लखनऊ: बहुचर्चित गैंगस्टर विकास दुबे एनकाउंटर मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने दो आयोग गठित किए थे. एक आयोग एसआईटी की अध्यक्षता में तो वहीं दूसरा हाईकोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में गठित किया गया था, लेकिन आज एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले की निष्पक्षता से जांच करने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश और रिटायर्ड डीजीपी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करने का फैसला लिया है. इस कमेटी के गठन के बाद अब सरकार ने जो दो आयोग गठित किए थे, उन पर दबाव बनेगा. साथ ही मामले की निष्पक्ष जांच हो सकेगी. इस बारे में जानकारी के लिए ईटीवी भारत ने विधि विशेषज्ञों से बातचीत की. उनका कहना है कि इस आयोग के गठन के बाद कानपुर एनकाउंटर मामले की निष्पक्ष जांच हो सकेगी.
'सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही'
विधि विशेषज्ञ अखिलेश कुमार कालरा का कहना है कि विकास दुबे एनकाउंटर मामले में सरकार ने दो आयोग गठित किए थे. एक आयोग का गठन एसआईटी संजय भूसरेड्डी की अध्यक्षता में, जबकि दूसरा वन मैन इंक्वायरी कमीशन हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने उस वन मैन कमीशन का जिक्र करते हुए आज हिदायत दी है कि क्या उसमें सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज और एक रिटायर्ड डीजीपी शामिल किया जा सकता है. ऐसा इसलिए किया गया कि इससे एक कमीशन का दायरा बढ़े और दोनों पक्ष पुलिस और पब्लिक को एक संतुष्टि मिले कि अब मामले की निष्पक्ष जांच होगी और सही चीजें बाहर निकलकर आएंगी.
विधि विशेषज्ञ अखिलेश कुमार कालरा ने बताया कि विकास दुबे के एनकाउंटर पर सवाल उठाया जा रहे हैं कि पुलिस ने गैंगस्टर विकास को जबरदस्ती मार दिया. इसलिए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से न्यायिक तरीके से निष्कर्ष निकलेगा. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक आरोपी की अरेस्टिंग के बाद सुनवाई होनी चाहिए, जिसके बाद फिर उसे सजा होनी चाहिए.
विकास दुबे एनकाउंटर की होगी जांच
विधि विशेषज्ञ बीके सिंह ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज और एक रिटायर्ड डीजीपी का पैनल बनाने का सुप्रीम कोर्ट ने फैसला लिया है. इसके बाद अब तक सरकार ने जो भी काम किया है, वह सब बेकार हो गया है. अब जो राज्य सरकार पहले से गवर्नमेंट कराती आ रही है, उसका कोई मतलब नहीं रहेगा. अब जो सुप्रीम कोर्ट की कमेटी तय करेगी और उस कमेटी की जो रिपोर्ट आएगी, वही मानी जाएगी. सरकार इतना जरूर कर सकती है कि उनके सहयोग के लिए अपनी कमेटी को उनके साथ लगा सकती है. पहले भी बहुत बार ऐसे प्रकरण आए हैं, जब सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में इन सब मुद्दों को लेकर पीआईएल दाखिल होती रही है.
उन्होंने बताया कि सरकार इन सबसे बचने के लिए पहले ही एक कमेटी गठित कर देती है ये दिखाने के लिए कि देखो हमने इंक्वायरी कमिशन एक्ट के तहत एक रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में पैनल गठित कर दिया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट उसको देखती है कि यह ठीक है या कि नहीं. कोर्ट को अगर लगता है कि यह गलत है तो कोर्ट अपनी जो कमेटी बनाती है, उसको ही तरजीह देती है. इस एनकाउंटर मामले में पहले भी सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर है कि मजिस्ट्रेट जांच होगी. हर एनकाउंटर की जांच भी होती है. इसमें भी रिटायर्ड जज एसके अग्रवाल कमेटी बनी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसको पर्याप्त नहीं माना. अब सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों का नाम मांगा है जो रिटायर सुप्रीम कोर्ट के जज हैं और रिटायर्ड डीजीपी जो सेंट्रल में काम कर चुके हैं.
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