लखनऊ : माता-पिता द्वारा अत्यधिक अपेक्षाएं और पढ़ाई में अच्छे नंबर लाने का दबाव बच्चों पर बहुत ही बुरा असर डाल रहा है. पढ़ाई के दबाव में बच्चों के जान देने की घटनाएं भी लगातार बढ़ी हैं. बुधवार को राजधानी के महानगर क्षेत्र में ऐसी ही घटना हुई, जिसमें एक छात्रा ने अपने जीवन का अंत कर लिया. राजस्थान के शहर कोटा में भी इस तरह की तमाम वारदातें सामने आ चुकी हैं. दुखद है कि इसके बावजूद माता-पिता अपनी अपेक्षाओं का बोझ बच्चों पर लादने से बाज नहीं आ रहे हैं. मनोवैज्ञानिक और चिकित्सक इस बारे में अपने परामर्श देते रहे हैं, फिर भी ऐसी घटनाओं से कोई सबक लेने वाला नहीं है.
कई बार अभिभावक जो खुद नहीं कर पाए, वह सपना अपने बच्चों में पूरा होता देखना चाहते हैं, हालांकि ऐसे सपने संजोने से पहले वह बच्चे की क्षमता देखना भूल जाते हैं. हर बच्चे में की क्षमता और योग्यता अलग-अलग होती है. इसलिए बच्चे का मूल्यांकन भी उसी के अनुरूप किया जाना चाहिए. जो बच्चे खेल में अच्छा कर सकते हैं, उनसे दूसरी अपेक्षाएं नहीं की जा सकतीं, वही कला और अन्य क्षेत्रों में रुचि रखने वाले बच्चों से डॉक्टर, इंजीनियर या आईएएस बनने की अपेक्षा करना या दबाव डालना अनुचित है. अक्सर अभिभावक बच्चों की क्षमताएं और उसकी रुचि का क्षेत्र नहीं भांप पाते. दूसरी बात अक्सर अभिभावकों को लगता है कि उनका बच्चा कोई गलत फैसला नहीं करेगा वह चाहे जितना दबाव डालें. यह सोच भी ठीक नहीं है. बड़े होते बच्चों से घुल मिलकर रहना चाहिए और उनके मन की बात भी समझनी चाहिए.
पूर्व मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ एस रहमान कहते हैं 'मैंने अपने करियर में ऐसे तमाम मामले देखे हैं, जब माता-पिता बच्चों की मनोदशा नहीं समझ पाते. कई बार बच्चों और माता-पिता में संवादहीनता की भी स्थिति रहती है. अभिभावकों को चाहिए कि वह बचपन से ही अपने बच्चों की रुचि को पहचानें और उसके अनुरूप ही उसके करियर निर्माण में सहयोग करें. माता-पिता को बच्चों से ही पूछना चाहिए कि वह क्या करना चाहते हैं और भविष्य में उनका किसी ओर रुझान है. बच्चों के साथ हमेशा माता-पिता को दोस्ताना व्यवहार रखना चाहिए, जिससे वह कभी दबाव में कोई गलत कदम न उठाएं. आखिर कोई माता-पिता भी तो यह नहीं चाहता कि उसका बच्चा जीवन से खिलवाड़ करे.'