लखनऊ: उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (UP Electricity Regulatory Commission) ने देश के एक बड़े निजी ग्रुप की मुश्किलों को और बढा दिया है. नियामक आयोग इस बात की तहकीकात में लगा है कि बड़े घराने अडानी की नेट वर्थ जो याचिका में दिखाई गई है, उसकी सच्चाई क्या है? वास्तव में उसकी क्या वित्तीय रूप से हैसियत है कि वह गाजियाबाद और नोएडा में वितरण लाइसेंस ले सकता है? अडानी ग्रुप ने उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग से कहा है कि वह समानांतर वितरण लाइसेंस पर 4800 करोड़ रुपये खर्च करेगा. क्या वह यह रकम खर्च कर पाएगा और वास्तव में गाजियाबाद और नोएडा के क्षेत्र में समानांतर लाइसेंस के लिए कितनी लागत की जरूरत होगी.
विद्युत नियामक आयोग ने पावर कारपोरेशन से दोनों क्षेत्रों के उपभोक्ताओं की कुल संख्या, उनका कुल भार, उनकी कुल वित्तीय वर्ष 2022-23 में विद्युत आपूर्ति की स्थिति, एलटी लाइन की किलोमीटर में 11केवी व 33 केवी लाइन की लंबाई, 33 केवी व 11 केवी उपकेंद्रों की संख्या, उनकी क्षमता, प्रोटेक्शन और कंट्रोल सिस्टम का विवरण मांगा है. इससे यह अनुमान लगाया जाएगा कि उस क्षेत्र में वितरण लाइसेंस लेने के लिए किसी भी कंपनी की हैसियत है या नहीं. उपभोक्ता परिषद ने इस पूरे मामले पर कहा है कि उपभोक्ता परिषद आगरा में भी बिजली दर सुनवाई में इस ग्रुप की याचिका का विरोध करेगा, तो 28 अप्रैल को नोएडा में भी बिजली दर की सुनवाई में बड़े औद्योगिक घराने की याचिका का खुलकर विरोध किया जाएगा.
किसी भी हालत में इस ग्रुप की याचिका को स्वीकार नहीं होने दिया जाएगा. यह याचिका नियमों के खिलाफ है. उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि अडानी ग्रुप की याचिका कानूनन स्वीकार करने योग्य नहीं है. इसके बारे में उपभोक्ता परिषद नियामक आयोग की स्वीकार्यता की सुनवाई में सभी बिंदुओं को उठा चुका है. ग्रुप की याचिका भारत सरकार की अधिसूचना के विपरीत है.
इसे खारिज होना ही है, लेकिन सबसे बडा सवाल यह है कि यूपी पावर कारपोरेशन (Uttar Pradesh Power Corporation Limited) इस पूरे मामले पर चुप्पी क्यों साधे हुए है. उपभोक्ता परिषद ने तय किया है कि समानांतर वितरण लाइसेंस के खिलाफ 28 अप्रैल को नोएडा में इसका व्यापक विरोध करेगा. वहां की जनता को बताएगा कि किस प्रकार से अडानी ग्रुप वितरण का लाइसेंस नियम विरुद्ध तरीके से चाहता है जिससे वहां की जनता भी समझ सके कि वास्तव में खेल क्या चल रहा है.
उन्होंने कहा कि 28 अप्रैल को नोएडा में होने वाली सुनवाई में उपभोक्ता परिषद उपभोक्ताओं को बताएगा कि पावर कारपोरेशन जिस प्रकार से चुप्पी साधे है, उस पर सवाल उठना स्वाभाविक है. उनका कहना है कि अडानी ग्रुप नोएडा और गाजियाबाद को इसलिए लेना चाहता है क्योंकि यहां पर सबसे ज्यादा राजस्व
आता है.