लखनऊः शहरों में खेती की जमीन पर मकान बनाना महंगा हो सकता है. इसके लिए लोगों को इम्पैक्ट फीस देना होगा. फीस लेने के बाद संबंधित विकास प्राधिकरण लोगों को सड़क या फिर अन्य नागरिक सुविधाएं मुहैया कराएगा. जल्द ही इससे जुड़े सभी नियम विकास प्राधिकारण को जारी किए जाएंगे. प्रदेश के कुछ बड़े विकास प्राधिकरणों में इम्पैक्ट फीस लेने की व्यवस्था है. हालांकि सभी विकास प्राधिकरणों में यह लागू नहीं है. अब इसे स्थायी रूप से लागू किया जाएगा. इंपैक्ट फीस का निर्धारण क्षेत्रफल और शहर के हिसाब से अलग-अलग किया जाएगा.
आवास विलास अधिनियम में होगा संशोधन
इसके लिए आवास विकास अधिनियम में संशोधन करेगा. लोग गांव से शहर की ओर पलायन कर रहे हैं. इसके पीछे सुविधाओं का न होना बताया जा रहा है. इसलिए यहां का क्षेत्रफल धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. निर्माण कार्य के लिए खेती की जमीन का भी इस्तेमाल होने लगा है. वहीं विकास प्राधिकारण के पास जमीन न होने की वजह से लोग आवासीय सोसायटी में जमीन लेकर मकान बना रहे हैं.
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खेती की जमीन पर सोसाइटी की प्लाटिंग का काम होगा महंगा
अधिकतर आवासीय सोसाइटियां खेती की जमीन पर प्लॉटिंग करके उसे बेच देती हैं. न तो इन जमीनों का ले आउट पास होता है और न ही इसका भू-उपयोग में परिवर्तन हुआ रहता है. इसके चलते सोसाइटियों के आसपास बनी सड़कों या फिर अन्य नागरिक सुविधाओं वाले स्थानों पर भार पड़ता है. विकास प्राधिकरण की योजनाओं से सटी हुई कॉलोनियों में ऐसा होता है. इसी कारण विकास प्राधिकरण की तरफ से यह नया शुल्क जोड़ा गया है.
आवास विकास लेगा शुल्क
इम्पैक्ट फीस यानी प्रभाव शुल्क का इस्तेमाल विकास प्राधिकारण की आय बढ़ाने के लिए किया जाएगा. इम्पैक्ट फीस लगने से खेती की जमीन का इस्तेमाल भी कम होगा और विकास प्राधिकारण को अपने इस्तेमाल के लिए आसानी से जमीन मिल जाएगी. इम्पैक्ट फीस वसूली के लिए आवास विभाग जरूरत के आधार पर विकास प्राधिकरण अधिनियम में संशोधन करेगा, जिससे इसे अनिवार्य रूप से वसूला जा सके. इसके बाद विकास प्राधिकरण ऐसे मामलों में मनमाने तरीके से छूट भी नहीं दे पाएंगे.