लखनऊः कभी 'तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूता चार' का नारा देने वाली बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) आजकल भारतीय जनता पार्टी (BJP) के एजेंडे को अपनाकर 2022 (UP Assembly Election 2022) की सत्ता हासिल करने के लिए जुट गई है. बसपा प्रमुख मायावती (Mayawati) ने सबसे पहले प्रदेश की ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने की कोशिश शुरू कर दी है.पार्टी ने ब्राह्मण सम्मेलन करना शुरू कर दिया है. इसी कड़ी में बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र अयोध्या पहुंचकर ब्राह्मणों की जमकर वकालत की. सतीश चंद्र ने भाजपा के सबसे महत्वपूर्ण एजेंडे अयोध्या, काशी और मथुरा का भी जिक्र किया. अब सवाल उठता है कि क्या बसपा इसमें सफल हो पाएगी.
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बसपा के इस राजनीतिक चाल को भारतीय जनता पार्टी गंभीरता से नहीं ले रही है. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता हीरो बाजपेई कहते हैं कि देश में बहुत सारे लोग कहते थे कि राम का क्या काम है. राम का अस्तित्व ही नहीं है. ऐसी तमाम बातें बसपा, सपा और कांग्रेस जैसे दल करते थे. आज देश की जनता का आशीर्वाद बीजेपी के साथ है. 2014 में हमने केंद्र में सरकार बनाई और 2017 में उत्तर प्रदेश में हमारी सरकार बनी. 2019 में जनता के आशीर्वाद से पुनः केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार बनी है. इस दौरान हमने जो माहौल बनाया उसे सबने माना है.
मंदिर जाने से घबराते थे पार्टियों के राजकुमार
बाजपेयी कहते हैं कि राजनीतिक पार्टियों के राजकुमार मंदिर दर्शन करने तक नहीं जाते थे. अब वह मंदिर दर्शन करने के लिए जाने लगे हैं. कोई कहने लगा कि देश में हम कृष्ण की मूर्ति लगाएंगे. कोई भगवान परशुराम की भव्य प्रतिमा स्थापित करने की बात कर रहा है. राजनीतिक पार्टियों के लोगों को हिंदुस्तान की सनातन संस्कृति और सभ्यता में रुचि बढ़ गई है. भाजपा का यही एजेंडा था. इस झंडे को सर्व समाज और सर्व दलों में स्वीकार किया गया है. अब कोई भी दल सनातन संस्कृति और सभ्यता से दूर नहीं रह गया. सभी को उसका अनुसरण करना पड़ रहा है. बसपा कुछ भी कर ले लेकिन उसके साथ कोई जाने वाला नहीं है. प्रदेश की जनता का आशीर्वाद हमारे साथ है. 2022 में पुनः हम सरकार बनाने जा रहे हैं.
बसपा की राजनीति तक समझ से परे
राजनीतिक विश्लेषक वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी काशी, मथुरा और अयोध्या का जिक्र करके अपनी खोई हुई जमीन को वापस पाना चाह रही है. जोकि राजनीतिक कलाबाजी है, क्योंकि यह वही लोग हैं जिन्होंने पहले इसका विरोध किया था. ब्राह्मण समाज को दलित समाज का सबसे बड़ा विरोधी माना था, लेकिन 2007 के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों के साथ आने से बहुजन समाज पार्टी सत्ता में आ गई. पांच साल की उपलब्धियां इनकी सरकार में हुए भ्रष्टाचार के चलते दफन हो गई और बसपा सत्ता से बाहर हो गई. उसके बाद से लगातार पूरे देश में बसपा की राजनीति नकारी जा रही है.
बयान और ट्वीट से नहीं जुड़ता समाज
राजेन्द्र कुमार कहते हैं कि मेरा मानना है कि ब्राह्मण समाज के लिए कुछ नारे गढ़ देने से या अयोध्या में काशी मथुरा का जिक्र कर देने से खोई हुई जमीन बसपा को नहीं मिलने वाली है. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार है. अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है. काशी में भी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण हो रहा है. ऐसे में बसपा के लिए काशी, मथुरा में कुछ कर सकने की कोई गुंजाइश नहीं बची है. ब्राह्मण समाज को जोड़ने के लिए बसपा को जमीन पर काम करना होगा. बसपा ने न तो आज तक ब्राह्मणों को जोड़ने के लिए जमीन पर कुछ काम किया है और न ही किसी अन्य समाज के लिए. पूरे कोरोना काल की बात करें तो सतीश चंद्र मिश्रा हों या बसपा अध्यक्ष मायावती, बाहर तक नहीं निकले हैं. खाली बयान देने और ट्वीट कर देने से कोई समाज किसी के साथ नहीं जुड़ता है.