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खुले आसमान के नीचे रात बिताने को मजबूर तीमारदार, रैन बसेरे में नहीं मिल रही जगह

सर्दियों के मौसम में रैन बसेरा की आवश्यकता तीमारदारों को अधिक पड़ती है प्रदेश के अन्य जिलों से तीमारदार मरीज के इलाज के लिए राजधानी के अस्पतालों में आते हैं. ऐसे में अस्पतालों में रैन बसेरे का होना अनिवार्य है, ताकि तीमारदार वहां अपनी रात बिता सकें. केजीएमयू ट्रामा सेंटर के बाहर रैन बसेरा में जगह खाली नहीं होने के कारण बहुत सारे तीमारदार रैन बसेरे के बाहर चादर बिछाकर खुले आसमान के नीचे सोने पर मजबूर हैं.

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Published : Dec 12, 2022, 10:19 PM IST

Updated : Dec 12, 2022, 10:54 PM IST

लखनऊ : सर्दियों के मौसम में रैन बसेरा की आवश्यकता तीमारदारों को अधिक पड़ती है प्रदेश के अन्य जिलों से तीमारदार मरीज के इलाज के लिए राजधानी के अस्पतालों में आते हैं. ऐसे में अस्पतालों में रैन बसेरे का होना अनिवार्य है, ताकि तीमारदार वहां अपनी रात बिता सकें. केजीएमयू ट्रामा सेंटर के बाहर रैन बसेरे में जगह खाली नहीं होने के कारण बहुत सारे तीमारदार रैन बसेरा के बाहर चादर बिछाकर खुले आसमान के नीचे सोने पर मजबूर हैं. किसी तरह वह इस कड़ी सर्दी से बच रहे हैं.

जानकारी देतीं संवाददाता अपर्णा शुक्ला.

केजीएमयू ट्रामा सेंटर (KGMU Trauma Center) के बाहर बने रैन बसेरा को एक निजी संस्था संचालित कर रही है. रैन बसेरा में कुल 105 बैठे हैं, लेकिन मरीजों की संख्या ट्रामा सेंटर में अधिक होने की वजह से तीमारदारों की भी संख्या बढ़ जाती है. इस समय सभी बेड फुल हैं. रैन बसेरा में बेड खाली नहीं होने के कारण रेन बसेरा के बाहर दूर दराज से मरीज का इलाज कराने आए तीमारदार खुले आसमान के नीचे किसी तरह रात बिताने को मजबूर हैं. इस रैन बसेरा में बहुत सारे लोग बस 15 दिन से अधिक समय से रह रहे हैं. एक-दो दिन खुले आसमान में रात बिताने के बाद जैसे ही कोई बेड खाली होता है वैसे ही दूसरे तीमारदार को बेड़ मिलता है.

शताब्दी अस्पताल (Shatabdi Hospital) में बने रैन बसेरा का शुल्क निर्धारित किया गया है. यहां पर रहने वालों की संख्या कम है. क्योंकि यहां पर शुल्क जमा करना होता है. हर मरीज के तीमारदार यह शुल्क देने के लिए सक्षम नहीं होते हैं. इसलिए यहां रुकने के लिए कम आते हैं. एक बेड के हिसाब से 24 घंटे के लिए 50 रुपये शुल्क तीमारदार को जमा करना होता है. एक बड़ी से हॉल में करीब 10 बेड लगाए गए हैं. वहीं कोई तीमारदार सिंगल रूम चाहता है तो उसके लिए उसे 300 रुपये शुल्क 24 घंटे के लिए जमा करना होगा. वहीं जो तीमारदार शताब्दी अस्पताल के रैन बसेरे में रह रहे हैं वह अस्पताल के बाहर छोटे गैस सिलिंडर पर खाना बनाते हैं. बातचीत के दौरान एक महिला तीमारदार तीमारदार ने बताया कि अंदर खाना बनाने की अनुमति नहीं है इस वजह से बाहर खाना बना रहे हैं.

गांधी वार्ड (Gandhi Ward) के बाहर बने रैन बसेरा में तीन तल के थ्री सीटर बेड लगे हुए हैं. इस समय सभी बेड फुल हैं. वहीं बहुत सारे ऐसे तीमारदार हैं जो सोमवार को अस्पताल की ओपीडी में खुद को नहीं दिखा पाए तो वह मंगलवार को दिखाएंगे इसके लिए उन्हें एक रात अस्पताल नहीं बताना पड़ रहा है. गांधी वार्ड (Gandhi Ward) के बाहर खुले आसमान में चादर बिछाकर परिवार के संग बैठे एक तीमारदार ने बताया कि रैन बसेरे में बेड खाली नहीं है. इसलिए मजबूरी में बाहर रात बिताना पड़ रहा है. तीन दिन से वह केजीएमयू परिसर में ही हैं.

इन तीनों जगह पर बने रैन बसेरा में से केजीएमयू ट्रामा सेंटर और गांधी वार्ड के बाहर बने रैन बसेरा निशुल्क है. जिसकी वजह से ज्यादातर लोग यहीं पर रात बिताने के लिए जाते हैं. वहीं शताब्दी अस्पताल में शुल्क जमा करना होता है बहुत सारे गरीब वर्ग के लोग यह शुल्क जमा नहीं कर सकते हैं. यही कारण है कि शताब्दी के रैन बसेरा में जगह खाली है. केजीएमयू ट्रामा सेंटर (KGMU Trauma Center) के बाहर और गांधी वार्ड के बाहर बने रैन बसेरे के बेड फुल हैं. इन दोनों रैन बसेरे में बेड की कमी के चलते रैन बसेरे के बाहर खुले आसमान के नीचे तीमारदार चादर बिछा कर किसी तरह से सर्दी की रात काटने पर मजबूर हैं.

