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'ईटीवी भारत' के दफ्तर में सजी कवियों की महफिल, बही कविताओं की रसधार

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Published : Nov 16, 2019, 1:27 AM IST

पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती पर ईटीवी भारत के लखनऊ स्थित दफ्तर पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. इस महफिल में देश के जाने-माने कवियों ने शिरकत की.

कवियों की सुरमई महफिल.

लखनऊ: देश के पहले प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती पर ईटीवी भारत के लखनऊ स्थित दफ्तर में देश के जाने-माने कवियों की महफिल सजी. इस मौके पर कवियों और शायरों एक से बढ़कर एक रचनाओं का काव्य पाठ किया.

कवियों की सुरमई महफिल.

कवियों ने महफिल में लगाए चार चांद
श्रृंगार, व्यंग्य और वीर रस की कविताओं से सराबोर कवियों और शायरों के इस संगम ने श्रोताओं का दिल जीत लिया. प्रसिद्ध व्यंग्य कवि पंकज प्रसून, युवा शायर क्षितिज कुमार, श्रृंगार रस की प्रसिद्ध कवयित्री शिखा श्रीवास्तव और ओज के शसक्त कवि अभय सिंह 'निर्भीक' ने अपनी कविताओं और शेरो-शायरी से महफिल में चार चांद लगा दिए.

कवि अभय सिंह ने किया वीर रस की कविताओं का पाठ
ओज के सुप्रसिद्ध कवि अभय सिंह 'निर्भीक' ने वीर रस की बेहतरीन कविताओं का काव्य पाठ देश के सैनिकों से शुरू किया. 'सीना ताने स्वाभिमान से सीमाओं पर हम रहते हैं, हंसते-हंसते वक्षस्थल पर सीधी गोली हम सहते हैं, हर पल हर क्षण हम तो केवल अपना फर्ज निभाते हैं, जब भी शीश वतन ने मांगा शीश दान कर आते हैं, अपने घर की सारी सुख सुविधा जो त्यागा करते हैं, रात-रात भर सीमाओं पर अपलक जागा करते हैं, इनके कारण ही उन्नति की सुदृढ़ होती डाली है, इनके लहू की बूंदों से ही उपवन की हरियाली है, इनकी निष्ठा का दुनिया में तोल नहीं हो सकता है, इनकी कुर्बानी का कोई मोल नहीं हो सकता है, मैं इनके सम्मान में कविता लिखता और सुनाता हूं, सैनिक के चरणो में सादर अपना शीश झुकाता हूं'.

आओ हम सब भारत घूमे, इसकी पावन राज को चूमें
कवि निर्भीक ने अपनी दूसरी कविता पढ़ी कि 'आओ हम सब भारत घूमें, इसकी पावन रज को चूमें, नाना से लेकर नानी तक, दादी की आनाकानी तक, मां की ममता के आंचल तक काले टीके से काजल तक, ब्रज में माखन की चोरी तक मां की गोदी में लोरी तक, कान्हा की मुरली की धुन तक पायल की रुनझुन रुनझुन तक, दिवाली से उस होली तक, कोयल की मीठी बोली तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक उत्तर से लेकर दक्षिण तक, सागर की उठती लहरों तक गावों से लेकर शहरों तक, अमृत से गंगा के जल तक, झरनों की मीठी हलचल तक, सरसों के पीले फूलों तक, पीपल पर पड़ते झूलों तक मेलों के उन गुब्बारों तक, घर के आंगन चौबारों तक, खेतों से ले खलिहानों तक, आंगन वाली दालानों तक, सब मजदूर किसानों तक भारत के वीर जवानों तक, मंदिर से मस्जिद के दर तक, गुरुद्वारे से गिरजाघर तक, ध्यान प्रार्थना और वजू में, आओ हम सब भारत घूमे, इसकी पावन राज को चूमें'.

