लखनऊ : जैसे-जैसे यूपी विधानसभा चुनाव नजदीक आता जा रहा है विपक्ष और सत्ता पक्ष एक दुसरे पर हमलावर होते जा रहे हैं. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने रविवार को भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि प्रदेश की जनता का सत्तारुढ़ भाजपा सरकार के प्रति गहरे असंतोष से शीर्ष भाजपा नेतृत्व भलीभांति परिचित हो गया है.
अखिलेश ने कहा कि "आगामी विधानसभा चुनाव में उसके हाथ से सत्ता फिसलता देख हताश-निराश भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की एक माह में चित्रकूट, वृंदावन और लखनऊ में बैठकें हुई हैं. इन बैठकों का एजेंडा साजिशी रणनीति बनाना है, ताकि किसानों और करोड़ों बेरोजगार नौजवानों से किए गए वादों को किसी तरह भुलाया जा सके और लोगों को बहकाने के लिए नये-नये तरीके ढ़ूंढे जाएं."
'भाजपा सरकार के पास गिनाने के लिए एक भी योजना नहीं'
सपा अध्यक्ष ने कहा कि "भाजपा की मुसीबत यह है कि साढ़े चार साल की सरकार में भी उसके पास गिनाने के लिए एक भी योजना नहीं है. प्रशासन पर उसकी पकड़ न होने से हर मोर्चे पर विफलता मिली है. हवाई वादों और कागजी सफलताओं के प्रचार से जनता ऊबी हुई है. भाजपा का मातृ संगठन इन हालातों से चिंतित है और लगातार चिंतन-मनन में जुटा है. इन बैठकों से अब तक एक ही निष्कर्ष निकला है कि गुमराह करने की रणनीति ही काम आएगी. पर वे भूलते हैं कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती है"
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने किया पलटवार
भारतीय जनता पार्टी के के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने अखिलेश यादव के बयान का पलटवार करते हुए कहा कि लगातार हार और जनता से नकारे जाने के बाद भी सपा प्रमुख को यह समझ में नहीं आ रहा कि जनता किसे काम करने के लिए जनादेश दे रही है और किसे घर बैठने के लिए. कभी वैक्सीन को लेकर गुमराह करने की राजनीति तो कभी आतंकवादियों के समर्थन की नीति अपनाने वाली सपा की साइकिल 2022 में जनता 22 कदम भी न चलने देने का मन बना चुकी है.
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'सपा मुखिया का सवाल उठाना हास्यास्पद'
स्वतंत्रदेव सिंह ने कहा "संघ की बैठकों और कार्यप्रणाली पर सपा मुखिया का सवाल उठाना हास्यास्पद है. कोई भी सामाजिक, सांस्कृतिक संगठन हो या राजनीतिक दल बैठक, मंथन, समीक्षा, सुधार और अभियान उसके विकास की अहम कड़ी है, जिससे कार्यकर्ता निर्माण होता है, लेकिन सपा प्रमुख पार्टी नहीं परिवार प्राइवेट लिमिटेड चलाते हैं. परिवार ही पार्टी है और घर-घराना के हिस्से ही पद है. वहां संवाद और समीक्षा की संस्कृति ही नहीं है, केवल परिवार से फरमान जारी होता है. ऐसे में उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की समझ कहां होगी? उन्होंने कहा कि भाजपा में बूथ पर कार्य करने वाला कोई भी किसी भी जाति का कार्यकर्ता भविष्य का प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष सहित किसी भी पद तक पहुंच सकता है, लेकिन परिवारवादी व्यवस्था पर चलने वाले दलों में सत्ता तथा संगठन का केन्द्र परिवार होता है इसलिए वंशवादी पार्टियों में कार्यकर्ता निर्माण संभव नहीं है."