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UP Politics: सपा के लिए कांटों भरा है ब्राह्मण समाज को रिझाना

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) से पहले सभी राजनीतिक दल ब्राह्मण समाज को रिझाने में लगे हुए हैं. वहीं, सपा के ब्राह्मण नेता अपने क्षेत्रों तक ही सीमित हैं, ऐसे में समाजवादी पार्टी के लिए ब्राह्मण समाज को रिझाना आसान नहीं है.

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Published : Jun 30, 2021, 6:56 PM IST

सपा के लिए कांटों भरा है ब्राह्मण समाज को रिझाना
सपा के लिए कांटों भरा है ब्राह्मण समाज को रिझाना

लखनऊः प्रदेश में विधानसभा चुनाव अगले साल है, लेकिन सभी राजनीतिक पार्टियां अभी से ही अपने समीकरण बैठाना शुरू कर चुकी हैं. राजनीतिक पार्टियां जातीय समीकरण को लेकर अभी से मंथन करने में लगी हुई हैं. विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) को लेकर राजनीतिक दल ब्राह्मण समाज को रिझाने को कोशिश कर रहे हैं. वर्तमान में प्रदेश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (BJP) से ब्राह्मण समाज नाराज चल रहा है. ब्राह्मणों को एक मजबूत विकल्प की तलाश है, जो उन्हें सम्मान के साथ-साथ राजनीतिक सहभागिता भी दे सकें. ऐसे में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के सामने चुनौती के साथ-साथ विकल्प भी है. सपा भी ब्राह्मण समाज को जोड़ने की रणनीति बना रही है. लेकिन सपा के लिए ब्राह्मण समाज रिझाना आसान नहीं है. क्योंकि समाजवादी पार्टी में ब्राम्हण नेता तेज नारायण पांडे, संतोष पांडे, मनोज पांडे, अभिषेक मिश्रा, ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी और माता प्रसाद पांडे अपने क्षेत्रों तक ही सीमित होकर रह गए हैं और कोई बड़ा करिश्मा नहीं कर पाए हैं.

ब्राह्मण समाज को मनाना सपा के लिए नहीं आसान.

परेशान और निराश है ब्राह्मण समाज
ETV BHARAT से बातचीत करते हुए वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्रा का कहना है कि ब्राह्मणों को रिझाने में सभी दल लगे हुए हैं, लेकिन यह आसान नहीं है. ब्राह्मणों ने खुद अपना बंटवारा किया हुआ है. जिस तरह से ब्राह्मण समाज बंटा हुआ है, उतने लीडर तैयार करना आसान नहीं है. एक बात निश्चित रूप से सही है कि ब्राह्मण वर्तमान सरकार से परेशान और निराश है. एक बार फिर ब्राह्मण समाज प्रूफ करना चाहता है कि उसके वोटों के बिना कोई सरकार नहीं बन सकती है.

अखिलेश श्रेय देने के लिए हुए तैयार तो मिलेगा फायदा
योगेश मिश्रा का कहना है कि यदि अखिलेश यादव 2022 के विधानसभा के चुनाव में ब्राह्मणों को श्रेय देने के लिए तैयार होते हैं तो निश्चित रूप से समाजवादी पार्टी को इसका फायदा मिलेगा और जो भी ब्राम्हण चेहरे अभी अलग-अलग रास्ते पर चल रहे हैं उसका कुछ खास असर नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में ब्राह्मण समाज एक ऐसे लीडर की तलाश कर रहा है जो उन्हें उनके वोटों का श्रेय दें. यदि अखिलेश यादव यह श्रेय नहीं देते हैं तो समाजवादी पार्टी में ब्राह्मण नेताओं की जो आपसी गुटबाजी है वह उभर कर और अधिक सामने आएगी.

सपा वन मैन आर्मी वाली पार्टी
योगेश मिश्रा का कहना है कि समाजवादी पार्टी लोकतांत्रिक पार्टी नहीं है बल्कि सुप्रीमो और सिंगल मैन आर्मी वाली पार्टी है. ऐसे में अखिलेश यादव इस बात पर विचार कर सकते हैं कि वह अपनी सरकार बनाने का श्रेय ब्राह्मणों को देना चाहेंगे या नहीं. इसके साथ ही यदि अखिलेश यादव किसी ब्राह्मण चेहरे को लेकर प्रयोग करते हैं तो यह समाजवादी पार्टी के लिए फलदाई ही नहीं होगा. योगेश मिश्रा का कहना है कि जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव राजनीति करते थे उस समय उनके पास जनेश्वर मिश्रा नाम के बड़े ब्राह्मण नेता थे और वह ब्राह्मण समाज का नेतृत्व भी करते थे. जनेश्वर मिश्रा के निधन के बाद समाजवादी पार्टी में उनके कद का कोई बड़ा नेता नहीं हुआ है.

