लखनऊ. विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) में भले ही अभी छह माह से ज्यादा का समय है, लेकिन प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं. इस बार सत्ता के केंद्र बिंदु में सभी पार्टियां ब्राह्मणों को रख रही हैं. अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) परशुराम की मूर्ति स्थापित करके ब्राह्मणों को आकर्षित करने की जुगत में जुटी है, तो बहुजन समाज पार्टी (BSP) फिर से ब्राह्मण सम्मेलन (Brahmin Convention) का प्लान कर रही है. जबकि भारतीय जनता पार्टी (Bhartiya Janata Party) को पहले से ही ब्राह्मणों के झुकाव वाली पार्टी माना जाता रहा है. अब इन्हीं पार्टियों के नक्शेकदम पर कांग्रेस पार्टी भी चल पड़ी है. पार्टी का प्लान है कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा ब्राह्मण रखा जाए, जिससे कभी कांग्रेस के हितैषी रहे ब्राह्मण वापस लौट आएं. बता दें कि कांग्रेस पार्टी का इतिहास रहा है कि अब तक इस पार्टी ने उत्तर प्रदेश को 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री दिए हैं, जो किसी भी पार्टी में सबसे ज्यादा हैं.
बता दें कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी तीन दशकों से ज्यादा समय से सत्ता से दूर है और इसकी वजह है पार्टी के कोर वोटर बिखरकर दूसरी पार्टियों की तरफ रुख कर गए हैं. 32 साल बाद अब कांग्रेस की नब्ज टटोलकर सियासत में सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंचने के लिए फूंक-फूंक कर कदम रख रही है. उत्तर प्रदेश में इस बार ब्राह्मण भारतीय जनता पार्टी से रूठा हुआ है. ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें योगी सरकार से ब्राह्मणों की नाराजगी जताई है. लिहाजा इसी का फायदा उठाने का प्लान बना रही है. कांग्रेस ब्राह्मणों को अपनी तरफ लुभाने की कोशिश में जुटी है. इसलिए पार्टी अगले विधानसभा चुनाव के लिए किसी ब्राह्मण चेहरे को मुख्यमंत्री के रूप में पेश करने पर गंभीरता से चिंतन कर रही है.
पार्टी की पहली पसंद वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मण नेता के तौर पर मशहूर हैं. उनका राजनीतिक करियर भी लगभग चार दशकों का हो चुका है. 9 बार लगातार विधायक रहने का उनका वर्ल्ड रिकॉर्ड है, राज्यसभा सांसद भी रह चुके हैं. ब्राह्मणों के बीच उनकी अच्छी पैठ है. ऐसे में इस बार पार्टी प्रमोद तिवारी पर दांव लगा सकती है. खास बात यह है कि प्रमोद तिवारी कांग्रेस पार्टी में सभी की पसंद हैं और उनका राजनीति में कभी भी विवादों से कोई नाता नहीं रहा है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रमोद तिवारी को मुख्यमंत्री फेस बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी है, जिससे अब पार्टी नेताओं के बीच सीएम फेस को लेकर प्रमोद तिवारी के नाम पर चर्चा भी शुरू हो गई है.
पीके की सहमति से शीला दीक्षित को यूपी में किया गया था पेश
बता दें कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में रणनीतिकार प्रशांत किशोर कांग्रेस पार्टी के साथ जुड़े थे. उन्हें पता था कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए ब्राह्मण कितने जरूरी हैं, इसीलिए पीके ने दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को कांग्रेस की तरफ से उतर प्रदेश में मुख्यमंत्री का फेस बनाया गया था. इसके साथ ही उनका उत्तर प्रदेश से रिश्ता भी सामने लाया गया था. हालांकि ब्राह्मण एकजुट होकर कांग्रेस की तरफ झुक पाते, इससे पहले समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस का गठबंधन हो गया और सीएम फेस के कोई मायने ही नहीं रह गए.
कांग्रेस पार्टी के नेता अगर यह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा ब्राह्मणों को प्रतिनिधित्व कांग्रेस पार्टी ने दिया तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है. गोविंद बल्लभ पंत, सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, श्रीपति मिश्रा और नारायण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण के रूप में कांग्रेस पार्टी से मुख्यमंत्री बन चुके हैं. इन सभी को कांग्रेस पार्टी ने ही मौका दिया था.
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कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल
गोविंद वल्लभ पंतः 26 जनवरी 1950 से 27 दिसंबर 1954
संपूर्णानंदः 28 दिसंबर 1954 से 6 दिसंबर 1960
चंद्रभानु गुप्ताः 7 दिसंबर 1960 से 1 अक्टूबर 1963
सुचेता कृपलानीः 2 अक्टूबर 1963 से 13 मार्च 1967
चंद्रभानु गुप्ताः 14 मार्च 1967 से 2 अप्रैल 1967
चंद्रभानु गुप्ताः 26 फरवरी 1969 से 17 फरवरी 1970
त्रिभुवन नारायण सिंहः 18 अक्टूबर 1970 से 3 अप्रैल 1971
कमलापति त्रिपाठीः 4 अप्रैल 1971 से 12 जून 1973
हेमवंती नंदन बहुगुणाः 8 नवंबर 1973 से 29 नवंबर 1975
नारायण दत्त तिवारीः 21 जनवरी 1976 से 30 अप्रैल 1977
नारायण दत्त तिवारीः 3 अगस्त 1984 से 24 सितंबर 1985
वीर बहादुर सिंहः से 24 सितंबर 1985 से 24 जून 1988
नारायण दत्त तिवारीः 25 जून 1985 से 5 दिसंबर 1989
क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रत्नमणि लाल कहते हैं कि प्रमोद तिवारी कांग्रेस के बहुत पुराने और बड़े मजबूत नेताओं में रहे हैं. यह शिकायत तो उनकी ओर से तो डायरेक्टली नहीं, लेकिन पार्टी में माना जाता है कि उन्हें जो महत्व मिलना चाहिए था, वह नहीं मिलता. इस बात को लेकर पार्टी के कार्यकर्ता और समर्थक दबी जुबान से कहते हैं. अब समय आ गया है कि इस तरह के नेताओं का जो महत्व है, उसे आंकने का और चुनावी मैदान में देखने और समझने का मौका देना चाहिए. 5 साल में एक बार ये समय आता है. अगर यह मौका आ रहा है न केवल उन्हें एक ब्राह्मण नेता के रूप में पहचानने का टाइम है बल्कि पार्टी के पास ब्राह्मणों को अपने साथ जोड़ने का एक अच्छा अवसर है. पार्टी को पुराने ब्राह्मण नेता को पेश करना चाहिए. इससे इस वर्ग के लोग भी पार्टी के साथ जुड़ेंगे. क्योंकि इस वर्ग का जुड़ना किसी भी पार्टी के लिए बहुत मजबूत रणनीति का हिस्सा रहा है और आगे अगर कांग्रेसी भी ये करती है तो उसके लिए भी बेहतर होगा.