कवि पंकज प्रसून ने व्यंग्यात्मक रचनाओं से लूट ली महफिल
आखिर में महफिल का संचालन कर रहे सुप्रसिद्ध कवि पंकज प्रसून ने अपनी एक से बढ़कर एक व्यंग्यात्मक रचनाओं से महफिल को लूटने का काम किया. उन्होंने अपनी इस रचना से काव्यपाठ का शुभारंभ किया कि 'सुकून-ए-नक्श के दौर-ए-जुनू मजमून सजा दीजे, हंसीन-ए-ताक के मौजू अजी अलवर रजा दीजे, मैं लिख कर अब तलक इसको समझ पाया नहीं साहब, अगर समझे नहीं हो तो आप भी ताली बजा दीजे'.

कविता से प्रदेश सरकार पर बरसे पंकज प्रसून
उत्तर प्रदेश की सरकार पर तंज कसते हुए उन्होंने शहर के गड्ढों पर लिखा कि 'गड्ढा हमारी आन है गड्ढा हमारी शान है, गड्ढा हमारे देश की संस्कृति की पहचान है, गड्ढा सदा है शाश्वत, इसको मिला वरदान है, और हिंदुस्तान में गड्ढा नहीं, गड्ढे में हिंदुस्तान है. व्यंग्य की दूसरी रचना उन्होंने प्रस्तुत की कि 'इतने उत्साहित हैं नेता जाने क्या कर जाएंगे, अरे इतना प्यार करो न हमसे जीते जी मर जाएंगे, मैंने पूछा आखिर कब तक गड्ढा मुक्त बनेगी सड़कें, वह बोले बारिश आने दो सब गड्ढे भर जाएंगे'.

फेसबुक पर एक दूसरे को ब्लॉक करने पर उन्होंने व्यंग्य कसते हुए अपनी कविता पढ़ी कि 'तुमने ब्लॉक किया है मुझको, लेकिन इतना बतला देना, दिल में जो प्रोफाइल फोटो, है वह कैसे ब्लॉक करोगी, बंद किए सारे दरवाजे, लेकिन इतना समझा देना मन की जो ओपन विंडो है उसको कैसे लॉक करोगी, तुमने ब्लॉक किया है मुझको, लेकिन इतना बदले देना.

लखनऊ: देश के पहले प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू की जयंती पर ईटीवी भारत के लखनऊ स्थित दफ्तर में देश के जाने-माने कवियों की महफिल सजी. इस मौके पर कवियों और शायरों एक से बढ़कर एक रचनाओं का काव्य पाठ किया.

कवियों की सुरमई महफिल.

कवियों ने महफिल में लगाए चार चांद
श्रृंगार, व्यंग्य और वीर रस की कविताओं से सराबोर कवियों और शायरों के इस संगम ने श्रोताओं का दिल जीत लिया. प्रसिद्ध व्यंग्य कवि पंकज प्रसून, युवा शायर क्षितिज कुमार, श्रृंगार रस की प्रसिद्ध कवयित्री शिखा श्रीवास्तव और ओज के शसक्त कवि अभय सिंह 'निर्भीक' ने अपनी कविताओं और शेरो-शायरी से महफिल में चार चांद लगा दिए.

कवि अभय सिंह ने किया वीर रस की कविताओं का पाठ
ओज के सुप्रसिद्ध कवि अभय सिंह 'निर्भीक' ने वीर रस की बेहतरीन कविताओं का काव्य पाठ देश के सैनिकों से शुरू किया. 'सीना ताने स्वाभिमान से सीमाओं पर हम रहते हैं, हंसते-हंसते वक्षस्थल पर सीधी गोली हम सहते हैं, हर पल हर क्षण हम तो केवल अपना फर्ज निभाते हैं, जब भी शीश वतन ने मांगा शीश दान कर आते हैं, अपने घर की सारी सुख सुविधा जो त्यागा करते हैं, रात-रात भर सीमाओं पर अपलक जागा करते हैं, इनके कारण ही उन्नति की सुदृढ़ होती डाली है, इनके लहू की बूंदों से ही उपवन की हरियाली है, इनकी निष्ठा का दुनिया में तोल नहीं हो सकता है, इनकी कुर्बानी का कोई मोल नहीं हो सकता है, मैं इनके सम्मान में कविता लिखता और सुनाता हूं, सैनिक के चरणो में सादर अपना शीश झुकाता हूं'.

