लखनऊ: शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत प्राइवेट और सरकारी स्कूलों में 25 फीसदी सीटों पर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को निशुल्क एडमिशन दिए जाने का प्रावधान है. इसके लिए बकायदा शासन से बजट भी पास किया जाता है. जिले के अवध इंटर कॉलेज की प्रिंसिपल का आरोप है कि शिक्षा विभाग के अफसरों की लापरवाही के कारण बजट का पैसा समय से नहीं बांटा जाता. जब इस मामले में बीएसए दिनेश कुमार से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कुछ भी बोलने से इंकार कर दिया.
दरअसल, शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत कक्षा आठ तक के सभी स्कूलों को सामाजिक रूप से वंचित और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए अपनी सीटों का 25 प्रतिशत आरक्षित करना अनिवार्य है. इसके लिए अभिभावकों को ऑनलाइन आवेदन करना पड़ता है. चयनित अभ्यर्थियों की सूची बीएसए दफ्तर पर चस्पा कर दी जाती है. ऐसे छात्रों के लिए सरकार की ओर से शिक्षण शुल्क 450 रुपये महीना स्कूलों को दिया जाता है, जबकि किताब और ड्रेस का 5000 सालाना अभिभावकों के खाते में जाता है.
लेटलतीफ मिलता है फीस का पैसा
अवध इंटर कॉलेज की प्रिंसिपल अंकिता शुक्ला ने बताया कि इस साल 2020-21 के लिए 39 बच्चों की लिस्ट बीएसए ऑफिस से आई है, जबकि 2019-20 में 17 बच्चों और 2018-19 में 45 बच्चों का एडमिशन स्कूल में हुआ था. उन्होंने बताया कि शासन की ओर से शिक्षण शुल्क 450 रुपये महीना मिलता है और अभिभावकों को 5000 रुपये दिया जाता है, लेकिन शासन की ओर से आने वाला पैसा लेटलतीफ आता है, जिससे काफी दिक्कतें आती हैं.
2 साल से नहीं मिला शिक्षण का बजट
रिटायर्ड प्रिंसिपल और उत्तर प्रदेश प्रधानाचार्य परिषद के संरक्षक डॉ.जेपी मिश्रा ने आरोप लगाया कि बड़े-बड़े स्कूल गरीब बच्चों का एडमिशन नहीं लेते हैं. इसलिए लगभग सभी स्कूलों में सीटें खाली रह जाती हैं. दो वर्ष से शिक्षण शुल्क का बजट नहीं आया है. 31 मार्च 2018 को पूरे जिले के लिए धन आवंटित हुआ था, लेकिन बेसिक शिक्षा अधिकारी और लेखाधिकारी की लापरवाही की वजह से पैसा ट्रेजरी से लैप्स हो गया. उसके बाद दोबारा बजट लाने के लिए लिखा-पढ़ी तो की गई मगर अभी तक पैसा आया नहीं है.
शिक्षा विभाग के अफसरों की लापरवाही
जेपी मिश्रा का कहना है कि सत्र की शुरुआत में बजट न मिल पाने से अभिभावक जैसे-तैसे पैसे जुटाकर बच्चों को ड्रेस और किताबें खरीद कर देते हैं. वहीं स्कूल भी इन बच्चों का शिक्षण शुल्क खुद ही अपनी जेब से जमा करते हैं. बजट मिलने पर किताब और ड्रेस का पैसा बच्चों के बैंक खाते में तो शिक्षण शुल्क का पैसा स्कूल को दिया जाता है, लेकिन जिलों में तैनात शिक्षा विभाग के अफसरों की लापरवाही के चलते बजट अब तक नहीं बंटा है.