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लखनऊ: KGMU में दो कोरोना सर्वाइवर्स ने डोनेट किया प्लाज्मा

राजधानी लखनऊ स्थित केजीएमयू में कोरोना मरीजों को ठीक करने के लिए प्लाज्मा डोनेशन की प्रक्रिया अपनाई जा रही है. बीते 24 जून को दो कोरोना सर्वाइवर्स ने प्लाज्मा डोनेट किया. इनमें से एक युवक ने एक माह में दूसरी बार डोनेशन किया.

युवकों ने प्लाज्मा डोनेट किया
दो कोरोना सर्वाइवर्स युवकों ने प्लाज्मा डोनेट किया.
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Published : Jun 25, 2020, 8:53 AM IST

लखनऊ: राजधानी में लगातार कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है. ऐसे में मरीजों को ठीक करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया प्लाज्मा डोनेशन के लिए लोग आगे आ रहे हैं. कोरोना वायरस को मात देकर अपने घरों को लौटे व्यक्ति केजीएमयू में प्लाज्मा डोनेट कर रहे हैं.


किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में 24 जून को कोरोना से ठीक हुए दो युवकों ने प्लाजमा डोनेशन किया. इनमें से एक युवक ने एक महीने के अंदर दूसरी बार प्लाज्मा डोनेट किया है. केजीएमयू में यह 10वां प्लाज्मा डोनेशन है. इस अवसर पर केजीएमयू के कुलपति प्रो. एमएलबी भट्ट ने प्लाज्मा डोनेट करने वाले कोरोना सर्वाइवर के बारे में कहा कि केजीएमयू के भविष्य में इन्हें प्रेरणा स्रोत के रूप में जाना जाएगा.

यह होती है प्रक्रिया
कुलपति ने कहा कि प्लाज्माफरेसिस की प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित और हानि रहित होती है. इस प्रक्रिया में डोनर का ब्लड प्लाज्माफरेसिस मशीन में डाला जाता है और सिर्फ वही रक्त प्रयोग में लाया जाता है, जिसमें कोरोना से लड़ने वाली एंटीबॉडी मौजूद होती है. एक आम इंसान में सामान्य तौर पर 5 से 6 लीटर रक्त होता है. इस प्रक्रिया में सिर्फ 400 से 500 मिलीलीटर प्लाज्मा ही लिया जाता है. साथ ही रक्त का अवशेष भाग प्लाज्माफेरेसिस मशीन से दोबारा डोनर के शरीर में पहुंचा दिया जाता है.

डोनेशन से पहले होती है जांच
प्लाज्मा डोनेशन करने से पहले डोनर की सभी तरह की जांचे होती हैं, जैसे कि एचआईवी, हीमोग्लोबिन, मलेरिया, हेपेटाइटिस बी-सी, सिफलिस और ब्लड काउंट आदि. इन सभी जांचों में पूर्ण रूप से स्वस्थ पाए जाने पर ही व्यक्ति का प्लाज्मा लिया जाता है, ताकि किसी तरह के संक्रमण से बचा जा सके.

प्लाज्मा डोनेशन की जरूरत
ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष डॉ. तूलिका चंद्र ने बताया कि चिकित्सा विश्वविद्यालय को आईसीएमआर के क्लीनिक परीक्षण के तहत नॉमिनेट किया गया है. साथ ही कई कोरोना संक्रमितों पर प्लाज्मा ट्रांसफ्यूजन किया जा चुका है. फिलहाल इस समय प्लाज्मा की कमी है और कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है. ऐसे में प्लाजमा डोनेशन की सख्त आवश्यकता है.

