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Congress Politics : अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की गिरती साख के लिए खुद कांग्रेस के कर्ता-धर्ता ही जिम्मेदार हैं. यह साबित करने के लिए किसी प्रमाण की नहीं हैं, कांग्रेस के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की आपबीती ही काफी है. मेरठ की हस्तिनापुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने वाली अर्चना गौतम ने वीडियो जारी करके कांग्रेस की ऐसी ही राजनीति की पोल खोल दी है. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.

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Published : Feb 27, 2023, 10:27 PM IST

अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस
अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस
अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस

लखनऊ : कांग्रेस पार्टी प्रदेश में लगातार रसातल में जा रही है. हाल यह हो गया है कि कभी उत्तर प्रदेश के दम पर केंद्र में सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट जीतने में कामयाब हो सकी जो कांग्रेस की परंपरागत रायबरेली सीट थी और सोनिया गांधी खुद किस सीट से चुनाव मैदान में थीं. इस चुनाव में राहुल गांधी को अपनी परंपरागत अमेठी संसदीय सीट पर भाजपा नेता स्मृति ईरानी से पराजय का मुंह देखना पड़ा था. वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी मैं अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया है और वह महज दो सीटें जीतने में कामयाब हुई है. यह सीटें भी कांग्रेस पार्टी कम और प्रत्याशियों के अपने बलबूते पर ज्यादा मिल पाई हैं. कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू तक अपनी सीट नहीं बचा पाए. इन सारे कटु अनुभवों के बावजूद कांग्रेस पार्टी है कि सुधरने को तैयार नहीं. यही कारण है एक बार फिर पार्टी में बगावत किशोर सुनाई पड़ रहे हैं.

अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस
अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस
उत्तर प्रदेश में लगातार कमजोर हो रही कांग्रेस पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए 2022 के चुनाव में प्रियंका गांधी को प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. प्रियंका ने जीत के लिए प्रदेश के कई जिलों के ताबड़तोड़ दौरे किए. लोगों से मिलीं और हर वह कोशिश की जो वह कर सकती थीं. बस एक कमी रह गई. उनका कार्यकर्ताओं से संवाद ना के बराबर ही रहा. कहने को तो डिजिटल माध्यम से प्रियंका कार्यकर्ताओं से जुड़ती रहीं. हालांकि असल कार्यकर्ता इससे अनजान ही रहा. प्रियंका गांधी से मिलने के लिए तमाम नेताओं तक की कोशिशें नाकाम कर दी गईं. स्वाभाविक है कि उन्हें सही फीडबैक भी नहीं मिला और पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा. इससे नाराज होकर तत्कालीन बनारस के एक बड़े कांग्रेसी नेता ने पार्टी से किनारा कर लिया. कई और नेता नाराज हुए पर वह अपनी बात किसी से कह नहीं सके. इन सब की नाराजगी का कारण थे प्रियंका गांधी के निजी सचिव संदीप सिंह और धीरज गुर्जर. कहने को तो कांग्रेस की पूरी प्रदेश इकाई है. अध्यक्ष और क्षेत्रीय अध्यक्ष भी हैं. बावजूद इसके कोई भी निर्णय प्रियंका गांधी की अनुमति और सहमत के बिना शायद ही हो पाता हो. यही कारण है कि प्रदेश नेतृत्व पिछले कई वर्षों में जमीनी कार्यकर्ताओं की फौज तैयार करने में नाकाम रहा. तमाम अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर संदीप सिंह और धीरज गुर्जर पर अहम फैसले करने का आरोप भी लगा. सबसे बड़ा आरोप प्रियंका गांधी से कार्यकर्ताओं और नेताओं की मुलाकात में अड़चन उत्पन्न करने का है. पहले भी कई नेताओं ने इस तरह के आरोप लगाए हैं, लेकिन ताजा मामला इन दिनों खास चर्चा में है.
अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस
अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस
कांग्रेस कांग्रेस पार्टी से मेरठ की हस्तिनापुर विधानसभा सीट पर 2022 में विधानसभा चुनाव लड़ने वाली अर्चना गौतम ने संदीप सिंह पर गंभीर आरोप लगाए हैं. अर्चना 2022 में चुनाव तो नहीं जीत पाईं, लेकिन फेमस रियलिटी शो बिग बॉस से वह सुर्खियों में जरूर आ गई थीं. अर्चना गौतम ने रविवार को वीडियो जारी कर कहा 'यह सच है कि हमारी पार्टी में प्रियंका गांधी के पीए हैं संदीप सिंह, जिन्हें तमीज भी नहीं है कि किसी महिला या बुजुर्ग से कैसे बात करनी है. यहां तक कि पूरी कांग्रेस पार्टी उनसे खफा है. मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि यह ऐसे लोग क्यों रख रहे हैं, जो पार्टी को कुतर-कुतर कर खा रहे हैं. यहां तक कि मेरा मैसेज, मेरी जैसी लड़कियों का मैसेज, तमाम कार्यकर्ताओं का मैसेज प्रियंका तक पहुंच ही नहीं पाता, क्योंकि उन्होंने क्या किया हुआ है कि चारों ओर जकड़कर रखा हुआ है कांग्रेस को और अपने आदमी बैठा रखे हैं.' अर्चना ने कहा 'इन्होंने पूरा जकड़ कर रखा है प्रियंका जी को. कोई उनसे मिल नहीं सकता, अपनी बात नहीं कह सकता. अभी जैसे कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था, मैं वहां थी. मैंने कितने समय से प्रियंका जी से मिलने का समय लिया था, लेकिन ऐन मौके पर यह लोग मिलाने से मना कर देते हैं. फिर भी मैं किसी तरह अपना जुगाड़-पानी करके वहां तक पहुंची. दीदी (प्रियंका) से मैंने बात की कि दीदी मैं एक साल से आपसे टाइम मांग रही हूं. मेरे को नहीं दिया जा रहा है टाइम. वहां पर यह लोग आंख दिखाकर चुप कराना चाह रहे थे. आखिर ऐसा क्यों? क्या मैं कांग्रेस कार्यकर्ता नहीं हूं?'
अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस
अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषण डॉ. आलोक कुमार कहते हैं 'कांग्रेस पार्टी को कभी संगठन के लिए जाना जाता था. निचले स्तर के कार्यकर्ता तक का सम्मान होता था और इसी के बल पर वह बूथ स्तर पर पार्टी के लिए जी जान से जुटते थे. आज हालात बदल चुके हैं. जब नेता ही अपने वरिष्ठों से मिलने के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो आम कार्यकर्ता की क्या बिसात. दशकों तक राजनीति में संघर्ष करने वाले नेताओं की जगह यदि एमबीए अथवा यूनिवर्सिटी से सीधे आकर नेताओं के साथ काम करने वाले युवा ले लेंगे, तो स्थितियां यही होंगी. होना तो यह चाहिए कि वरिष्ठ नेताओं को पूरा सम्मान मिले, कार्यकर्ताओं से उनकी बात पूछी जाए और उन्हें अपनी बात रखने का पूरा अवसर दिया जाए. असल मुद्दे और जमीनी हकीकत इन से ज्यादा कोई नहीं समझ सकता. बस कांग्रेस नेतृत्व यही बात समझ नहीं पा रहा है. स्वाभाविक है कि जब तक इन परिस्थितियों में बदलाव नहीं होता, तब तक पार्टी का आगे बढ़ना मुश्किल है.

