लखनऊ : प्रदेश के वित्तविहीन डिग्री कॉलेजों में पढ़ा रहे शिक्षकों को भी जल्द ही शोध कराने का अधिकार मिल सकता है. इसके लिए प्रदेश सरकार की ओर से सभी विश्वविद्यालयों के कुलपति से इस संबंध में प्रस्ताव बनाकर भेजने को कहा गया है. शासन अगर वित्तविहीन डिग्री कॉलेजों के शिक्षकों को शोध कराने का मौका देता है तो यह प्रदेश के उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन होगा. अभी तक केवल डीम्ड विश्वविद्यालयों के शिक्षकों को ही शोध कराने का मौका मिलता रहा है.
ज्ञात हो कि भारत सरकार ने देश में नई शिक्षा नीति 2020 को लागू किया है. इसके तहत उत्तर प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक सत्र 2023-24 से नई शिक्षा नीति लागू हो रही है. नई शिक्षा नीति के तहत स्नातक कोर्स करने के लिए छात्रों को चार वर्ष तक शिक्षा ग्रहण करना होगा. इसके तहत स्नातक में अगर कोई छात्र प्रथम वर्ष में पढ़ाई छोड़ता है, तो उसे सर्टिफिकेट दिया जाएगा. इसी तरह दूसरे वर्ष में अगर पढ़ाई छोड़ता है तो उसे डिप्लोमा, तीसरे वर्ष में पढ़ाई छोड़ता है तो उसे डिग्री, अगर वह चौथे साल में स्नातक की पढ़ाई पूरी करता है तो उसे डिग्री विद रिसर्च मार्कशीट उपाधि प्रदान की जाएगी. ऐसे में विश्वविद्यालयों पर अपने सभी डिग्री कॉलेजों खासकर वित्तविहीन डिग्री कॉलेजों में पढ़ा रहे शिक्षकों को शोध कराने की छूट देने का दबाव बढ़ गया है. क्योंकि अगर इन डिग्री कॉलेजों के शिक्षकों को शोध कराने का मौका नहीं दिया जाएगा तो इन डिग्री कॉलेजों में पढ़ रहे छात्रों को स्नातक कोर्स के चौथे वर्ष में शोध करने का मौका नहीं मिल पाएगा.
लखनऊ विश्वविद्यालय से संबद्ध डिग्री कॉलेज शिक्षक संघ के अध्यक्ष डॉ मनोज पांडे ने बताया कि विवि में शैक्षणिक सत्र 2022-23 से ही नई शिक्षा नीति को लागू कर दिया गया है. ऐसे में इस सत्र के छात्रों को वर्ष 2027-28 में कॉलेजों को शोध कराना होगा. मौजूदा समय में लखनऊ विश्वविद्यालय ने राजकीय व सहायता प्राप्त डिग्री कॉलेजों के शिक्षकों को ही बीते सत्र से पीएचडी कराने का मौका दिया है, जबकि वित्तविहीन डिग्री कॉलेजों को शिक्षकों को यह लाभ अभी तक नहीं मिल पाया है. ज्ञात हो कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत स्नातक कोर्स के चौथे वर्ष में शोध का प्रावधान रखा गया है. ऐसे में वित्तविहीन डिग्री कॉलेजों के शिक्षकों को शोध कराने की छूट ना देने से स्नातक के चौथे साल में दिक्कत हो सकती है.
सामाजिक कार्यकर्ता व शिक्षक नेता डॉ. मनीष हिन्दवी ने बताया कि वित्तविहीन डिग्री कॉलेजों में शिक्षकों की नियुक्ति का जो मानक है, विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के नियुक्ति के सामान्य ही है. ऐसे में पूरी योग्यता रखने के बाद भी वित्तविहीन डिग्री कॉलेज के शिक्षकों को अब तक शोध कराने का मौका नहीं दिया जाता है, जबकि प्राइवेट विश्वविद्यालय अपने शिक्षकों को शोध कराने का मौका देते आ रहे हैं.