करिश्मा नहीं कर पाए सपा के ब्राह्मण नेता
समाजवादी पार्टी की यदि ब्राह्मण नेताओं की बात की जाए तो 2012 में अखिलेश यादव ने अपनी कैबिनेट में अभिषेक मिश्रा को प्रोटोकॉल मंत्री बनाने के साथ-साथ विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री का प्रभार मनोज पांडे को सौंपा था. इसके साथ ही विधानसभा का अध्यक्ष माता प्रसाद पांडे को बनाया था. इसके अलावा अयोध्या के विधायक तेज नारायण पांडे, देवरिया के ब्राह्मण नेता ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी को भी अखिलेश कैबिनेट में जगह दी थी. लेकिन र यह नेता कुछ खास करिश्मा नहीं कर पाए. वर्तमान में मनोज पांडे एक अलग राह पर चल रहे हैं, वहीं अयोध्या के पूर्व मंत्री तेज नारायण पांडे अपनी लाइन पर चल रहे हैं. जबकि पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्रा व सुलतानपुर की लंभुआ विधानसभा से विधायक संतोष पांडे की अपनी अलग ही राजनीति है. यह सभी ब्राह्मण समाज के नेता विधानसभा क्षेत्रों तक ही सीमित होकर रह गए हैं. यही कारण है कि 2022 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए समाजवादी पार्टी को ब्राम्हण मतों की चिंता सताने लगी है.

इसे भी पढ़ें-'बाल सेवा योजना' की तर्ज पर निराश्रित महिलाओं के लिए योजना शुरू करेगी सरकार



2007 में मिला था बसपा को लाभ
बता दें कि ब्राह्मणों को साधने के लिए बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने 2007 में सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लिया था. उस समय बृजेश पाठक, रामवीर उपाध्याय, सतीश चंद्र मिश्रा, दद्दू प्रसाद जैसे बड़े ब्राह्मण नेता को ब्राम्हण वोटों को सहेजने की जिम्मेदारी सौंपी थी. जिसका परिणाम यह हुआ कि 2007 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को 206 सीटों पर विजय मिली और मायावती उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई थीं. तब मायावती की सोशल इंजीनियरिंग की हर तरफ चर्चा थी और यह समझा जाने लगा था कि ब्राह्मण मतदाता भी निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं.

लखनऊः प्रदेश में विधानसभा चुनाव अगले साल है, लेकिन सभी राजनीतिक पार्टियां अभी से ही अपने समीकरण बैठाना शुरू कर चुकी हैं. राजनीतिक पार्टियां जातीय समीकरण को लेकर अभी से मंथन करने में लगी हुई हैं. विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Election 2022) को लेकर राजनीतिक दल ब्राह्मण समाज को रिझाने को कोशिश कर रहे हैं. वर्तमान में प्रदेश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (BJP) से ब्राह्मण समाज नाराज चल रहा है. ब्राह्मणों को एक मजबूत विकल्प की तलाश है, जो उन्हें सम्मान के साथ-साथ राजनीतिक सहभागिता भी दे सकें. ऐसे में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के सामने चुनौती के साथ-साथ विकल्प भी है. सपा भी ब्राह्मण समाज को जोड़ने की रणनीति बना रही है. लेकिन सपा के लिए ब्राह्मण समाज रिझाना आसान नहीं है. क्योंकि समाजवादी पार्टी में ब्राम्हण नेता तेज नारायण पांडे, संतोष पांडे, मनोज पांडे, अभिषेक मिश्रा, ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी और माता प्रसाद पांडे अपने क्षेत्रों तक ही सीमित होकर रह गए हैं और कोई बड़ा करिश्मा नहीं कर पाए हैं.

ब्राह्मण समाज को मनाना सपा के लिए नहीं आसान.

परेशान और निराश है ब्राह्मण समाज
ETV BHARAT से बातचीत करते हुए वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्रा का कहना है कि ब्राह्मणों को रिझाने में सभी दल लगे हुए हैं, लेकिन यह आसान नहीं है. ब्राह्मणों ने खुद अपना बंटवारा किया हुआ है. जिस तरह से ब्राह्मण समाज बंटा हुआ है, उतने लीडर तैयार करना आसान नहीं है. एक बात निश्चित रूप से सही है कि ब्राह्मण वर्तमान सरकार से परेशान और निराश है. एक बार फिर ब्राह्मण समाज प्रूफ करना चाहता है कि उसके वोटों के बिना कोई सरकार नहीं बन सकती है.

