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लखनऊ: धरोहरों को सहेजने का लेना होगा संकल्प, तभी जीवित रहेगी उनकी ऐतिहासिकता

राजधानी में कई ऐतिहासिक और आधुनिक धरोहर है जो शहर को खास पहचान देते हैं. वहीं लोगों की लापरवाही और जागरूकता का अभाव इन इमारतों की भव्यता को नष्ट कर रहे हैं.

धरोहरों को सहेजने का लेना होगा संकल्प
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Published : Apr 19, 2019, 1:56 PM IST

लखनऊ: धरोहर किसी भी जगह की खास पहचान होती है कई बार तो धरोहरों से ही किसी जगह के पहचान बनती है. ऐसे में उस जगह के बाशिंदों का भी पूरा फर्ज बनता है कि अपनी धरोहरों को सहेजने का काम पूरी शिद्दत से करें. इस दिशा में हर साल 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है ताकि लोगों को इसकी अहमियत से अवगत कराया जा सके.

जानिए राजधानी की धरोहरों के बारे में

  • राजधानी लखनऊ में भी कई ऐसे ऐतिहासिक और आधुनिक धरोहर हैं जो इस शहर कोई खास पहचान देते हैं.
  • इमामबाड़ा, रूमी दरवाजा, हुसैनाबाद दरवाजा, क्लॉक टावर, सतखंडा रेजिडेंसी से लेकर विधानसभा की भव्य इमारत और गोमती रिवर फ्रंट जैसे आधुनिक जगहों का नाम लिया जा सकता है
  • इन सभी इमारतों की भव्यता देश विदेश के लोग वह की जुबा पर रहता है लेकिन फिर भी लापरवाही और लोगों में जागरूकता का अभाव इन इमारतों की भव्यता को नष्ट करता जा रहा है.
    राजधानी में है कई ऐतिहासिक और आधुनिक धरोहर

नवाबों की नगरी में मुगल काल से लेकर अब तक कई ऐसी भव्य इमारतें हैं जो लखनऊ की पहचान बनी है लेकिन सरकार और पर्यटन विभाग की अनदेखी और यहां के लोगों द्वारा गंदगी फैलाने और अश्लील संदेश लिखकर उन्हें बदरंग बनाया जा रहा है. धरोहरों के रखरखाव के प्रति पर्यटन विभाग को न केवल प्रयास करने चाहिए बल्कि साथ ही साथ लोगों में भी जागरूकता फैलानी चाहिए कि वह अपने आसपास के ऐतिहासिक धरोहरों को किसी तरह के नुकसान न पहुंचाएं.

रवि भट्ट, इतिहासकार

लखनऊ: धरोहर किसी भी जगह की खास पहचान होती है कई बार तो धरोहरों से ही किसी जगह के पहचान बनती है. ऐसे में उस जगह के बाशिंदों का भी पूरा फर्ज बनता है कि अपनी धरोहरों को सहेजने का काम पूरी शिद्दत से करें. इस दिशा में हर साल 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है ताकि लोगों को इसकी अहमियत से अवगत कराया जा सके.

जानिए राजधानी की धरोहरों के बारे में

  • राजधानी लखनऊ में भी कई ऐसे ऐतिहासिक और आधुनिक धरोहर हैं जो इस शहर कोई खास पहचान देते हैं.
  • इमामबाड़ा, रूमी दरवाजा, हुसैनाबाद दरवाजा, क्लॉक टावर, सतखंडा रेजिडेंसी से लेकर विधानसभा की भव्य इमारत और गोमती रिवर फ्रंट जैसे आधुनिक जगहों का नाम लिया जा सकता है
  • इन सभी इमारतों की भव्यता देश विदेश के लोग वह की जुबा पर रहता है लेकिन फिर भी लापरवाही और लोगों में जागरूकता का अभाव इन इमारतों की भव्यता को नष्ट करता जा रहा है.
    राजधानी में है कई ऐतिहासिक और आधुनिक धरोहर

नवाबों की नगरी में मुगल काल से लेकर अब तक कई ऐसी भव्य इमारतें हैं जो लखनऊ की पहचान बनी है लेकिन सरकार और पर्यटन विभाग की अनदेखी और यहां के लोगों द्वारा गंदगी फैलाने और अश्लील संदेश लिखकर उन्हें बदरंग बनाया जा रहा है. धरोहरों के रखरखाव के प्रति पर्यटन विभाग को न केवल प्रयास करने चाहिए बल्कि साथ ही साथ लोगों में भी जागरूकता फैलानी चाहिए कि वह अपने आसपास के ऐतिहासिक धरोहरों को किसी तरह के नुकसान न पहुंचाएं.

रवि भट्ट, इतिहासकार

Intro:लखनऊ। धरोहर किसी भी जगह की खास पहचान होती है कई बार तो धरोहरों से ही किसी जगह के पहचान बनती है। ऐसे में उसे जगह के बाशिंदों का भी पूरा फर्ज बनता है कि अपनी धरोहरों को सहेजने का काम पूरी शिद्दत से करें। इस दिशा में हर साल 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है ताकि लोगों को इसकी अहमियत से अवगत कराया जा सके।


Body:वीओ
राजधानी लखनऊ में भी कई ऐसे ऐतिहासिक और आधुनिक धरोहर हैं जो इस शहर कोई खास पहचान देते हैं। इमामबाड़ा, रूमी दरवाजा, हुसैनाबाद दरवाजा, क्लॉक टावर, सतखंडा रेजिडेंसी से लेकर विधानसभा की भव्य इमारत और गोमती रिवर फ्रंट जैसे आधुनिक जगहों का नाम लिया जा सकता है इन सभी इमारतों की भव्यता देश विदेश के लोग वह की जुबा पर रहता है लेकिन फिर भी लापरवाही और लोगों में जागरूकता का अभाव इन इमारतों की भव्यता को नष्ट करता जा रहा है। इस बाबत इतिहासकार रवि भट्ट कहते हैं नवाबों की नगरी में मुगल काल से लेकर अब तक कई ऐसी भव्य इमारते हैं जो लखनऊ की पहचान बनी है लेकिन सरकार और पर्यटन विभाग की अनदेखी और यहां के लोगों द्वारा गंदगी फैलाने और अश्लील संदेश लिखकर उन्हें बदरंग बनाया जा रहा है।
भट्ट कहते हैं कि धरोहरों के रखरखाव के प्रति पर्यटन विभाग को न केवल प्रयास करने चाहिए बल्कि साथ ही साथ लोगों में भी जागरूकता फैलानी चाहिए कि वह अपने आसपास के ऐतिहासिक धरोहरों को किसी तरह के नुकसान न पहुंचाएं।



Conclusion:स्थानीय लोग इसके लिए पर्यटन विभाग को कसूरवार बताते हैं तो विभाग की भी यही शिकायत है कि स्थानीय लोग स्थलों की शक्ल बिगाड़ने वाले लोगों को रोकते नहीं कुल मिलाकर सरकारी विभाग से लेकर सभी जिम्मेदार हैं इसका खामियाजा हमारी धरोहर को भुगतना पड़ रहा है किसी भी शहर की ऐतिहासिक धरोहर है ना केवल शहर के किरदार को मुकम्मल बनाते हैं बल्कि इनके जरिए तमाम लोगों की रोजी-रोटी भी चलती है।

बाइट- रवि भट्ट, इतिहासकार

रामांशी मिश्रा
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