लखनऊः वर्तमान में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां महिलाओं की उपलब्धियां दर्ज न हों. जो काम पुरुष कर सकते हैं, वह महिलाएं भी बखूबी कर रही हैं. राजनीति में महिलाओं की भागीदारी अहम मानी जाती रही है. ऐसा देखा जाता रहा है कि पहले चुनाव में महिलाएं भाग तो लेती थीं, लेकिन किसी कारणों से राजनीति में कम ही हिस्सा लेती रही हैं. उनके ऊपर पारिवारिक और समाजिक दबाव ज्यादा था. इक्का-दुक्का ही महिलाएं राजनीति में देखने को मिलती थीं, लेकिन जैसे-जैसे समय बदला राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी भी बढ़ी. एक तरफ जहां महिलाएं चुनाव मैंदान में उतर कर अपनी दावेदारी पेश कर रही थीं तो दूसरी तरफ घूंघट हटाकर 'साइलेंट वोटर' (Silent Voters) बन अपने मताधिकार कर प्रयोग करने के लिए आगे आने लगीं.
मायने रखती हैं महिलाएं
पिछले कुछ सालों में मतदान में महिलाओं की बढ़ती हिस्सेदारी को देखते हुए राजनीतिक दलों में उन्हें लुभाने की होड़ मची हुई है. 2017 विधानसभा चुनाव में सपा ने सभी महिलाओं को रोडवेज बसों में यात्रा करने पर आधे किराए में छूट देना, कामकाजी महिलाओं के लिए शहरों में छात्रावासों का निर्माण कराना, साथ ही मुफ्त ई-रिक्शा की व्यवस्था का वादा किया था. वहीं बीजेपी ने प्रदेश के हर गरीब परिवार में बेटी के जन्म पर 50 हजार का विकास बॉन्ड, बेटियों की पढ़ाई के लिए रुपये दिए जाने, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय में वृद्धि, विधवा पेंशन योजना जैसे लोकलुभावन वादे अपने चुनावी घोषणा पत्र में किए थे.
महिलाओं की भागीदारी
2017 यूपी विधानसभा चुनाव में 41 महिलाएं विधायक बनीं. इसमें से 35 विधायक बीजेपी की थीं. कांग्रेस की दो महिला विधायक, बीएसपी की दो महिला विधायक, एसपी की एक महिला विधायक और अपना दल की एक महिला विधायक विधानसभा पहुंचीं. हाल ही में योगी कैबिनेट का विस्तार किया गया हैं, इसमें संगीता बलवंत बिंद को मंत्री बनाया है. बता दें कि योगी मंत्रिमंडल में स्वाति सिंह को पहले ही जगह दी गई है.
प्रभावित कर रही हैं महिला मतदाता
अगले साल 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव होने हैं. दिलचस्प बात है कि राज्य में लगातार महिला मतदाताओं की संख्या में इजाफा देखने को मिला है. साल 2007 में जहां महिलाओं का कुल वोट प्रतिशत 41.92 रहा. वहीं साल 2012 में यह बढ़कर 60.28 प्रतिशत तक पहुंच गया और साल 2017 में तो यह 70.53 प्रतिशत तक पहुंच गया. चुनाव आयोग के अनुसार प्रदेश में 7.90 करोड़ पुरुष तो 6.70 करोड़ महिला वोटर हैं. पिछले दो आम चुनावों में जिस तरह से महिला वोट प्रतिशत में वृद्धि दर्ज की गई है, उससे साफ होता है कि चुनाव में महिलाएं किसी भी दल की दशा और दिशा बदलने में सक्षम हैं.
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साइलेंट वोट बैंक हैं महिलाएं
केंद्र की भाजपा सरकार ने 2017 के यूपी चुनाव में महिलाओं को साधने के लिए उज्जवला योजना, शौचालयों का निर्माण, पक्का घर, मुफ्त राशन, महिलाओं को आर्थिक मदद जैसी कई योजनाएं लेकर आई. जिसका असर यूपी चुनाव में देखने को मिला. मोदी लहर में प्रदेश की ग्रामीण महिलाओं ने भी 2017 में भाजपा को वोट दिया, जिसका परिणाम रहा कि बीजेपी 312 सीटें जीतकर पहली पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाने में सफल रही थी. अब बीजेपी की यूपी महिला मोर्चा को जिम्मेदारी दी गई है कि वह 'कमल सहेली क्लब' में 500 महिलाओं को जोड़ें. बीजेपी इस क्लब से जुड़ने वाली महिलाओं का उपयोग बूथ स्तर पर चुनाव में किए जाने का प्लान तैयार किया गया है.
'लड़की हूं लड़ सकती हूं' का नारा देने वाली कांग्रेस ने महिलाओं से आह्वान किया है कि वह पार्टी से जुड़े और राजनीति करें. आगामी विधान सभा चुनाव को देखते हुए इसे मास्टर स्ट्रोक की तरह देखा जा रहा है. वहीं सपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 165 सीटों पर लगभग 30 से 35 सीटों पर महिलाओं को टिकट देने योजना बनाई है. अब देखने वाली बात होगी की आगामी विधानसाभ के रण में साइलेंट वोटर किसको अपना मत देंगी.
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