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केजीएमयू में अब रेडियो फ्रीक्वेंसी तकनीकी से होगा मरीजों का इलाज

उत्तर प्रदेश के लखनऊ स्थित केजीएमयू में अब रेडियो फ्रीक्वेंसी तकनीकी से मरीजों का इलाज होगा. मरीजों के लिए केजीएमयू के एनस्थीसियोलॉजी विभाग की एक यूनिट ने यह कदम उठाया है.

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Published : Aug 14, 2019, 12:02 PM IST

केजीएमयू में अब रेडियो फ्रिकवेंसी से होगा इलाज.

लखनऊ: कैंसर, गॉल ब्लेडर और कमर दर्द से बेहाल मरीजों के लिए अब एक अच्छी खबर है. अब इन मरीजों को दर्द से निजात पाने के लिए ज्यादा दवाई खाने की आवश्यकता नहीं है. इसके लिए अब केजीएमयू में रेडियो फ्रीक्वेंसी नामक तकनीक से इलाज होगा.

रेडियो फ्रीक्वेंसी तकनीकी के बारे जानकारी देतीं डॉ सरिता सिंह.

रेडियो फ्रीक्वेंसी तकनीकी से होगा इलाज

  • केजीएमयू में रेडियो फ्रीक्वेंसी तकनीकी से इलाज की सुविधा शुरू हो गई है.
  • मरीजों के लिए केजीएमयू के एनस्थीसियोलॉजी विभाग की एक यूनिट ने यह कदम उठाया है.
  • इससे मरीज को आठ माह तक दर्द का एहसास नहीं होगा.
  • इससे आने वाले दिनों में कैंसर, घुटनों में दर्द से मरीजों को निजात मिल जाएगी.
  • इस मशीन से कैंसर के मरीजों को दर्द से राहत मिल पाएगी और छह से आठ महीने तक इस दवा का असर रहेगा.

ये भी पढ़े:- तिरंगे के रंग में सजी राखियों से गुलजार हुआ चौक बाजार

क्या है रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेजर तकनीक
रेडियो फ्रीक्वेंसी मशीन एक तरह से अल्ट्रासाउंड जैसी होती है. इसके जरिए जिस स्थान पर दर्द होता है, उसके लिए जिम्मेदार नस की पहचान की जाएगी. फिर वहां एक खास तरह की निडिल से जाकर दर्द पहुंचाने वाली नस की सेल को जला दिया जाता है. यह 2 घंटे की प्रक्रिया होगी. इसका असर शुरू में नहीं दिखता है. एक बार सूजन आती है, लेकिन तीन दिन बाद कम होने लगती है.

लखनऊ: कैंसर, गॉल ब्लेडर और कमर दर्द से बेहाल मरीजों के लिए अब एक अच्छी खबर है. अब इन मरीजों को दर्द से निजात पाने के लिए ज्यादा दवाई खाने की आवश्यकता नहीं है. इसके लिए अब केजीएमयू में रेडियो फ्रीक्वेंसी नामक तकनीक से इलाज होगा.

रेडियो फ्रीक्वेंसी तकनीकी के बारे जानकारी देतीं डॉ सरिता सिंह.

रेडियो फ्रीक्वेंसी तकनीकी से होगा इलाज

  • केजीएमयू में रेडियो फ्रीक्वेंसी तकनीकी से इलाज की सुविधा शुरू हो गई है.
  • मरीजों के लिए केजीएमयू के एनस्थीसियोलॉजी विभाग की एक यूनिट ने यह कदम उठाया है.
  • इससे मरीज को आठ माह तक दर्द का एहसास नहीं होगा.
  • इससे आने वाले दिनों में कैंसर, घुटनों में दर्द से मरीजों को निजात मिल जाएगी.
  • इस मशीन से कैंसर के मरीजों को दर्द से राहत मिल पाएगी और छह से आठ महीने तक इस दवा का असर रहेगा.

