लखनऊः यूपी बीजेपी प्रभारी राधा मोहन सिंह और यूपी भाजपा के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने स्पष्ट कर दिया है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में ही आगामी विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा. यदि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा तो उनके सामने विधायकों और कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करना सबसे बड़ी चुनौती होगी. पार्टी की रणनीति 'बूथ जीतो, चुनाव जीतो' है. कार्यकर्ताओं के नाराज होने से बूथ जीतो मिशन को झटका लग जाएगा. पार्टी के अवध क्षेत्र के एक पदाधिकारी कहते हैं कि बड़े नेताओं को छोड़ दिया जाए तो इस सरकार में सबसे अधिक परेशानी भाजपा कार्यकर्ताओं को हुई है. मसलन पुलिस ने किसी वाहन को रोका तो उसके गाड़ी में पार्टी का झंडा लगा है या फिर उसने भाजपा का नाम ले लिया तो चालान जरूर कटेगा. जबकि उन्हीं आरोपों में दूसरों को छोड़ दिया जाता है. इसलिए कार्यकर्ता को लगता है कि अपनी सरकार में सम्मान भी नहीं मिला है.
विधायकों की नाराजगी का चुनाव पर कितना पड़ेगा असर
पार्टी के एक के बाद एक अब तक कई विधायकों की नाराजगी सामने आई है. विधानसभा में एक बार तो भाजपा विधायक धरने पर बैठ गए थे. हालांकि विधायकों की नाराजगी दूर करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले कुछ समय से प्रयास करते हुए दिखाई दे रहे हैं. वह अधिकारियों को यह निर्देशित कर रहे हैं कि किसी भी कार्यक्रम का उद्घाटन अधिकारी नहीं बल्कि जनप्रतिनिधि करेंगे. सरकार के बड़े अभियान में जनप्रतिनिधियों को जोड़ा जाए. अधिकारी विधायकों का सम्मान करें. प्रोटोकॉल के तहत सरकारी दफ्तरों में उनका स्वागत हो.
बावजूद इसके अधिकारी विधायक की नहीं सुन रहे हैं. दबी जुबान में विधायक यह कहते हुए भी दिखाई दे रहे हैं कि पार्टी के विधायक संगठन से इसकी कई बार शिकायत कर चुके हैं. मुख्यमंत्री के गृह जनपद गोरखपुर सदर सीट से विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल, मोहनलालगंज के सांसद कौशल किशोर समेत कई विधायक और सांसद संगठन में शिकायत करने के साथ ही सोशल मीडिया पर भी अपनी बात रख चुके हैं. इस पर राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय कहते हैं कि चुनाव विधायक नहीं लड़ेंगे. भाजपा में चुनाव संगठन लड़ता है. इसलिए यह बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है. क्षेत्र में काम नहीं करने की वजह से विधायकों की साख खुद दांव पर लगी है.
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कोविड की दूसरी लहर से जनता में भी पनपी नाराजगी
प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर में सरकारी तंत्र की लापरवाही उजागर हुई. सवाल उठने लगे कि पहली लहर के दौरान अगर सरकार ठीक से तैयारी कर ली होती तो ऐसी परिस्थितियां पैदा ही नहीं होती. दूसरी लहर के दौरान अस्पतालों में घोर अव्यवस्था देखने को मिली. मरीज को भर्ती होने में दिक्कत हुई. ऑक्सीजन की कमी से लोग दम तोड़ गए. दवाओं की किल्लत ने भी लोगों को खूब परेशान किया. हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के सभी मंडलों का दौरा करके व्यवस्थाओं को पटरी लाने पर के लिए भरसक प्रयास किया. उसका नतीजा भी देखने को मिल रहा है. कोविड से पीड़ित परिवारों के बीच भाजपा जा रही है. जिन परिवारों ने अपनों को खोया है, उनकी मदद की जाएगी. मृतक आश्रितों को नौकरी दिलाने में और उनके भरण-पोषण में मदद की जाएगी.
जातीय समीकरण को देखते हुए छोटे दलों को साधना बड़ी चुनौती
भाजपा की छोटे दलों से अनबन की वजह से सभी जातियों को साधना उसके लिए बड़ी चुनौती बन गई है. भाजपा जिन दलों को साथ लेकर 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत दज की थी, आज वही दल भाजपा से नाराज चल रहे हैं. ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भाजपा से अलग हो चुकी है. वहीं एनडीए गठबंधन में शामिल अपना दल (एस) की नेता अनुप्रिया पटेल भाजपा से नाराज चल रही हैं. ऐसे में भाजपा के सामने कुर्मी और राजभर समेत अन्य पिछड़ी जातियों को साधना बड़ी चुनौती है. इन दोनों दलों का भी प्रभाव पूर्वांचल में ही है. सीएम योगी भी पूर्वांचल से आते हैं. देखना होगा कि इन दलों को अपने साथ लाने की परीक्षा में सीएम योगी कितना सफल हो पाते हैं.
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विपक्ष की शून्यता योगी के लिए सकारात्मक
राजनीतिक विश्लेषक सियाराम पांडे का मानना है कि अगर उत्तर प्रदेश में विपक्षी दल मजबूती से खड़े होते हैं. मुखर होकर सरकार की नीतियों का विरोध करते हैं. सरकार की खामियों का विरोध करते हैं तो निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने कड़ी चुनौती होगी. हालांकि उत्तर प्रदेश में विपक्ष एकदम से शिथिल पड़ा हुआ है. उसकी कोई सक्रियता देखने को नहीं मिल रही है. यह योगी आदित्यनाथ के लिए सकारात्मक साबित हो सकता है.