यह भी पढ़ें : यूपी में विधायकों को सजा मिलने का बना रिकॉर्ड, आजम परिवार की राजनीति तो खत्म हो गई

अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस

लखनऊ : कांग्रेस पार्टी प्रदेश में लगातार रसातल में जा रही है. हाल यह हो गया है कि कभी उत्तर प्रदेश के दम पर केंद्र में सरकार बनाने वाली कांग्रेस पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट जीतने में कामयाब हो सकी जो कांग्रेस की परंपरागत रायबरेली सीट थी और सोनिया गांधी खुद किस सीट से चुनाव मैदान में थीं. इस चुनाव में राहुल गांधी को अपनी परंपरागत अमेठी संसदीय सीट पर भाजपा नेता स्मृति ईरानी से पराजय का मुंह देखना पड़ा था. वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी मैं अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया है और वह महज दो सीटें जीतने में कामयाब हुई है. यह सीटें भी कांग्रेस पार्टी कम और प्रत्याशियों के अपने बलबूते पर ज्यादा मिल पाई हैं. कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू तक अपनी सीट नहीं बचा पाए. इन सारे कटु अनुभवों के बावजूद कांग्रेस पार्टी है कि सुधरने को तैयार नहीं. यही कारण है एक बार फिर पार्टी में बगावत किशोर सुनाई पड़ रहे हैं.

अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस
अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस
उत्तर प्रदेश में लगातार कमजोर हो रही कांग्रेस पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए 2022 के चुनाव में प्रियंका गांधी को प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. प्रियंका ने जीत के लिए प्रदेश के कई जिलों के ताबड़तोड़ दौरे किए. लोगों से मिलीं और हर वह कोशिश की जो वह कर सकती थीं. बस एक कमी रह गई. उनका कार्यकर्ताओं से संवाद ना के बराबर ही रहा. कहने को तो डिजिटल माध्यम से प्रियंका कार्यकर्ताओं से जुड़ती रहीं. हालांकि असल कार्यकर्ता इससे अनजान ही रहा. प्रियंका गांधी से मिलने के लिए तमाम नेताओं तक की कोशिशें नाकाम कर दी गईं. स्वाभाविक है कि उन्हें सही फीडबैक भी नहीं मिला और पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा. इससे नाराज होकर तत्कालीन बनारस के एक बड़े कांग्रेसी नेता ने पार्टी से किनारा कर लिया. कई और नेता नाराज हुए पर वह अपनी बात किसी से कह नहीं सके. इन सब की नाराजगी का कारण थे प्रियंका गांधी के निजी सचिव संदीप सिंह और धीरज गुर्जर. कहने को तो कांग्रेस की पूरी प्रदेश इकाई है. अध्यक्ष और क्षेत्रीय अध्यक्ष भी हैं. बावजूद इसके कोई भी निर्णय प्रियंका गांधी की अनुमति और सहमत के बिना शायद ही हो पाता हो. यही कारण है कि प्रदेश नेतृत्व पिछले कई वर्षों में जमीनी कार्यकर्ताओं की फौज तैयार करने में नाकाम रहा. तमाम अनुभवी नेताओं को दरकिनार कर संदीप सिंह और धीरज गुर्जर पर अहम फैसले करने का आरोप भी लगा. सबसे बड़ा आरोप प्रियंका गांधी से कार्यकर्ताओं और नेताओं की मुलाकात में अड़चन उत्पन्न करने का है. पहले भी कई नेताओं ने इस तरह के आरोप लगाए हैं, लेकिन ताजा मामला इन दिनों खास चर्चा में है.
अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस
अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस
कांग्रेस कांग्रेस पार्टी से मेरठ की हस्तिनापुर विधानसभा सीट पर 2022 में विधानसभा चुनाव लड़ने वाली अर्चना गौतम ने संदीप सिंह पर गंभीर आरोप लगाए हैं. अर्चना 2022 में चुनाव तो नहीं जीत पाईं, लेकिन फेमस रियलिटी शो बिग बॉस से वह सुर्खियों में जरूर आ गई थीं. अर्चना गौतम ने रविवार को वीडियो जारी कर कहा 'यह सच है कि हमारी पार्टी में प्रियंका गांधी के पीए हैं संदीप सिंह, जिन्हें तमीज भी नहीं है कि किसी महिला या बुजुर्ग से कैसे बात करनी है. यहां तक कि पूरी कांग्रेस पार्टी उनसे खफा है. मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि यह ऐसे लोग क्यों रख रहे हैं, जो पार्टी को कुतर-कुतर कर खा रहे हैं. यहां तक कि मेरा मैसेज, मेरी जैसी लड़कियों का मैसेज, तमाम कार्यकर्ताओं का मैसेज प्रियंका तक पहुंच ही नहीं पाता, क्योंकि उन्होंने क्या किया हुआ है कि चारों ओर जकड़कर रखा हुआ है कांग्रेस को और अपने आदमी बैठा रखे हैं.' अर्चना ने कहा 'इन्होंने पूरा जकड़ कर रखा है प्रियंका जी को. कोई उनसे मिल नहीं सकता, अपनी बात नहीं कह सकता. अभी जैसे कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था, मैं वहां थी. मैंने कितने समय से प्रियंका जी से मिलने का समय लिया था, लेकिन ऐन मौके पर यह लोग मिलाने से मना कर देते हैं. फिर भी मैं किसी तरह अपना जुगाड़-पानी करके वहां तक पहुंची. दीदी (प्रियंका) से मैंने बात की कि दीदी मैं एक साल से आपसे टाइम मांग रही हूं. मेरे को नहीं दिया जा रहा है टाइम. वहां पर यह लोग आंख दिखाकर चुप कराना चाह रहे थे. आखिर ऐसा क्यों? क्या मैं कांग्रेस कार्यकर्ता नहीं हूं?'
अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस
अतीत की गलतियों से कुछ भी सीखने को तैयार नहीं है कांग्रेस
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषण डॉ. आलोक कुमार कहते हैं 'कांग्रेस पार्टी को कभी संगठन के लिए जाना जाता था. निचले स्तर के कार्यकर्ता तक का सम्मान होता था और इसी के बल पर वह बूथ स्तर पर पार्टी के लिए जी जान से जुटते थे. आज हालात बदल चुके हैं. जब नेता ही अपने वरिष्ठों से मिलने के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो आम कार्यकर्ता की क्या बिसात. दशकों तक राजनीति में संघर्ष करने वाले नेताओं की जगह यदि एमबीए अथवा यूनिवर्सिटी से सीधे आकर नेताओं के साथ काम करने वाले युवा ले लेंगे, तो स्थितियां यही होंगी. होना तो यह चाहिए कि वरिष्ठ नेताओं को पूरा सम्मान मिले, कार्यकर्ताओं से उनकी बात पूछी जाए और उन्हें अपनी बात रखने का पूरा अवसर दिया जाए. असल मुद्दे और जमीनी हकीकत इन से ज्यादा कोई नहीं समझ सकता. बस कांग्रेस नेतृत्व यही बात समझ नहीं पा रहा है. स्वाभाविक है कि जब तक इन परिस्थितियों में बदलाव नहीं होता, तब तक पार्टी का आगे बढ़ना मुश्किल है.

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