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क्या है रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेजर तकनीक
रेडियो फ्रीक्वेंसी मशीन एक तरह से अल्ट्रासाउंड जैसी होती है. इसके जरिए जिस स्थान पर दर्द होता है, उसके लिए जिम्मेदार नस की पहचान की जाएगी. फिर वहां एक खास तरह की निडिल से जाकर दर्द पहुंचाने वाली नस की सेल को जला दिया जाता है. यह 2 घंटे की प्रक्रिया होगी. इसका असर शुरू में नहीं दिखता है. एक बार सूजन आती है, लेकिन तीन दिन बाद कम होने लगती है.

Intro:
कैंसर, गॉल ब्लेडर और कमर दर्द से बेहाल मरीजों के लिए अब एक अच्छी खबर है। अब इन मरीजों को दर्द से निजात पाने के लिए ज्यादा दवाई खाने की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए अब केजीएमयू में रेडियो फ्रिकवेंसी नामक तकनीक से इलाज होगा। जिससे मरीज को किसी भी तरह की कोई दर्द की संभावना कम हो जाएगी।




Body:केजीएमयू में आने वाले दिनों में शताब्दी फेस वन में इंस्टॉल की गई मशीन से कैंसर के मरीजों को दर्द से राहत मिल पाएगी और 6 से 8 महीने तक इस दवा का असर रहेगा। यह बिना किसी टांके के मरीज को अंदर से निजात मिल जाया करेगी। इसमें सबसे ज्यादा राहत कैंसर के मरीजों को मिलेगी। इन मरीजों को दर्द से निजात पाने के लिए बहुत अधिक दवाई खाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। केजीएमयू विभाग की यूनिट में रेडियो फ्रिकवेंसी तकनीकी मशीन लगाई गई है। मरीजों को बिना ऑपरेशन के दर्द से राहत मिल जाएगी।

मरीजों के लिए केजीएमयू के एनएसथीसियोलॉजी विभाग की एक यूनिट ने यह कदम उठाया है यूनिट में रेडियो फ्रिकवेंसी तकनीकी से इलाज की सुविधा शुरू हो गई है। इससे मरीज को 8 माह तक दर्द का एहसास ही नहीं होगा। मरीजों की जांच परीक्षण के बाद रेडियो फ्रिकवेंसी अब लेजर तकनीक से इलाज का फैसला होगा। एक्सरे अल्ट्रासाउंड से दर्द के लिए जिम्मेदार नस की पहचान की जाएगी। उसके बाद खास तरह के निडिल दर्द वाले हिस्से में प्रवेश कराई जाएगी। रेडियो फ्रिकवेंसी की जाएगी। 1 से 10 घंटे की प्रक्रिया के बाद मरीज को घर भेज दिया जाएगा। इससे आने वाले दिनों में कैंसर, घुटनों में दर्द आदि बताने वाले मरीजों को इस दर्द से निजात मिल पाएगी।

रेडियो फ्रिकवेंसी एब्लेजर तकनीक क्या है?

रेडियो फ्रिकवेंसी मशीन एक तरह से अल्ट्रासाउंड जैसी होती है। इसके जरिए जिस स्थान पर दर्द होता है। उसके लिए जिम्मेदार नस की पहचान की जाएगी। फिर वहां एक खास तरह की निडिल से जाकर दर्द पहुंचाने वाली नस किस सेल को जला देती है यह 2 घंटे की प्रक्रिया होगी। इसका असर शुरू में नहीं दिखता। एक बार सूजन आती है। लेकिन 3 दिन बाद कम होने लगती है। 15 दिन बाद मरीज को आराम मिलने लगता है। एक बार के प्रोसीजर से 6 से 8 महीने तक आराम रहता है। इसमें करीब 70 से 80% तक मरीजों को दर्द से राहत मिल जाती है।

बाइट- डॉ. सरिता सिंह, एनएसथीसियोलॉजी विभाग




Conclusion:
एन्ड पीटीसी
शुभम पाण्डेय
7054605976
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