लखनऊः बारिश ने इस बार खरीफ की फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया है. अब इस नुकसान की भरपाई किसान मसाला वर्गीय फसलों की खेती के माध्यम से पूरा कर सकता है. मसाला वर्गीय खेती को लेकर कृषि विशेषज्ञ ने राय दी कि किसान किन-किन खेती के माध्यम से अपनी आय को बढ़ा सकता है.
आपको बता दें कि निरंतर किसान परंपरागत खेती करते हैं. जिसमें धान, गेहूं उगाते हैं. जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति भी कम हो रही है. क्योंकि इन फसलों को उगाने के लिए अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता होती है. मसाला वर्गीय फसलों के लिए अच्छी जीवाश्म वाली दोमट मिट्टी और बलुई दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6.5 से 7.5 तक होता है. प्रमुख रूप से मसालों की खेती की हमारे उत्तर प्रदेश में अच्छी संभावनाएं हैं, जिसमें धनिया, मेथी, कलौंजी, शौंफ और अजवाइन की खेती हमारे किसान करके अधिक लाभ कमा सकते हैं. प्रमुख रूप से इन सभी फसलों की बुवाई अक्टूबर के आखिरी सप्ताह तक संपन्न कर लेनी चाहिए.
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इसी को लेकर ईटीवी से बातचीत के दौरान चंद्र भानु गुप्ता कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि धनिया की पंत हरीतिमा, आजाद धनिया 1, सुगुना और मेथी की अजमेर मेथी 5, कस्तूरी मेथी, पूसा अर्ली बंचिंग और अजवाइन की लाभ सिलेक्शन एक, सिलेक्शन दो, गुजरात अजवाइन 1 प्रजाति की बुवाई करनी चाहिए. कलौंजी की आजाद कलौंजी, पंत कृष्णा, एनएस 32 अच्छी किस्में हैं. ये कार्बनिक पदार्थ से युक्त बलुई दोमट मिट्टी में अधिक उत्पादन देती हैं. प्रमुख रूप से उष्णकटिबंधीय जलवायु इन के लिए उपयुक्त होती है. सौंफ के लिए सबसे उपयुक्त प्रजाति गुजरात एक, गुजरात 11, अजमेर सौंफ 1, अजमेर सौंफ 2, बहुत अच्छी मानी जाती है. जहां पर उत्पादन की बात की जाए, वहां पर एक हेक्टेयर में 18 से 20 कुंतल प्रति हेक्टेयर धनियां 15 से 20 कुंतल प्रति हेक्टेयर 10 से 12 कुंतल प्रति हेक्टेयर मेंथी 10 कुंतल प्रति हेक्टेयर कलौंजी और 10 से 12 कुंतल प्रति हेक्टेयर अजवाइन का अजवाइन प्रति हेक्टेयर हो जाता है. मसाला की खेती के लिए इस वर्ष अच्छी वर्षा हुई है. डॉक्टर सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि इन फसलों में कीट एवं बीमारियों का प्रकोप जब समय से फसल की बुवाई की जाती है तो कम लगते हैं.