आओ हम सब भारत घूमे, इसकी पावन राज को चूमें
कवि निर्भीक ने अपनी दूसरी कविता पढ़ी कि 'आओ हम सब भारत घूमें, इसकी पावन रज को चूमें, नाना से लेकर नानी तक, दादी की आनाकानी तक, मां की ममता के आंचल तक काले टीके से काजल तक, ब्रज में माखन की चोरी तक मां की गोदी में लोरी तक, कान्हा की मुरली की धुन तक पायल की रुनझुन रुनझुन तक, दिवाली से उस होली तक, कोयल की मीठी बोली तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक उत्तर से लेकर दक्षिण तक, सागर की उठती लहरों तक गावों से लेकर शहरों तक, अमृत से गंगा के जल तक, झरनों की मीठी हलचल तक, सरसों के पीले फूलों तक, पीपल पर पड़ते झूलों तक मेलों के उन गुब्बारों तक, घर के आंगन चौबारों तक, खेतों से ले खलिहानों तक, आंगन वाली दालानों तक, सब मजदूर किसानों तक भारत के वीर जवानों तक, मंदिर से मस्जिद के दर तक, गुरुद्वारे से गिरजाघर तक, ध्यान प्रार्थना और वजू में, आओ हम सब भारत घूमे, इसकी पावन राज को चूमें'.

कवि पंकज प्रसून ने व्यंग्यात्मक रचनाओं से लूट ली महफिल
आखिर में महफिल का संचालन कर रहे सुप्रसिद्ध कवि पंकज प्रसून ने अपनी एक से बढ़कर एक व्यंग्यात्मक रचनाओं से महफिल को लूटने का काम किया. उन्होंने अपनी इस रचना से काव्यपाठ का शुभारंभ किया कि 'सुकून-ए-नक्श के दौर-ए-जुनू मजमून सजा दीजे, हंसीन-ए-ताक के मौजू अजी अलवर रजा दीजे, मैं लिख कर अब तलक इसको समझ पाया नहीं साहब, अगर समझे नहीं हो तो आप भी ताली बजा दीजे'.

कविता से प्रदेश सरकार पर बरसे पंकज प्रसून
उत्तर प्रदेश की सरकार पर तंज कसते हुए उन्होंने शहर के गड्ढों पर लिखा कि 'गड्ढा हमारी आन है गड्ढा हमारी शान है, गड्ढा हमारे देश की संस्कृति की पहचान है, गड्ढा सदा है शाश्वत, इसको मिला वरदान है, और हिंदुस्तान में गड्ढा नहीं, गड्ढे में हिंदुस्तान है. व्यंग्य की दूसरी रचना उन्होंने प्रस्तुत की कि 'इतने उत्साहित हैं नेता जाने क्या कर जाएंगे, अरे इतना प्यार करो न हमसे जीते जी मर जाएंगे, मैंने पूछा आखिर कब तक गड्ढा मुक्त बनेगी सड़कें, वह बोले बारिश आने दो सब गड्ढे भर जाएंगे'.

फेसबुक पर एक दूसरे को ब्लॉक करने पर उन्होंने व्यंग्य कसते हुए अपनी कविता पढ़ी कि 'तुमने ब्लॉक किया है मुझको, लेकिन इतना बतला देना, दिल में जो प्रोफाइल फोटो, है वह कैसे ब्लॉक करोगी, बंद किए सारे दरवाजे, लेकिन इतना समझा देना मन की जो ओपन विंडो है उसको कैसे लॉक करोगी, तुमने ब्लॉक किया है मुझको, लेकिन इतना बदले देना.

