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सुशासन और हिंदुत्व का एजेंडा क्या भाजपा की वापसी करा पाएगा ?

यूपी विधानसभा चुनाव के पहले चरण की तारीख के चंद दिन शेष बचे हैं. ऐसे माहौल में प्रदेश की राजनीति का तापमान बढ़ा हुआ है. एक तरफ सत्ताधारी पार्टी बीजेपी केंन्द्र से लेकर प्रदेश तक अपनी चुनावी बिसात बिछा रही है, वहीं दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियां हर छोटे-बड़े मुद्दे को तूल देकर मतदाताओं को रिझाने की कोशिश कर रहीं हैं. 2022 के इस चुनावी रण में क्या बीजेपी शुशासन और हिंदुत्व के बल पर अपनी साख बचा पाएगी, रिपोर्ट पढ़िए...

यूपी का चुनावी घटनाक्रम
यूपी का चुनावी घटनाक्रम
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Published : Jan 27, 2022, 9:56 PM IST

लखनऊ : प्रदेश में पहले चरण के मतदान की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ जा रही है, उसी गति से चुनावी ताप भी बढ़ता जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह आज पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दौरे पर थे. उन्होंने मथुरा में भगवान के दर्शन कर अपने जनसंपर्क अभियान का शुभारंभ किया. दूसरी ओर सपा और बसपा में अपनी पार्टी की एक-एक और सूची जारी कर दी. इन सूचियों में क्या खास है? गृहमंत्री के इस दौरे के क्या मायने हैं, आइए विस्तार से जानते हैं.

गृहमंत्री अमित शाह ने गुरुवार को मथुरा से जनसंपर्क अभियान का आगाज किया. अपना जनसंपर्क अभियान आरंभ करने से पहले उन्होंने भगवान के दर्शन किए. अमित शाह ने चुनावी अभियान शुरू करने के साथ ही यह संदेश भी दिया कि बीजेपी अपने हिंदुत्व के एजेंडे पर कायम है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस संदेश के खास मायने हैं. समाजवादी पार्टी की सरकार में 2012 से 2017 के बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में दंगे और हिंसक वारदातें हुई थीं. यही नहीं कैराना से हिंदुओं के पलायन की घटना राष्ट्रीय स्तर पर खबर बनी थी. प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद भाजपा ने यह संदेश देने की कोशिश की थी कि कुछ भी हो अब हिंदुओं के साथ ज्यादती नहीं होने दी जाएगी.

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योगी आदित्यनाथ अपनी सभाओं में इस विषय को जोर-शोर से उठाते भी रहे हैं. स्वाभाविक है कि पांच साल हिंदुत्व के एजेंडे पर चलने वाली सरकार इस मुद्दे को वोट में बदलना चाहते है. भाजपा लोगों को याद दिलाना चाहती है कि वह गुंडों और माफियाओं के खिलाफ सख्ती से कदम उठाते हैं, जबकि अन्य सरकारों में गुंडागर्दी बढ़ जाती है.

अमित शाह ने प्रबुद्धजनों से बातचीत में इस बात को रखा. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को लगता है कि किसान आंदोलन की वजह से पश्चिम का जो वोटर या किसान पार्टी से नाराज है, वह हिंदुत्व के मामले पर एक हो सकता है. अमित शाह ने एक दिन पहले भी जाटों को लेकर अपनी बात रखी थी और कहा था कि वह कोई नाराजगी नहीं रखना चाहते हैं.

एक बात और भाजपा को लगता है कि यदि पहले चरण से हिंदुत्व का एजेंडा चला और भाजपा के पक्ष में समां बंध गया तो आगे के छह चरणों में संघर्ष आसान हो जाएगा. अब यह देखना होगा कि सुशासन और हिंदुत्व का एजेंडा क्या भाजपा की सरकार में वापसी करा पाएगा. आज सपा और बसपा ने अपनी एक-एक सूची और जारी कर दी. खास बात यह है कि सपा की इस सूची से दो बाहुबलियों का चुनावी मैदान में प्रवेश हो गया है.

अभय सिंह और रमाकांत यादव को समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है. भाजपा अक्सर सपा को माफियाओं और गुंडों की पार्टी कह कर घेरने की कोशिश करती है. कयास लगाए जा रहे थे कि शायद इस बार सीधे तौर पर कोई बड़ी पार्टी अपराधी छवि वाले नेता को टिकट नहीं देगी. आज सपा के टिकटों की घोषणा के बाद यह धारणा टूट गई. शायद समाजवादी पार्टी का संकोच भी टूट गया.

दरअसल कोई भी पार्टी माफियाओं को टिकट यूं ही नहीं देती. ज्यादातर माफिया अपनी सीट पर जिताऊ उम्मीदवार होते हैं. ऐसे में पार्टी को लगता है कि क्यों न एक जिताऊ प्रत्याशी को ही मैदान में उतारा जाए. आखिर सरकार बनाने के लिए जिताऊ उम्मीदवारों की ही तो जरूरत होती है. दूसरी ओर बसपा ने अपनी सूची में अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के खिलाफ प्रत्याशी मैदान में उतार दिया.

