लखनऊ : 10 फरवरी को पहले चरण के लिए होने वाले मतदान के लिए इस बार बड़े-बड़े दिग्गज नेता भी जनता की देहरी पर दस्तक देने को मजबूर हो गए हैं. शुक्रवार को बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जनसंपर्क अभियान चलाया. दूसरी ओर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने अपने प्रत्याशियों के साथ साझा पत्रकार वार्ता कर पार्टी के एजेंडे को जनता के सामने रखा. इन गतिविधियों से इतर भाजपा और सपा में कुछ सीटों को लेकर लगातार मंथन चल रहा है, किंतु कोई नतीजा नहीं निकल पा रहा है.
कोरोना संकट के कारण जहां सभी क्षेत्र प्रभावित हुए हैं, वहीं राजनीति भी इससे अछूती नहीं रही है. कोरोना के कारण तमाम बंदिशें लगी हैं और इसी कारण बड़े-बड़े दिग्गज राजनीतिज्ञ जनता की चौखट पर वोट के लिए मिन्नतें कर रहे हैं. आज पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृहमंत्री अमित शाह, प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद और दिनेश शर्मा आदि ने पार्टी के पक्ष में प्रचार किया और वोट मांगे.
बीजेपी सुशासन और विकास के मुद्दों के साथ ही हिंदुत्व का एजेंडा भी याद दिलाती है. दूसरी ओर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और राष्ट्रीय लोक दल के प्रमुख जयंत चौधरी ने पार्टी प्रत्याशियों के साथ पत्रकारों से बात की और अपना एजेंडा लोगों के सामने रखा. अखिलेश ने 2012 से 2017 के बीच अपनी सरकार में किए गए विकास कार्यों की याद दिलाई और गठबंधन की सरकार बनने पर सभी वादों को पूरा करने का भरोसा दिलाया. हालांकि दल कोई भी हो चुनावी बेला की सत्ता में आने के लिए कोई भी वादा करने के लिए तैयार है. यह बात और है कि सरकार आने पर किसे कितने वादे याद रहेंगे.
भाजपा और सपा दोनों ही पार्टियों में कुछ सीटों को लेकर लगातार मंथन तो चल रहा है, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकल पाया है. इन्हीं सीटों में राजधानी लखनऊ की सीटें भी शामिल हैं. कुछ मौजूदा विधायक अपनी सीट बदलना चाहते हैं, तो दूसरी सीटों पर कई-कई दावेदार मैदान में हैं. ऐसे में पार्टियों को कार्यकर्ताओं की नाराजगी का डर सताने लगा है. यही कारण है कि सभी दल फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहते हैं. इस बीत कुछ सीटों पर प्रत्याशियों के फैसले के बाद बगावत की खबरें भी सामने आने लगी हैं. चूंकि समाजवादी पार्टी में सबसे ज्यादा बाहरी शामिल हुए हैं और उनमें कई लोग टिकट पाने में भी कामयाब हो गए हैं.
ऐसे में सबसे ज्यादा बगावत इसी पार्टी में देखने को मिल रही है. मुरादाबाद में दो बागी नेताओं ने अपना पर्चा दाखिल कर दिया है. वहीं सीतापुर की एक सुरक्षित सीट पर अपने पूर्व विधायक के बजाय बसपा से सपा में शामिल हुए नेता को टिकट देने का भारी विरोध है. यह तो महज उदाहरण हैं. सपा को जिले-जिले में कुछ सीटों पर ऐसे ही विरोध का सामना करना पड़ सकता है. स्वाभाविक है कि जो नेता पांच साल से चुनाव की तैयारी कर रहे हैं, उनकी जगह दूसरे को टिकट मिलेगा, तो असंतोष तो उपजेगा ही. अब देखना होगा कि सपा इस असंतोष से कैसे निपटती है.
इस चुनाव में कोविड नियमों के कारण कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी का प्रचार अभियान फीका पड़ा है. भाजपा पर आरोप लगते रहे हैं कि उन्हें आयोग की बंदिशों का पहले से अंदाजा था और उन्होंने इससे निपटने के लिए पहले से ही तैयारी कर रखी थी. वहीं इन दलों की कोई खास तैयारी न होने के कारण चुनाव मैदान में इन दोनों दलों की उपस्थिति बहुत कम दिखाई दे रही है. हालांकि पार्टी के कुछ नेता जनसंपर्क और पत्रकार सम्मेलन जरूर कर रहे हैं, लेकिन भाजपा के आगे सभी की रणनीति फीकी दिखाई दे रही है.
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