Intro:'ईटीवी भारत' के दफ्तर में सजी कवियों की सुरमई महफिल, बही कविताओं की रसधार


note: फीड एफटीपी से भेजी गई है।
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लखनऊ। देश के पहले प्रधानमंत्री स्व. पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिवस पर लखनऊ के 'ईटीवी भारत' के दफ्तर में देश के जाने-माने कवियों की महफिल सजी। इस मौके पर एक से बढ़कर एक रचनाओं का कवियों और शायरों ने काव्य पाठ किया। श्रंगार, व्यंग्य और वीर रस की कविताओं से सराबोर कवियों और शायरों के इस संगम ने श्रोताओं का दिल जीत लिया। प्रसिद्ध व्यंग्य कवि पंकज प्रसून, युवा शायर क्षितिज कुमार, श्रंगार रस की प्रसिद्ध कवयित्री शिखा श्रीवास्तव और ओज के शसक्त कवि अभय सिंह 'निर्भीक' ने अपनी कविताओं और शेरो-शायरी से महफ़िल में चार चांद लगा दिए।


Body:कवि क्षितिज कुमार ने अपने शेर से महफिल का आगाज किया। 'बड़े अदब से शराफत के साथ मिलते हैं, यहां के लोग नजाकत के साथ मिलते हैं. रहें कहीं भी जमाने में लखनऊ वाले, सभी से प्यार मोहब्बत के साथ मिलते हैं। "किसी मुश्किल की तरह हल नहीं होना मुझको, जो बरस जाए वह बादल नहीं होना मुझको, सबको दौड़ाता फिरूं हाथ में पत्थर लेकर, इश्क में इतना भी पागल नहीं होना मुझको, जो भी चाहे वह बसा ले यहां आकर बस्ती, इतना आसान भी जंगल नहीं होना मुझको, अगर बनाना है तो मांग का सिंदूर बना, बस तेरी आंख का काजल नहीं होना मुझको"। दूसरा शेर पढ़ा कि "उनकी राहों में भला पलके बिछाएं कब तक, आने वाले हैं मगर देखिए आएं कब तक, अब मेरे ख्वाब हकीकत में बदल दे या रव, उनकी तस्वीर से काम चलाएं कब तक"। इसके बाद पढ़ा कि "जो चाहता हूं वह मंजर बनाकर रखता हूं, मैं कागजों पर समंदर बनाके रखता हूं, वह धड़कनों की तरह लौट भी तो सकता है, मैं दिल में उसके लिए घर बनाके रखता हूं"।


कवयित्री शिखा श्रीवास्तव ने नारियों का पक्ष रखते हुए पढ़ा कि " मैं नारी चाहत का एक समंदर रखती हूं, संग हौसलों के मैं चाहत के पर रखती हूं, घर से लेकर दफ्तर तक की जिम्मेदारी है, कदमों में धरती आंखों में अंबर रखती हूं। "मैं नारी हूं नारी का सम्मान समेटे हूं, मातु शारदे ने जो दिया वह वरदान समेटे हूं, मुझ में गीतों गजलों का इक झरना बहता है, लेकिन दिल में जन गण मन का गान समेटे हूं"। फिर आगे पढ़ा कि " हर एक सपना सच होगा यह आस जरूरी है, सीता हो तो राम के संग बनवास जरूरी है, चाहे जितनी दूरी हो पर रिश्तों की खातिर, तुम मेरे हो मन में यह विश्वास जरूरी है"। "हम नहीं इश्क का मियार गिराने वाले, कुछ कहें कुछ भी कहें हमको जमाने वाले, खत्म होता है तो हो जाए सांसों का सफर, उठकर अब हम नहीं दर से तेरे जाने वाले, हम तो जी लेंगे इसी हाल में हैरानी में, खुश रहे तू ए मेरे दिल को दुखाने वाले"

