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हे भगवान! लखनऊ में भी पानी के लिए संघर्ष, देखिए क्या है 25 हजार की आबादी का हाल - Barfkhana Municipal Corporation

लखनऊ के बरफखाना इलाके की 25 हजार से ज्यादा की आबादी हर रोज बूंद-बूंद पानी के लिए संघर्ष कर रही है. पीने के लिए पीला पानी आ रहा है. इसके लिए कई बार शिकायत की गई. लेकिन, कोई समाधान नहीं हुआ.

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लखनऊ में पानी के लिए संघर्ष
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Published : Jul 18, 2022, 1:24 PM IST

लखनऊः राजधानी का महात्मा गांधी वार्ड VVIP वार्ड है. विधानसभा से लेकर प्रदेश को चलाने वाले मंत्री, आईएएस, पीसीएस सभी के दफ्तर इसी वार्ड में हैं. इस वीवीआईपी वार्ड के उदयगंज, बरफखाना और उसके आसपास के इलाकों में रहने वाली करीब 25 हजार की आबादी पीने के पानी के लिए तरस रही है. घनी आबादी के बीच लगे समरसेबल पंप खराब हो चले हैं. ऐसे में बूंद-बूंद पानी के लिए इलाके के लोगों को संघर्ष करना पड़ रहा है.

बरफखाना इलाका विधानसभा से सटा हुआ है. विधानसभा और बरफखाना इलाका दोनों ही लखनऊ के महात्मा गांधी वार्ड का हिस्सा हैं. बरफखाना में करीब 65 वर्षीय बुजुर्ग महिला इंदिरा अपने परिवार के साथ रहती हैं. वह बताती हैं कि नगर निगम ने उनके घर के बाहर पानी की टंकी रखी है. लेकिन, इसमें पानी नहीं आता है. पानी के लिए उन्हें करीब आधा किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. सिर्फ इंदिरा ही नहीं बल्कि, इस इलाके की 25 हजार से ज्यादा की आबादी हर रोज बूंद-बूंद पानी के लिए संघर्ष कर रही है. इसी इलाके की उमा बताती हैं कि पानी के आने और जाने का कोई समय नहीं है. इतना ही नहीं जो पानी आता भी है वह बेहद गंदा है. पीने के लिए पीला पानी आ रहा है. कई बार लगता है कि इस पानी से कहीं बीमार न पड़ जाएं.

लखनऊ में पानी के लिए संघर्ष, देखिए स्पेशल रिपोर्ट.

इसे भी पढ़े-राजधानी में भूजल का स्तर काफी खराब, 20 जिलों में खारे पानी से बढ़ी दिक्कत

इस क्षेत्र के पार्षद अमित कुमार चौधरी से जब बात की तो कई चौंकाने वाले प्वाइंट सामने आए. पार्षद ने बताया कि आजादी के बाद से कभी भी इस इलाके की वाटर लाइन बदली नहीं गई है. इसका नतीजा यह है कि पूरी लाइन खराब हो चुकी है. उन्होंने बताया कि वह बीते साढ़े चार साल से लगातार शिकायत कर रहे हैं. लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं की गई है. उनका कहना है कि इलाके में समरसेबल पंप लगाए गए थे. लेकिन, यह पर्याप्त नहीं हैं. इलाके में वाटर लेबल लगातार नीचे जा रहा है. समरसेबल रिबोर होने हैं. इसके लिए कई बार शिकायत की गई. जलकल विभाग के चक्कर लगाए गए. लेकिन, कोई समाधान नहीं निकला है. इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत की टीम ने नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह से सवाल किया है. उन्होंने इस पूरे मामले की जांच कराकर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है.

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लखनऊः राजधानी का महात्मा गांधी वार्ड VVIP वार्ड है. विधानसभा से लेकर प्रदेश को चलाने वाले मंत्री, आईएएस, पीसीएस सभी के दफ्तर इसी वार्ड में हैं. इस वीवीआईपी वार्ड के उदयगंज, बरफखाना और उसके आसपास के इलाकों में रहने वाली करीब 25 हजार की आबादी पीने के पानी के लिए तरस रही है. घनी आबादी के बीच लगे समरसेबल पंप खराब हो चले हैं. ऐसे में बूंद-बूंद पानी के लिए इलाके के लोगों को संघर्ष करना पड़ रहा है.

बरफखाना इलाका विधानसभा से सटा हुआ है. विधानसभा और बरफखाना इलाका दोनों ही लखनऊ के महात्मा गांधी वार्ड का हिस्सा हैं. बरफखाना में करीब 65 वर्षीय बुजुर्ग महिला इंदिरा अपने परिवार के साथ रहती हैं. वह बताती हैं कि नगर निगम ने उनके घर के बाहर पानी की टंकी रखी है. लेकिन, इसमें पानी नहीं आता है. पानी के लिए उन्हें करीब आधा किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. सिर्फ इंदिरा ही नहीं बल्कि, इस इलाके की 25 हजार से ज्यादा की आबादी हर रोज बूंद-बूंद पानी के लिए संघर्ष कर रही है. इसी इलाके की उमा बताती हैं कि पानी के आने और जाने का कोई समय नहीं है. इतना ही नहीं जो पानी आता भी है वह बेहद गंदा है. पीने के लिए पीला पानी आ रहा है. कई बार लगता है कि इस पानी से कहीं बीमार न पड़ जाएं.

लखनऊ में पानी के लिए संघर्ष, देखिए स्पेशल रिपोर्ट.

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इस क्षेत्र के पार्षद अमित कुमार चौधरी से जब बात की तो कई चौंकाने वाले प्वाइंट सामने आए. पार्षद ने बताया कि आजादी के बाद से कभी भी इस इलाके की वाटर लाइन बदली नहीं गई है. इसका नतीजा यह है कि पूरी लाइन खराब हो चुकी है. उन्होंने बताया कि वह बीते साढ़े चार साल से लगातार शिकायत कर रहे हैं. लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं की गई है. उनका कहना है कि इलाके में समरसेबल पंप लगाए गए थे. लेकिन, यह पर्याप्त नहीं हैं. इलाके में वाटर लेबल लगातार नीचे जा रहा है. समरसेबल रिबोर होने हैं. इसके लिए कई बार शिकायत की गई. जलकल विभाग के चक्कर लगाए गए. लेकिन, कोई समाधान नहीं निकला है. इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत की टीम ने नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह से सवाल किया है. उन्होंने इस पूरे मामले की जांच कराकर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है.

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