अखिलेश श्रेय देने के लिए हुए तैयार तो मिलेगा फायदा
योगेश मिश्रा का कहना है कि यदि अखिलेश यादव 2022 के विधानसभा के चुनाव में ब्राह्मणों को श्रेय देने के लिए तैयार होते हैं तो निश्चित रूप से समाजवादी पार्टी को इसका फायदा मिलेगा और जो भी ब्राम्हण चेहरे अभी अलग-अलग रास्ते पर चल रहे हैं उसका कुछ खास असर नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में ब्राह्मण समाज एक ऐसे लीडर की तलाश कर रहा है जो उन्हें उनके वोटों का श्रेय दें. यदि अखिलेश यादव यह श्रेय नहीं देते हैं तो समाजवादी पार्टी में ब्राह्मण नेताओं की जो आपसी गुटबाजी है वह उभर कर और अधिक सामने आएगी.

सपा वन मैन आर्मी वाली पार्टी
योगेश मिश्रा का कहना है कि समाजवादी पार्टी लोकतांत्रिक पार्टी नहीं है बल्कि सुप्रीमो और सिंगल मैन आर्मी वाली पार्टी है. ऐसे में अखिलेश यादव इस बात पर विचार कर सकते हैं कि वह अपनी सरकार बनाने का श्रेय ब्राह्मणों को देना चाहेंगे या नहीं. इसके साथ ही यदि अखिलेश यादव किसी ब्राह्मण चेहरे को लेकर प्रयोग करते हैं तो यह समाजवादी पार्टी के लिए फलदाई ही नहीं होगा. योगेश मिश्रा का कहना है कि जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव राजनीति करते थे उस समय उनके पास जनेश्वर मिश्रा नाम के बड़े ब्राह्मण नेता थे और वह ब्राह्मण समाज का नेतृत्व भी करते थे. जनेश्वर मिश्रा के निधन के बाद समाजवादी पार्टी में उनके कद का कोई बड़ा नेता नहीं हुआ है.

करिश्मा नहीं कर पाए सपा के ब्राह्मण नेता
समाजवादी पार्टी की यदि ब्राह्मण नेताओं की बात की जाए तो 2012 में अखिलेश यादव ने अपनी कैबिनेट में अभिषेक मिश्रा को प्रोटोकॉल मंत्री बनाने के साथ-साथ विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री का प्रभार मनोज पांडे को सौंपा था. इसके साथ ही विधानसभा का अध्यक्ष माता प्रसाद पांडे को बनाया था. इसके अलावा अयोध्या के विधायक तेज नारायण पांडे, देवरिया के ब्राह्मण नेता ब्रह्मा शंकर त्रिपाठी को भी अखिलेश कैबिनेट में जगह दी थी. लेकिन र यह नेता कुछ खास करिश्मा नहीं कर पाए. वर्तमान में मनोज पांडे एक अलग राह पर चल रहे हैं, वहीं अयोध्या के पूर्व मंत्री तेज नारायण पांडे अपनी लाइन पर चल रहे हैं. जबकि पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्रा व सुलतानपुर की लंभुआ विधानसभा से विधायक संतोष पांडे की अपनी अलग ही राजनीति है. यह सभी ब्राह्मण समाज के नेता विधानसभा क्षेत्रों तक ही सीमित होकर रह गए हैं. यही कारण है कि 2022 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए समाजवादी पार्टी को ब्राम्हण मतों की चिंता सताने लगी है.

इसे भी पढ़ें-'बाल सेवा योजना' की तर्ज पर निराश्रित महिलाओं के लिए योजना शुरू करेगी सरकार



2007 में मिला था बसपा को लाभ
बता दें कि ब्राह्मणों को साधने के लिए बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने 2007 में सोशल इंजीनियरिंग का सहारा लिया था. उस समय बृजेश पाठक, रामवीर उपाध्याय, सतीश चंद्र मिश्रा, दद्दू प्रसाद जैसे बड़े ब्राह्मण नेता को ब्राम्हण वोटों को सहेजने की जिम्मेदारी सौंपी थी. जिसका परिणाम यह हुआ कि 2007 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को 206 सीटों पर विजय मिली और मायावती उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई थीं. तब मायावती की सोशल इंजीनियरिंग की हर तरफ चर्चा थी और यह समझा जाने लगा था कि ब्राह्मण मतदाता भी निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं.

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