ओज के सुप्रसिद्ध कवि अभय सिंह 'निर्भीक' ने वीर रस की बेहतरीन कविताओं का काव्यपाठ देश के सैनिकों से शुरू किया। "सीना ताने स्वाभिमान से सीमाओं पर हम रहते हैं, हंसते-हंसते वक्षस्थल पर सीधी गोली हम सहते हैं, हर पल हर क्षण हम तो केवल अपना फर्ज निभाते हैं, जब भी शीश वतन ने मांगा शीश दान कर आते हैं, अपने घर की सारी सुख सुविधा जो त्यागा करते हैं, रात रात भर सीमाओं पर अपलक जागा करते हैं, इनके कारण ही उन्नति की सुदृढ़ होती डाली है, इनके लहू की बूंदों से ही उपवन की हरियाली है, इनकी निष्ठा का दुनिया में तोल नहीं हो सकता है, इनकी कुर्बानी का कोई मोल नहीं हो सकता है, मैं इनके सम्मान में कविता लिखता और सुनाता हूं, सैनिक के चरणो में सादर अपना शीश झुकाता हूं"। कवि निर्भीक ने अपनी दूसरी कविता पढ़ी कि " आओ हम सब भारत घूमें, इसकी पावन रज को चूमें, नाना से लेकर नानी तक, दादी की आनाकानी तक, मां की ममता के आंचल तक काले टीके से काजल तक, ब्रज में माखन की चोरी तक मां की गोदी में लोरी तक, कान्हा की मुरली की धुन तक पायल की रुनझुन रुनझुन तक, दिवाली से उस होली तक, कोयल की मीठी बोली तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक उत्तर से लेकर दक्षिण तक, सागर की उठती लहरों तक गावों से लेकर शहरों तक, अमृत से गंगा के जल तक, झरनों की मीठी हलचल तक, सरसों के पीले फूलों तक, पीपल पर पड़ते झूलों तक मेलों के उन गुब्बारों तक, घर के आंगन चौबारों तक, खेतों से ले खलिहानों तक, आंगन वाली दालानों तक, सब मजदूर किसानों तक भारत के वीर जवानों तक, मंदिर से मस्जिद के दर तक, गुरुद्वारे से गिरजाघर तक, ध्यान प्रार्थना और वजू में, आओ हम सब भारत घूमे, इसकी पावन राज को चूमें"





Conclusion:आखिर में महफिल का संचालन कर रहे सुप्रसिद्ध कवि पंकज प्रसून ने अपनी एक से बढ़कर एक व्यंग्यात्मक रचनाओं से महफिल को लूटने का काम किया। उन्होंने अपनी इस रचना से काव्यपाठ का शुभारंभ किया कि "सुकून-ए-नक्श के दौर-ए-जुनू मजमून सजा दीजे, हंसीन-ए-ताक के मौजू अजी अलवर रजा दीजे, मैं लिख कर अब तलक इसको समझ पाया नहीं साहब, अगर समझे नहीं हो तो आप भी ताली बजा दीजे" उत्तर प्रदेश की सरकार पर तंज कसते हुए उन्होंने शहर के गड्ढों पर लिखा कि "गड्ढा हमारी आन है गड्ढा हमारी शान है, गड्ढा हमारे देश की संस्कृति की पहचान है, गड्ढा सदा है शाश्वत, इसको मिला वरदान है, और हिंदुस्तान में गड्ढा नहीं, गड्ढे में हिंदुस्तान है। व्यंग्य की दूसरी रचना उन्होंने प्रस्तुत की कि "इतने उत्साहित हैं नेता जाने क्या कर जाएंगे, अरे इतना प्यार करो ना हमसे जीते जी मर जाएंगे, मैंने पूछा आखिर कब तक गड्ढा मुक्त बनेगी सड़कें, वह बोले बारिश आने दो सब गड्ढे भर जाएंगे"। फेसबुक पर एक दूसरे को ब्लॉक करने पर उन्होंने व्यंग्य कसते हुए अपनी कविता पढ़ी कि" तुमने ब्लॉक किया है मुझको लेकिन इतना बतला देना, दिल में जो प्रोफाइल फोटो, है वह कैसे ब्लॉक करोगी, बंद किए सारे दरवाजे, लेकिन इतना समझा देना मन की जो ओपन विंडो है उसको कैसे लॉक करोगी, तुमने ब्लॉक किया है मुझको लेकिन इतना बदले देना....।

अखिल पांडेय, लखनऊ, 9336864096
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