इससे विपक्ष का बिखराव साफ दिखता है. वहीं इस सूची में 17 दलितों को स्थान देकर मायावती ने साफ कर दिया है कि वह दलित-मुस्लिम प्रत्याशियों को महत्व देती रहेंगी और अपना आधार वोट सहेजने के लिए हर संभव कोशिश करती रहेंगी.

इसे पढ़ें- UP Election 2022: बसपा ने 53 उम्मीदवारों की एक और सूची जारी की

लखनऊ : प्रदेश में पहले चरण के मतदान की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ जा रही है, उसी गति से चुनावी ताप भी बढ़ता जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह आज पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दौरे पर थे. उन्होंने मथुरा में भगवान के दर्शन कर अपने जनसंपर्क अभियान का शुभारंभ किया. दूसरी ओर सपा और बसपा में अपनी पार्टी की एक-एक और सूची जारी कर दी. इन सूचियों में क्या खास है? गृहमंत्री के इस दौरे के क्या मायने हैं, आइए विस्तार से जानते हैं.

गृहमंत्री अमित शाह ने गुरुवार को मथुरा से जनसंपर्क अभियान का आगाज किया. अपना जनसंपर्क अभियान आरंभ करने से पहले उन्होंने भगवान के दर्शन किए. अमित शाह ने चुनावी अभियान शुरू करने के साथ ही यह संदेश भी दिया कि बीजेपी अपने हिंदुत्व के एजेंडे पर कायम है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इस संदेश के खास मायने हैं. समाजवादी पार्टी की सरकार में 2012 से 2017 के बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में दंगे और हिंसक वारदातें हुई थीं. यही नहीं कैराना से हिंदुओं के पलायन की घटना राष्ट्रीय स्तर पर खबर बनी थी. प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद भाजपा ने यह संदेश देने की कोशिश की थी कि कुछ भी हो अब हिंदुओं के साथ ज्यादती नहीं होने दी जाएगी.

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योगी आदित्यनाथ अपनी सभाओं में इस विषय को जोर-शोर से उठाते भी रहे हैं. स्वाभाविक है कि पांच साल हिंदुत्व के एजेंडे पर चलने वाली सरकार इस मुद्दे को वोट में बदलना चाहते है. भाजपा लोगों को याद दिलाना चाहती है कि वह गुंडों और माफियाओं के खिलाफ सख्ती से कदम उठाते हैं, जबकि अन्य सरकारों में गुंडागर्दी बढ़ जाती है.

अमित शाह ने प्रबुद्धजनों से बातचीत में इस बात को रखा. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को लगता है कि किसान आंदोलन की वजह से पश्चिम का जो वोटर या किसान पार्टी से नाराज है, वह हिंदुत्व के मामले पर एक हो सकता है. अमित शाह ने एक दिन पहले भी जाटों को लेकर अपनी बात रखी थी और कहा था कि वह कोई नाराजगी नहीं रखना चाहते हैं.

एक बात और भाजपा को लगता है कि यदि पहले चरण से हिंदुत्व का एजेंडा चला और भाजपा के पक्ष में समां बंध गया तो आगे के छह चरणों में संघर्ष आसान हो जाएगा. अब यह देखना होगा कि सुशासन और हिंदुत्व का एजेंडा क्या भाजपा की सरकार में वापसी करा पाएगा. आज सपा और बसपा ने अपनी एक-एक सूची और जारी कर दी. खास बात यह है कि सपा की इस सूची से दो बाहुबलियों का चुनावी मैदान में प्रवेश हो गया है.

अभय सिंह और रमाकांत यादव को समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है. भाजपा अक्सर सपा को माफियाओं और गुंडों की पार्टी कह कर घेरने की कोशिश करती है. कयास लगाए जा रहे थे कि शायद इस बार सीधे तौर पर कोई बड़ी पार्टी अपराधी छवि वाले नेता को टिकट नहीं देगी. आज सपा के टिकटों की घोषणा के बाद यह धारणा टूट गई. शायद समाजवादी पार्टी का संकोच भी टूट गया.

दरअसल कोई भी पार्टी माफियाओं को टिकट यूं ही नहीं देती. ज्यादातर माफिया अपनी सीट पर जिताऊ उम्मीदवार होते हैं. ऐसे में पार्टी को लगता है कि क्यों न एक जिताऊ प्रत्याशी को ही मैदान में उतारा जाए. आखिर सरकार बनाने के लिए जिताऊ उम्मीदवारों की ही तो जरूरत होती है. दूसरी ओर बसपा ने अपनी सूची में अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के खिलाफ प्रत्याशी मैदान में उतार दिया.

इससे विपक्ष का बिखराव साफ दिखता है. वहीं इस सूची में 17 दलितों को स्थान देकर मायावती ने साफ कर दिया है कि वह दलित-मुस्लिम प्रत्याशियों को महत्व देती रहेंगी और अपना आधार वोट सहेजने के लिए हर संभव कोशिश करती रहेंगी.

इसे पढ़ें- UP Election 2022: बसपा ने 53 उम्मीदवारों की एक और सूची जारी की

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