बुरी स्थिति में रहती हैं. एक तो प्रदूषण और दूसरा पानी की कमी, ऐसे में जल परिवहन की सरकार की मंशा कैसे पूरी हो पाएगी कहना कठिन है.'