3 जून को हुए डिस्चार्ज
बता दें कि दोनों ही प्लाज्मा डोनर को 24 मई को केजीएमयू में भर्ती किया गया था और 3 जून को स्वस्थ होने के बाद डिस्चार्ज किया गया. इस अवसर पर प्लाज्मा डोनर सैयद कैफ अली ने कहा कि प्लाज्मा दान करने की प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित है. कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके व्यक्तियों को आगे आना चाहिए और प्लाज्मा डोनेट करना चाहिए, ताकि कोविड-19 से जंग लड़ रहे मरीजों के लिए यह वरदान साबित हो सके और वह भी स्वस्थ हो सकें.

लखनऊ: राजधानी में लगातार कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है. ऐसे में मरीजों को ठीक करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया प्लाज्मा डोनेशन के लिए लोग आगे आ रहे हैं. कोरोना वायरस को मात देकर अपने घरों को लौटे व्यक्ति केजीएमयू में प्लाज्मा डोनेट कर रहे हैं.


किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में 24 जून को कोरोना से ठीक हुए दो युवकों ने प्लाजमा डोनेशन किया. इनमें से एक युवक ने एक महीने के अंदर दूसरी बार प्लाज्मा डोनेट किया है. केजीएमयू में यह 10वां प्लाज्मा डोनेशन है. इस अवसर पर केजीएमयू के कुलपति प्रो. एमएलबी भट्ट ने प्लाज्मा डोनेट करने वाले कोरोना सर्वाइवर के बारे में कहा कि केजीएमयू के भविष्य में इन्हें प्रेरणा स्रोत के रूप में जाना जाएगा.

यह होती है प्रक्रिया
कुलपति ने कहा कि प्लाज्माफरेसिस की प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित और हानि रहित होती है. इस प्रक्रिया में डोनर का ब्लड प्लाज्माफरेसिस मशीन में डाला जाता है और सिर्फ वही रक्त प्रयोग में लाया जाता है, जिसमें कोरोना से लड़ने वाली एंटीबॉडी मौजूद होती है. एक आम इंसान में सामान्य तौर पर 5 से 6 लीटर रक्त होता है. इस प्रक्रिया में सिर्फ 400 से 500 मिलीलीटर प्लाज्मा ही लिया जाता है. साथ ही रक्त का अवशेष भाग प्लाज्माफेरेसिस मशीन से दोबारा डोनर के शरीर में पहुंचा दिया जाता है.

डोनेशन से पहले होती है जांच
प्लाज्मा डोनेशन करने से पहले डोनर की सभी तरह की जांचे होती हैं, जैसे कि एचआईवी, हीमोग्लोबिन, मलेरिया, हेपेटाइटिस बी-सी, सिफलिस और ब्लड काउंट आदि. इन सभी जांचों में पूर्ण रूप से स्वस्थ पाए जाने पर ही व्यक्ति का प्लाज्मा लिया जाता है, ताकि किसी तरह के संक्रमण से बचा जा सके.

प्लाज्मा डोनेशन की जरूरत
ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष डॉ. तूलिका चंद्र ने बताया कि चिकित्सा विश्वविद्यालय को आईसीएमआर के क्लीनिक परीक्षण के तहत नॉमिनेट किया गया है. साथ ही कई कोरोना संक्रमितों पर प्लाज्मा ट्रांसफ्यूजन किया जा चुका है. फिलहाल इस समय प्लाज्मा की कमी है और कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है. ऐसे में प्लाजमा डोनेशन की सख्त आवश्यकता है.

3 जून को हुए डिस्चार्ज
बता दें कि दोनों ही प्लाज्मा डोनर को 24 मई को केजीएमयू में भर्ती किया गया था और 3 जून को स्वस्थ होने के बाद डिस्चार्ज किया गया. इस अवसर पर प्लाज्मा डोनर सैयद कैफ अली ने कहा कि प्लाज्मा दान करने की प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित है. कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके व्यक्तियों को आगे आना चाहिए और प्लाज्मा डोनेट करना चाहिए, ताकि कोविड-19 से जंग लड़ रहे मरीजों के लिए यह वरदान साबित हो सके और वह भी स्वस्थ हो सकें.

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