यह भी पढ़ें : छात्रवृत्ति के लिए अब 26 दिसंबर तक अंतिम अवसर, 19 तक मास्टर डाटा अपडेशन कर सकेंगे संस्थान

लखनऊ : सर्दियों के मौसम में रैन बसेरा की आवश्यकता तीमारदारों को अधिक पड़ती है प्रदेश के अन्य जिलों से तीमारदार मरीज के इलाज के लिए राजधानी के अस्पतालों में आते हैं. ऐसे में अस्पतालों में रैन बसेरे का होना अनिवार्य है, ताकि तीमारदार वहां अपनी रात बिता सकें. केजीएमयू ट्रामा सेंटर के बाहर रैन बसेरे में जगह खाली नहीं होने के कारण बहुत सारे तीमारदार रैन बसेरा के बाहर चादर बिछाकर खुले आसमान के नीचे सोने पर मजबूर हैं. किसी तरह वह इस कड़ी सर्दी से बच रहे हैं.

जानकारी देतीं संवाददाता अपर्णा शुक्ला.

केजीएमयू ट्रामा सेंटर (KGMU Trauma Center) के बाहर बने रैन बसेरा को एक निजी संस्था संचालित कर रही है. रैन बसेरा में कुल 105 बैठे हैं, लेकिन मरीजों की संख्या ट्रामा सेंटर में अधिक होने की वजह से तीमारदारों की भी संख्या बढ़ जाती है. इस समय सभी बेड फुल हैं. रैन बसेरा में बेड खाली नहीं होने के कारण रेन बसेरा के बाहर दूर दराज से मरीज का इलाज कराने आए तीमारदार खुले आसमान के नीचे किसी तरह रात बिताने को मजबूर हैं. इस रैन बसेरा में बहुत सारे लोग बस 15 दिन से अधिक समय से रह रहे हैं. एक-दो दिन खुले आसमान में रात बिताने के बाद जैसे ही कोई बेड खाली होता है वैसे ही दूसरे तीमारदार को बेड़ मिलता है.

शताब्दी अस्पताल (Shatabdi Hospital) में बने रैन बसेरा का शुल्क निर्धारित किया गया है. यहां पर रहने वालों की संख्या कम है. क्योंकि यहां पर शुल्क जमा करना होता है. हर मरीज के तीमारदार यह शुल्क देने के लिए सक्षम नहीं होते हैं. इसलिए यहां रुकने के लिए कम आते हैं. एक बेड के हिसाब से 24 घंटे के लिए 50 रुपये शुल्क तीमारदार को जमा करना होता है. एक बड़ी से हॉल में करीब 10 बेड लगाए गए हैं. वहीं कोई तीमारदार सिंगल रूम चाहता है तो उसके लिए उसे 300 रुपये शुल्क 24 घंटे के लिए जमा करना होगा. वहीं जो तीमारदार शताब्दी अस्पताल के रैन बसेरे में रह रहे हैं वह अस्पताल के बाहर छोटे गैस सिलिंडर पर खाना बनाते हैं. बातचीत के दौरान एक महिला तीमारदार तीमारदार ने बताया कि अंदर खाना बनाने की अनुमति नहीं है इस वजह से बाहर खाना बना रहे हैं.

गांधी वार्ड (Gandhi Ward) के बाहर बने रैन बसेरा में तीन तल के थ्री सीटर बेड लगे हुए हैं. इस समय सभी बेड फुल हैं. वहीं बहुत सारे ऐसे तीमारदार हैं जो सोमवार को अस्पताल की ओपीडी में खुद को नहीं दिखा पाए तो वह मंगलवार को दिखाएंगे इसके लिए उन्हें एक रात अस्पताल नहीं बताना पड़ रहा है. गांधी वार्ड (Gandhi Ward) के बाहर खुले आसमान में चादर बिछाकर परिवार के संग बैठे एक तीमारदार ने बताया कि रैन बसेरे में बेड खाली नहीं है. इसलिए मजबूरी में बाहर रात बिताना पड़ रहा है. तीन दिन से वह केजीएमयू परिसर में ही हैं.

इन तीनों जगह पर बने रैन बसेरा में से केजीएमयू ट्रामा सेंटर और गांधी वार्ड के बाहर बने रैन बसेरा निशुल्क है. जिसकी वजह से ज्यादातर लोग यहीं पर रात बिताने के लिए जाते हैं. वहीं शताब्दी अस्पताल में शुल्क जमा करना होता है बहुत सारे गरीब वर्ग के लोग यह शुल्क जमा नहीं कर सकते हैं. यही कारण है कि शताब्दी के रैन बसेरा में जगह खाली है. केजीएमयू ट्रामा सेंटर (KGMU Trauma Center) के बाहर और गांधी वार्ड के बाहर बने रैन बसेरे के बेड फुल हैं. इन दोनों रैन बसेरे में बेड की कमी के चलते रैन बसेरे के बाहर खुले आसमान के नीचे तीमारदार चादर बिछा कर किसी तरह से सर्दी की रात काटने पर मजबूर हैं.

यह भी पढ़ें : छात्रवृत्ति के लिए अब 26 दिसंबर तक अंतिम अवसर, 19 तक मास्टर डाटा अपडेशन कर सकेंगे संस्थान

Last Updated : Dec 12, 2022, 10:54 PM IST
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