लखनऊ: राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की मंजूरी मिलने के साथ ही उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण संबंधी कानून लागू कर दिया गया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार को आयोजित कैबिनेट बैठक में 'उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020' पास होने के बाद अब राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने भी मंजूरी प्रदान कर दी है. राज्यपाल की मंजूरी के साथ ही इसे उत्तर प्रदेश में लागू कर दिया गया है.
यह अध्यादेश बलपूर्वक, प्रताड़ना, प्रलोभन द्वारा, किसी कपट पूर्ण साधन द्वारा या विवाह द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए लाया गया है. विधायी अनुभाग की तरफ से जारी सूचना में बताया गया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 213 के खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करके राज्यपाल ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 (उत्तर प्रदेश अध्यादेश संख्या 21 सन 2020) को मंजूरी प्रदान कर दी है.
दरअसल, राज्य विधानमंडल का सत्र नहीं चल रहा है. सरकार ने मंजूरी के लिए राज्यपाल के पास भेजा था. राज्यपाल ने इसका आकलन किया. प्रदेश में ऐसी परिस्थितियां मौजूद हैं, जिसके कारण राज्यपाल को तुरंत कार्यवाही करना आवश्यक हो गया है. लिहाजा अब भारत का संविधान के अनुच्छेद 213 के खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करके राज्यपाल ने अध्यादेश को मंजूरी प्रदान की है.
यह अध्यादेश उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 कहा जाएगा. इसका विस्तार संपूर्ण उत्तर प्रदेश में होगा साथ ही यह तुरंत प्रवृत्त होगा. अध्यादेश में प्रलोभन, प्रपीड़न, धर्म संपरिवर्तन, बल, कपटपूर्ण साधन, सामूहिक धर्म संपरिवर्तन, अवयस्क, धर्म, धर्म संपरिवर्तन, असम्यक असर, विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन की विस्तार से व्याख्या की गई है.
योगी सरकार के इस ऐतिहासिक कानून के लागू होने के बाद उत्तर प्रदेश में केवल विवाह के लिए किसी महिला के धर्म से, अन्य धर्म में परिवर्तन होता है तो ऐसी परिस्थिति में विवाह शून्य की श्रेणी में लाया जा सकेगा. दबाव डालकर या झूठ बोलकर अथवा किसी अन्य कपटपूर्ण ढंग से अगर धर्म परिवर्तन कराया गया तो यह एक संज्ञेय अपराध के रूप में माना जाएगा. इस गैर जमानती प्रकृति के अपराध के मामले में प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के न्यायालय में मुकदमा चलेगा.
नाबालिक और दलित युवती के मामले के 3-10 साल की सजा
उपरोक्त में दोष सिद्ध हुआ तो दोषी को कम से कम एक वर्ष और अधिकतम पांच वर्ष की सजा भुगतनी होगी. साथ ही न्यूनतम 15 हजार रुपये का जुर्माना भी भरना होगा. अगर मामला अवयस्क महिला, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की महिला के संबंध में हुआ तो दोषी को तीन वर्ष से 10 साल तक कारावास की सजा और न्यूनतम 25 हजार रुपये जुर्माना अदा करना पड़ेगा.
सामूहिक धर्म प्रवर्तन में 10 साल की सजा
सामूहिक धर्म परिवर्तन की घटनाओं पर लगाम लगाने के बीच में पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. नए कानून के मुताबिक सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामले में तीन से 10 साल तक की जेल हो सकती है. कम से कम 50 हजार रुपये का जुर्माना भी भरना होगा. अध्यादेश के प्रावधानों के अनुसार धर्म परिवर्तन का इच्छुक होने पर संबंधित पक्षों को जिला मजिस्ट्रेट को दो माह पहले सूचना देनी होगी. इसका उल्लंघन करने पर छह माह से तीन वर्ष तक की सजा हो सकती है. जबकि इस अपराध में न्यूनतम जुर्माना 10 हजार रुपये तय किया गया है.